'मंडी' में ले आया मुकद्दर: अन्नु कपूर
अन्नू कपूर की गिनती फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन कलाकारों में होती है। उन्होंने भले ही कभी आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन वे वेद और उपनिषदों के ज्ञाता हैं। यही नहीं कुरान शरीफ को भी उन्होंने 14 बार पढ़ा है। उनका बचपन भले ही संघर्ष में गुजरा
अन्नू कपूर की गिनती फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन कलाकारों में होती है। उन्होंने भले ही कभी आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन वे वेद और उपनिषदों के ज्ञाता हैं। यही नहीं कुरान शरीफ को भी उन्होंने 14 बार पढ़ा है। उनका बचपन भले ही संघर्ष में गुजरा, मगर आज कामयाब होकर भी उन दिनों को वह भूले नहीं हैं।
बचपन के दिन याद करते हुए अन्नू कपूर बताते हैं, 'मेरे पिताजी के एक दोस्त उन्हें एक्टिंग की दुनिया में लाए। 25 हजार रुपए लगाकर पिताजी ने एक थिएटर कंपनी की शुरुआत की। उस समय पच्चीस हजार रुपए बहुत बड़ी राशि हुआ करती थी। लेकिन हमें नौटंकीवालों की तरह देखा जाता था। हमारे परिवार को बिरादरी से बाहर कर दिया गया था। मेरी दादी ने उन्हें घर से निकाल दिया था। तो मेरी मां ने अपने चारों बच्चों को थिएटर से दूर रखने की कोशिश की। यही वजह थी कि मैं आईएएस, डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन एक्टर कभी नहीं। मगर आर्थिक तंगी के चलते मुझे कक्षा दस के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी।'
मां के न चाहते हुए भी किन कठिन रास्तों से गुजरकर उनका एक्टिंग की दुनिया में आना हुआ? अन्नू बताते हैं, 'पापा के थिएटर ज्वाइन करने के बाद जिन सामाजिक बहिष्कारों का हमें सामना करना पड़ रहा था वो भी दुखद अहसास था। जिंदगी में काफी दुश्वारियां थीं। मेरी मां स्कूल में पढ़ाने के लिए 13 किमी दूर आती जाती थीं। उनके पास कुल दो साड़ी थीं। उनकी तनख्वाह कुल 40 रुपए थी। जिंदगी की डगर बहुत मुश्किल थी। मैंने चाय की दुकान पर काम किया। जब लॉटरी के टिकट बेचने शुरू किए तो पिताजी ने कहा कि अगर कुछ अच्छा हासिल न हो रहा हो तो मेरी थिएटर कंपनी ज्वाइन कर लेना। मैंने थिएटर कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। मेरी मां बहुत रोई। मैं खुद भी खुश नहीं था। मैंने हर रात थिएटर करना शुरू कर दिया। वह प्रोफेशनल थिएटर था। अगर आप अच्छी परफॉर्मेंस नहीं देते तो लोग नहीं आते थे। लोग नहीं आते तो पैसा नहीं आता था। अगर पैसा नहीं तो खाना भी नहीं मिलता था।'
थिएटर से होते हुए पहले नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) और फिर फिल्मी दुनिया में आने के बारे में अन्नू बताते हैं, 'एक्टिंग के हुनर को निखारने के लिए मेरे बड़े भाई रंजीत कपूर ने एनएसडी ज्वाइन किया। उन्होंने मुझसे भी एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए कहा। मैंने 1976 में एनएसडी ज्वाइन किया। वहां भाई ने एक प्ले किया जिसमें मैंने बूढ़े व्यक्ति का किरदार निभाया। इस प्ले को लेकर हम मुंबई आए। इस प्ले को शबाना आजमी के इप्टा ने प्रायोजित किया। इस नाटक को श्याम बेनेगल ने देखा और मुझे खत लिखा कि वह 'मंडी' फिल्म बना रहे हैं। इसमें वह मुझे लेने के इच्छुक हैं। उस समय मेरे भाई भी मुंबई आ चुके थे। उन्होंने मुझसे मुंबई आने को कहा। 25 जून 1982 को मैंने अपने दोस्त को सौ रुपए देकर मुंबई का टिकट लाने को कहा। चार दिन बाद मैं मुंबई में था। 'मंडी' मेरी पहली फिल्म थी। तब से अब तक इस इंडस्ट्री में 32 साल हो चुके हैं!'
स्मिता श्रीवास्तव