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फिल्म 'हवा हवाई' में किस किस्म की उड़ान की बातें हैं?

अदाकार, कथाकार और फिल्मकार अमोल गुप्ते लीक से हटकर फिल्में बनाते हैं। बालमन की पड़ताल वह सहज और वैज्ञानिक ढंग से करते हैं। अगली फिल्म 'हवा हवाई' में भी वह झलक देखने को मिलेगी बालमन को बतौर स्टेट ऑफ माइंड आप कैसे बयां करना चाहेंगे? देखिए, बालमन सिर्फ

By Edited By: Published: Thu, 01 May 2014 04:16 PM (IST)Updated: Thu, 01 May 2014 04:16 PM (IST)
फिल्म 'हवा हवाई' में किस किस्म की उड़ान की बातें हैं?

अदाकार, कथाकार और फिल्मकार अमोल गुप्ते लीक से हटकर फिल्में बनाते हैं। बालमन की पड़ताल वह सहज और वैज्ञानिक ढंग से करते हैं। अगली फिल्म 'हवा हवाई' में भी वह झलक देखने को मिलेगी

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बालमन को बतौर स्टेट ऑफ माइंड आप कैसे बयां करना चाहेंगे?

देखिए, बालमन सिर्फ बाल अवस्था से ताल्लुक नहीं रखता। यह किसी भी उम्र के लोगों में पाया जाता है। इस लिहाज से बाल उम्र या फिर वह अवस्था बेहद अहम होती है। मेरी तो शुरू से कोशिश रही है कि बच्चों के साथ बच्चा बनकर पेश आऊं। उनका अंतस खंगाल सकूं। उनकी ख्वाहिशों को एक नई उड़ान प्रदान कर सकूं।

'हवा हवाई' में किस किस्म की उड़ान की बातें हैं?

हमने सपनों को थोड़ी सी हवा देने की बात की है। कहते हैं न 'सपनों को थोड़ी सी हवा क्या दी, वे उड़ गए। अपनों को जरा सी वफा क्या दी, वे जुड़ गए।' तो यहां अपनेपन की दोस्ती और वफा की बातें हैं। ईमानदार रिश्तों की बातें हैं, जिनकी वजह से इंसानियत कायम है। खासकर शहरों में। गांवों में तो फैमिली सिस्टम इतना मजबूत है कि वहां रिश्तों को संजोने के लिए अतिरिक्त प्रयास की दरकार कम ही होती है। वहां एक-दूसरे के सहयोग की खातिर लोग हमेशा साथ खड़े होते हैं। शहरों में उदारीकरण के बाद आई, मी और मायसेल्फ वाला दौर ज्यादा प्रभावी हो गया। अब सारा जोर इस बात पर है कि हम अपने आप को सेफ और सेक्योर कर लें। बाकियों की परवाह क्यों करें? बालमन वैसे नहीं सोचता।

क्या यह सोच सभी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले बच्चों की है?

अमीर तबके के बच्चे का सेंसिटाइजेशन यानी संवेदीकरण नहीं हो रहा। गरीब तबके के बच्चों में ऊंचा उड़ने की हिम्मत पैदा नहीं हो रही। मैं अपने कैपेबिलिटी में उन्हें ऊंचा सोचने को तैयार कर रहा हूं। मैंने 'हवा हवाई' में भी गरीब तबके के अनेक बच्चों से ही अदाकारी कराई है।

अपने बेटे पार्थाे को ही फिल्म की मेन लीड भूमिका में उतारने की खास वजह?

मैं बाल कलाकारों के लिए ऑडिशन तो करता नहीं। फिल्म की कहानी ही मैंने लिखी पार्थो की वजह से। वह चार साल की उम्र से ही स्केटिंग का रियाज करता रहा है। सुबह-सवेरे स्केट्स बांध उसकी प्रैक्टिस पर जाया करता था। एक दिन उसे रियाज करता देख मेरे जेहन में कहानी सूझी। फिर पिछले तीन सालों से पार्थो लगातार एक्टिंग वर्कशॉप में मेरे साथ रहा है तो कहानी स्केटिंग के इर्द-गिर्द रच डाली।

पार्थो या उसके हमउम्रों को बड़ी जल्दी इंडस्ट्री से जोड़ देना उनके बालपन को खत्म कर देने जैसा नहीं होगा?

हमारे किसी भी बच्चे ने एक दिन नहीं खोया है स्कूल का। वह चाहे 'तारे जमीं पर' के बच्चे हों या फिर 'स्टैनली का डिब्बा' के। हमने सारा काम सैटरडे वर्कशॉप या फिर हॉलीडे वर्कशॉप में किया।

आप मानते हैं कि टीवी सीरियल में काम करने वाले बच्चे बहुत जल्दी मैच्योर हो रहे हैं?

मेरा मानना है कि कला को मत रोको, मगर प्रॉसेस को तब्दील करो। अमेरिका में बाल कलाकारों के लिए नियम हैं। वहां आठ घंटे से ज्यादा काम आप उनसे नहीं ले सकते। यहां वैसा नहीं है। 12-12 घंटे काम लिए जाते हैं। अपने यहां ऐनिमल वेलफेयर बोर्ड है, मगर चाइल्ड वेलफेयर बोर्ड नहीं है।

लगातार आप बच्चों के मन को झांक रहे हैं। बड़ों के अंतस को झांकती फिल्म कब आएगी?

मेरे बच्चे बड़े हो जाएं तो जरूर बनाऊंगा। फिर जो भी फिल्में मैं बना रहा हूं, उससे बड़ों की अपेक्षाएं तो भंग नहीं कर रहा हूं।

(अमित कर्ण)


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