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सिस्टम पर कटाक्ष करना तो कोई इस अभिनेता से सीखे

मुंबई। एक बार फिर गंभीर अंदाज में दर्शकों से रूबरू होने को तैयार हैं रणवीर शौरी। उनकी अगली फिल्म है 'बजाते रहो'। उसके बाद वह 'हैप्पी एंडिंग' में नजर आएंगे। रणवीर से बातचीत के अंश: सिस्टम पर कटाक्ष करने वाली फिल्मों के पर्याय बन चुके हैं आप? -जी हां शायद आप सही कह रहे ह

By Edited By: Published: Thu, 11 Jul 2013 01:00 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2013 01:01 PM (IST)
सिस्टम पर कटाक्ष करना तो कोई इस अभिनेता से सीखे

मुंबई। एक बार फिर गंभीर अंदाज में दर्शकों से रूबरू होने को तैयार हैं रणवीर शौरी। उनकी अगली फिल्म है 'बजाते रहो'। उसके बाद वह 'हैप्पी एंडिंग' में नजर आएंगे। रणवीर से बातचीत के अंश:

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सिस्टम पर कटाक्ष करने वाली फिल्मों के पर्याय बन चुके हैं आप?

-जी हां शायद आप सही कह रहे हैं। पहले 'खोसला का घाेंसला' की थी, अब 'बजाते रहो' में मेरा किरदार रसूख वाले बिजनेसमैन की खाट खड़ी करता है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि अगर हमारी कानून-व्यवस्था न्याय नहीं दिला पाती तो कैसे आम इंसान को चीजें हाथ में लेनी पड़ती हैं।

'खोसला का घोंसला' जैसी कहानी है इसकी, तो उसके द्वारा स्थापित प्रतिमान को यह फिल्म कैसे तोड़ेगी?

-यह फिल्म 'खोसला..' की अगली कड़ी है। इसकी वजह से उस फिल्म के साथ इसकी सीधी तुलना नहीं हो सकती। किरदार पूरी तरह अलग हैं सिवाय विनय पाठक और मुझे छोड़कर।

'खोसला.' सफल फिल्म रही है। उसकी सीक्वल की कोई चर्चा?

मेरे ख्याल से उस जैसी फिल्म की सीक्वल बननी भी नहीं चाहिए। हम उन चीजों के साथ बहुत छेड़छाड़ करते हैं, जो एक बार सफल हो जाती है। मैं बहुत खुश हूं कि 'खोसला.' के सीक्वल की बात नहीं चल रही है।

'हैप्पी एंडिंग' के बारे में बताएं?

-वह 'गो गोवा गॉन' फेम राज निधिमोरू और कृष्णा डीके की फिल्म है। उनकी फिल्म 'शोर' की मैंने काफी तारीफ सुनी है। हालांकि अभी तक मेरी उनसे मुलाकात नहींहुई है। 'हैप्पी एंडिंग' में सैफ अली खान भी हैं।

आपने करियर की शुरुआत 'एक छोटी सी लव स्टोरी' व 'जिस्म' जैसी ऑफबीट फिल्मों से की। अब क्यों खुद को विशुद्ध मसाला फिल्मों की ओर मोड़ दिया है?

-देखिए 'एक था टाइगर' या 'हीरोइन' में मेरा किरदार विशुद्ध कमर्शियल नहीं था। सिर्फ 'सिंह इज किंग' मसाला फिल्म थी। मैं चाहता था कि मेनस्ट्रीम सिनेमा करूं, क्योंकि उसकी पहुंच अधिक है। 'भेजा फ्राई', 'मिथ्या' व 'प्यार के साइड इफेक्ट्स' मिलकर भी वैसा प्रभाव पैदा नहीं कर सकतीं, जो अकेले 'सिंह इज किंग' या फिर 'एक था टाइगर' का है। मुझे पैसों की भी जरूरत थी। मुंबई में घर लेना था तो मैंने विशुद्ध मसाला फिल्में कीं। हालांकि मैं कमर्शियल फिल्में भी करता हूं तो मेरी कोशिश होती है कि किरदार में एक अल्टरनेटिव स्ट्रीक जरूर हो। अब मेरी ख्वाहिश है कि सोलो फिल्में करूं।

[सप्तरंग टीम]

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