‘मिर्जापुर’, ‘महारानी’, ‘जामतारा-सबका नंबर आएगा’ जैसी वेब सीरीज से जाना-पहचाना चेहरा बन चुके अभिनेता अमित सियाल
मेरे जैसे एक्टर के लिए हमेशा यह भी कहा जाता रहा है कि मैं फलां चीजें नहीं कर सकता। ऐसे में प्रतिस्पर्धा तो होगी ही उससे बच नहीं सकता नहीं तो संन्यास लेना पड़ेगा। जो कह रहा है कि प्रतिस्पर्धा नहीं है तो वह झूठ कह रहा है।
अभिनेता अमित सियाल ‘मिर्जापुर’, ‘महारानी’, ‘जामतारा-सबका नंबर आएगा’ जैसी वेब सीरीज से डिजिटल प्लेटफार्म का जाना-पहचाना चेहरा बन चुके हैं। सोनी लिव पर स्ट्रीम हुए वेब शो ‘महारानी- 2’ व अन्य मुद्दों पर उनकी प्रियंका सिंह से बातचीत के अंश..
खुद को पोस्टर पर देखने का एहसास कैसा होता है?
सच कहूं तो मैं अपनी तस्वीरें और काम देखता ही नहीं हूं। मेरी दिक्कत यह है कि मैं खुद को देखकर फिर उसमें कमियां निकालने लग जाऊंगा, इसलिए अवाइड करता हूं। कैमरे के आगे एक्टिंग कर ली, उतना काफी है। फिर पब्लिक आपको बता ही देती है कि कैसा काम किया है।
पब्लिक की प्रतिक्रिया को कितनी विनम्रता से अपनाते हैं?
अपनाना ही पड़ेगा, विकल्प क्या है। कोई आपको देखने के लिए समय निकाल रहा है। आजकल तो लोग बिंज वाच करते हैं। इतना समय अगर कोई दे रहा है, तो उसकी प्रतिक्रिया को अहमियत बिल्कुल देनी होगी।
जब निगेटिव रिव्यूज मिलते हैं, तो क्या उसे पढ़कर सुधार करने की कोशिश होती है?
मुझे लगता है कि ईमानदारी से लिखे रिव्यू को गंभीरता से लेना चाहिए, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि ऐसी चीजों पर कमेंट कर देते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं बनता। जैसे कि मेरा वजन बढ़ा हुआ नजर आया, अरे भाई मैं उस किरदार के लिए मोटा हुआ हूं। कई दर्शकों का दिमाग अब भी ब्यूटी में अटका हुआ है। वह हर किरदार को सुंदर ही देखना चाहते हैं। तब आपको चुनना पड़ता है कि रिव्यू में से क्या लेना है, क्या निकाल देना है। यह तरीका जीवन में भी काम आता है।
डिजिटल प्लेटफार्म ने लोगों के माइंडसेट को कहीं न कहीं बदल दिया है। जो कलाकार अब तक सिर्फ सिनेमा कर रहे हैं, वह भी अपने किरदार के करीब रहने की कोशिशों में लगे हुए हैं..
हां, बिल्कुल। हमको भी सिनेमा के कलाकारों से प्रतिस्पर्धा महसूस होती है, लेकिन यह बहुत ही हेल्दी कांप्टीशन है। माध्यम तो सब एक जैसे हैं, ऐसे में एक-दूसरे की तारीफ करनी चाहिए कि ओटीटी पर इतना अच्छा कंटेंट आ रहा है, तो उसे फिल्मों में भी एक्सप्लोर किया जाए। हम बहादुर बन रहे हैं, अलग किस्म की कहानियां, कलाकार और तकनीशियंस आ रहे हैं। इंडस्ट्री के लिए यह अच्छी बात है।
आपने कहा कि सिनेमा के लोगों से प्रतिस्पर्धा महसूस होती थी। क्या सिनेमा को अलग मानते हैं?
जब डिजिटल प्लेटफार्म नहीं था तो मैं सिनेमा में कोशिश कर रहा था। वहां कुछ हुआ नहीं। कुछ चुनिंदा लोग वहां पहले से स्थापित थे। हर दौर में देखें, तो 10-12 लोग ही इंडस्ट्री चलाते आए हैं। उसको तोड़ने के लिए प्रतिस्पर्धी तो रहना ही होगा। मेरे जैसे एक्टर के लिए हमेशा यह भी कहा जाता रहा है कि मैं फलां चीजें नहीं कर सकता। ऐसे में प्रतिस्पर्धा तो होगी ही, उससे बच नहीं सकता, नहीं तो संन्यास लेना पड़ेगा। जो कह रहा है कि प्रतिस्पर्धा नहीं है, तो वह झूठ कह रहा है।
जो पहले आपमें प्रतिभा नहीं देख पा रहे थे, अब जब वह आपका काम देखने के बाद आपके पास आते हैं, तो उनसे कितना सामान्य होकर बात कर पाते हैं?
मुझे लगता है कि कड़वे अनुभव आपके अपने होते हैं। अगर टेबल के उस तरफ जाकर देखें, तो समझ आने लग जाएगा कि निर्माता आपको क्यों नहीं ले रहा था। फिल्म बनाने में बहुत मेहनत और पैसा लगता है। निर्माता भी कहीं से पैसा उठाकर अपनी फिल्म में लगा रहे होते हैं। कुछ सफलताओं और अनुभवों के बाद वह चीजें समझ आने लग जाती हैं। यह एक इकोसिस्टम है, जिसे आप बदल नहीं सकते। आप अपनी कुर्सी संभालिए, क्योंकि कोई न कोई नीचे से कुर्सी हिला रहा होगा।
कुर्सी को मजबूती से पकड़े रहने के लिए क्या तरीके हैं?
यही कि समझदारी से काम करें। मैं कई बार नासमझी कर चुका हूं, जिसके लिए मैंने झेला भी है। वह सारी चीजें सीखने के हिस्से में आती हैं। जिस प्रोजेक्ट को कर रहे हैं उसे निष्ठा से पूरा करें। किसी को खुश करने में न लगे रहें। जब तक आप यह कर पा रहे हैं, तब तक आपका विकास होगा और लोग भी पसंद करेंगे।
‘महारानी-2’ में राजनीति के दावपेंच हैं। डिजिटल प्लेटफार्म पर इस कंटेंट से विदेशी दर्शक कैसे जुड़ेंगे?
जब गहराई से कोई शो बनाया जाता है, तो वह यूनिवर्सल होता है। इसमें राजनीति की एक बहुत ही अच्छी दुनिया बनाई गई है। जिसमें एक नेता की पर्सनल लाइफ भी दिखाई गई है। इस तरह के कंटेंट से हर दर्शक कनेक्ट करता है। कुछ ऐसी स्क्रिप्ट होती हैं, जिसमें आप ज्यादा बदलाव नहीं कर सकते, नहीं तो उसका मतलब बदल जाएगा। मैं स्पांटेनियस एक्टर हूं, इस तरीके से काम नहीं किया है। मेरे लिए यह चुनौतीपूर्ण रहा।