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यादगार रहा 15 सालों का सफर - अभिषेक बच्चन

अभिनेता अभिषेक बच्चन ने हाल ही में फिल्म इंडस्ट्री में 15 साल पूरे किए हैं। साल 2000 में उनकी पहली फिल्म जे.पी. दत्ता निर्देशित ‘रिफ्यूजी’ रिलीज हुई थी। उनकी उमेश शुक्ला निर्देशित ‘ऑल इज वेल’ 21 अगस्त को रिलीज होगी

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2015 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2015 11:53 AM (IST)
यादगार रहा 15 सालों का सफर - अभिषेक बच्चन

अभिनेता अभिषेक बच्चन ने हाल ही में फिल्म इंडस्ट्री में 15 साल पूरे किए हैं। साल 2000 में उनकी पहली फिल्म जे.पी. दत्ता निर्देशित ‘रिफ्यूजी’ रिलीज हुई थी। उनकी उमेश शुक्ला निर्देशित ‘ऑल इज वेल’ 21 अगस्त को रिलीज होगी...

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'15 सालों का सफर यादगार और रोलरकोस्टर राइड रहा। इस राइड की खासियत यह होती है कि सफर के दौरान ढेर सारे उतार-चढ़ाव, उठा-पटक आते हैं, पर आखिर में जब आप उन मुश्किलों को पार कर उतरते हैं, तो आपके चेहरे पर लंबी मुस्कान होती है। मेरा भी ऐसा ही मामला रहा है। मुझे बतौर अभिनेता व इंसान परिपक्व बनाने में ढेर सारे लोगों का योगदान रहा है। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसमें बहुत लोगों की भूमिका है।'

अविस्मरणीय रिफ्यूजी
शुरुआत रिफ्यूजी और जे.पी.दत्ता साहब से करना चाहूंगा। पिछले 15 सालों के सफर में सबसे यादगार लम्हे रिफ्यूजी की स्क्रीनिंग के पलों से संबंधित थे। मुझे याद है कि मैं जून के आखिरी दिनों में मनाली में ‘शरारत’ की शूटिंग कर रहा था। मुझे ‘रिफ्यूजी’ की स्क्रीनिंग के लिए आना था, पर ‘शरारत’ में भी बड़ी स्टारकास्ट थी। हमारे डायरेक्टर गुरुदेव भल्ला ने मुझसे कहा कि यार तुम्हारे बिना तो हम कोई सीन शूट नहीं कर सकते। उस पर मैंने उनसे कहा कि साहब ‘रिफ्यूजी’ मेरी पहली फिल्म है, जाना तो पड़ेगा। उन्होंने नहीं रोका। जिस दिन मैं स्क्रीनिंग के लिए निकला, उस दिन घना कोहरा था और मनाली से कुल्लू एक ही फ्लाइट जग्सन एयर इत्तफाकन उस दिन रद्द हो गई थी। मैं टैक्सी लेकर मनाली रिजॉर्ट से चंडीगढ़ आया। फिर दिल्ली और अंतत: मुंबई। जेपी साहब ने मेरी व बेबो (करीना कपूर) के लिए एक स्क्रीनिंग रात के साढ़े नौ बजे रखी थी। स्क्रीनिंग माहिम के नए खुले मल्टीप्लेक्स मूवी स्टार में थी। उसके ठीक अगले दिन फिल्म का प्रीमियर हुआ था।

दादा-दादी से लिया आशीर्वाद
प्रीमियर का किस्सा भी बड़ा रोचक रहा। मैं जलसा में तैयार बैठा था अपने चाचा और छोटे भाई समान सिकंदर के साथ। पहले मैं गया बंगले प्रतीक्षा में। वह इसलिए कि प्रीमियर के पहले मैं बड़ों का आर्शीवाद ले लूं। तो मैं प्रतीक्षा गया। दादा-दादी के पांव छुए। दादी से कहा, ‘मैं जा रहा हूं अपने प्रीमियर के लिए।’ उन्होंने कहा कि मुझे भी फिल्म दिखाना।
बहरहाल मैं वहां से निकला लिबर्टी सिनेमा के लिए। मीठीबाई से एसवी रोड की राह ली। पवनहंस के सामने बस डिपो है। उससे पहले एक छोटा सा हनुमान मंदिर पड़ता है। मैं बचपन में जब दादी मां के साथ शाम को ड्राइव पर जाता था, तो वहां दादी मां शीश नवाती थी। वे हनुमान जी की बड़ी भक्त थीं। रोज सुबह घर में वे हनुमान चालीसा का पाठ सुना करती थीं, जिसे अनूप जलोटा ने गाया था। एक और आरती थी- जय जय जय बजरंगबली। वह आज भी घर में बजती है।
बहरहाल प्रीमियर पर जाने के दौरान मैं वहां रुककर प्रणाम करना चाहता था। काफी गाड़ियां थीं साथ में, फिर भी उतर कर मैंने मंदिर में जाकर प्रणाम किया।

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अभिषेक तुम सब संभालो
हम जब लिबर्टी सिनेमा पहुंचे, तो पता चला कि जे.पी. साहब नहीं आ रहे हैं। रिलीज को लेकर कुछ प्रॉब्लम हो गई थी। उनका मैसेज आया कि अभिषेक तुम सब संभालो। उन दिनों रेड कार्पेट की कोई अवधारणा थी नहीं, पर गाडी से उतर कर थिएटर जाने के रास्ते में दोनों साइड मीडिया थी। वहां से जो खुशी मिली, तो समझ में आ गया कि बॉस अब मामला गंभीर बन चुका है।
फिल्म को मुंबई में अजय देवगन डिस्ट्रीब्यूट कर रहे थे। उन्होंने मुझे इंटरवल में लिबर्टी सिनेमा के हॉल में कहा, ‘तुम्हारी फिल्म को जोरदार ओपनिंग मिली है। मैं यह बात बतौर वितरक बता रहा हूं। मुझे तुम्हारे लिए बड़ी खुशी है। गुडलक टू यू।’ प्रीमियर खत्म होते ही हम गए ओबरॉय होटेल, जो अब ट्राइडेंट है। वहां के रीगल रूम में तब तक जे.पी. साहब आ चुके थे। फिर केक कटा और सब फैल गए आराम से। सुबह छह बजे मैं और सिंकदर वहां से निकले। मैंने सिकंदर से कहा, ‘यार यह मेरे लिए इतना बड़ा दिन है। कुछ ही घंटों में मैं मनाली निकल जाऊंगा ‘शरारत’ की शूटिंग के लिए। मैं यहां की कुछ यादें अपने संग ले जाना चाहता हूं। चलो यार लिबर्टी चलते हैं। वहां से पोस्टर लाकर अपने ऑफिस में लगाऊंगा। वह यादगार तोहफा होगा मेरे लिए कि यही वह पोस्टर था, जो प्रीमियर पर लगा था। लिबर्टी गए तो बारिश हो रही थी। पोस्टर कहीं दिखा ही नहीं। एक अपना कटआउट मिला। उसे गाड़ी के बोनट पर रखा। सिंकदर को खिड़की पर बिठाया और कटआउट ऑफिस ले आया। वह आज भी लगा हुआ है।’
तब से लेकर आज तक का कुल 15 सालों का सफर कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला। खास सफर रहा है। ढेर सारे लोगों से मिला। वह काम करने को मिला, जिसके ख्वाब देखता था। यह खुशकिस्मती है मेरी और यह किसी की बदौलत नहीं है। यह ऊपरवाले की देन है। आप चाहे किसी के भी बेटे या बेटी हों। यह दुनिया बहुत निर्दयी है। कुछ भी मुफ्त का नहीं मिलता। मैं आज जहां भी हूं, चाहे सफल या असफल, वह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। कितने लोग हैं दुनिया में जो सुबह उठें और अपने ख्वाब को साकार कर पाएं?

एक्टर ही बनना चाहता था
मैं अपना सपना जी रहा हूं। मैं बचपन से एक्टर ही बनना चाहता था। पापा के साथ स्टूडियो जाता था तो रोंगटे खड़े हो जाते थे। आज भी होते हैं।
मुझे बहुत पहले ऐसा महसूस हो चुका था कि मैं इसी के लिए पैदा हुआ हूं। खुशी इस बात की है कि मैं 15 सालों बाद भी इसे कर रहा हूं। मुझे मालूम है कि लोग पूछेंगे ही कि बहुत दिनों बाद आपकी कोई सोलो फिल्म आ रही है। मैं इन सब चीजों में पड़ता नहीं हूं। मुझे खुशी तो इस बात की है कि मैं आज भी फिल्मों में पूरी तरह सक्रिय हूं। आज कई ऐसे एक्टर हैं, जो सक्रिय नहीं हैं। मैं काम कर रहा हूं। फिर फर्क नहीं पड़ता कि मल्टीस्टारर फिल्म का हिस्सा हूं या सोलो फिल्म का। कई सफल फिल्में दी हैं मैंने। अब उसका क्रेडिट आप किसी को दें,वह आप की ओपिनियन है।
पिछले 15 साल बहुत उम्दा रहे हैं। मैं खुश हूं। कम से कम शिकायती तो नहीं हूं। मैं खुद को और बेहतर करने में लगा हुआ हूं। मेरे दर्शक मुझे आज भी स्वीकार करते हैं और कम से कम दो साल तक तो मेरे पास तीन और फिल्में हैं। उन सालों को यादगार व खुशहाल बनाने में सबसे पहले तो मेरे माता-पिता हैं, जिनकी वजह से मैं यहां बैठा हुआ हूं। फिर दादा-दादी, नाना-नानी। बचपन से लेकर आज तक उनसे काफी कुछ सीखा है। मेरे नाना भी बहुत अच्छे लेखक रहे हैं।
उनके अलावा मेरी दीदी, ऐश्वर्या, यार-दोस्त सबने मुझे शेप अप करने में बड़ी भूमिका निभाई। श्वेतदी (श्वेता बच्चन नंदा को प्यार से कहते हैं) मेरी बैकबोन रही हैं। मैं गलत-सही, सफल-असफल जो भी रहा, हर चीज में वे मेरे संग रहीं हैं। मेरे लिए श्वेता दीदी कहना लंबा था तो मैंने उन्हें श्वेतदी कहना शुरू कर दिया। अब घर में सभी उन्हें श्वेतदी ही पुकारते हैं। ऐश्वर्या मेरी सब कुछ हैं। वे मेरी दोस्त, पत्नी, मेरे बच्चे की मां हैं। इस तरह उनके संग बड़ा गहरा व निजी संबंध है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैं उनके संग कोई भी बात बिना किसी डर के कर सकता हूं।
पेशे की बात करें तो जेपी साहब ने मुझमें उस वक्त यकीन किया, जब मुझे खुद पर यकीन नहीं था। मुझे मलाल है कि मैं शायद उन्हें उतना नहीं दे सका। मैं और बढ़िया कर सकता था। मैं आज जितना जानता हूं, उतना उस वक्त जानता तो रिफ्यूजी और बेहतर हो सकती थी। फिर अनुपम खेर साहब का भी मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगा। बहुत से लोगों को लगता है कि मैं ‘युवा’ से ज्यादा निखरा, जबकि असलियत में वह काम ‘ओम जय जगदीश’ से हो गया था।

प्रस्तुति-
अजय ब्रह्मात्मज व अमित कर्ण

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