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जानें, कौन हैं क्रांतिकारी सरदार ऊधम सिंह, जिन पर आ रही है विक्की कौशल की फ़िल्म ‘सरदार ऊधम’

‘मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह असली अपराधी था। वह हमारे लोगों की आत्मा को कुचलना चाहता था इसलिए मैंने उसे कुचल दिया है। 21 साल से मैं बदला लेने की कोशिश कर रहा था। मुझे खुशी है कि मैंने अपना काम कर दिया।’

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 08 Oct 2021 03:29 PM (IST)Updated: Fri, 08 Oct 2021 03:29 PM (IST)
जानें, कौन हैं क्रांतिकारी सरदार ऊधम सिंह, जिन पर आ रही है विक्की कौशल की फ़िल्म ‘सरदार ऊधम’
Photo credit - Vicky Kaushal Insta Account Photo

दीपेश पांडेय, जेएनएन। ‘मैंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह असली अपराधी था। वह हमारे लोगों की आत्मा को कुचलना चाहता था, इसलिए मैंने उसे कुचल दिया है। 21 साल से मैं बदला लेने की कोशिश कर रहा था। मुझे खुशी है कि मैंने अपना काम कर दिया।’ ये शब्द थे क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह के, जो उन्होंने साल 1919 में हुए जलियांवाला नरसंहार के जिम्मेदार अंग्रेज अधिकारी माइकल ओ डायर की हत्या के बाद कोर्ट में सुनवाई के दौरान बोले थे। उनके जीवन पर शूजित सरकार ने फिल्म ‘सरदार उधम’ बनाई है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के मौके पर ऐसे क्रांतिकारियों पर फिल्मों के निर्माण को शूजित बेहद जरूरी मानते हैं।

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फिल्म में विक्की कौशल सरदार उधम सिंह के किरदार में हैं...

शूजित सरकार कहते हैं, ‘जलियांवाला बाग जाने के बाद मैंने वहां पर जो देखा, पढ़ा, सुना और उस नरसंहार में बचे लोगों के बयानों के बारे में जाना तो मैं अंदर से हिल गया। वहां की दीवारों पर अब भी गोलियों के निशान हैं, ऐसा लगता है कि दीवारों पर अब भी खून लगा हुआ है। इस घटना से कई क्रांतिकारी जुड़े थे। मैं शहीद भगत सिंह पर भी एक फिल्म बनाना चाह रहा था, लेकिन उनके जीवन पर पहले कई फिल्में बन चुकी थीं। उसके बाद मैंने सरदार उधम सिंह के जीवन पर फिल्म बनाने का फैसला किया। उनके बारे में जानकारियां बहुत कम उपलब्ध हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी’।

‘जलियांवाला बाग में एक ट्रस्ट है, जिसमें काफी किताबें हैं, कई लेख हैं, एक अंग्रेजी अखबार है जिसके पास उनसे जुड़ी काफी चीजें थीं, ब्रिटिश लाइब्रेरी में काफी कुछ है, अपनी पार्लियामेंट लाइब्रेरी में उस दौर के कई लेख हैं, कांग्रेस रिपोर्ट है, हंटर कमीशन रिपोर्ट है, जिसमें सरदार उधम सिंह के बारे में जानकारियां मिलती हैं। मैंने फिल्म के लिए उन्हीं स्रोतों का उपयोग किया है। काक्सटन हॉल वाली घटना से पहले सरदार उधम सिंह के जीवन के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है। अमृतसर के खालसा अनाथालय, जिसमें उधम सिंह पले-बढ़े थे, उसके ट्रस्ट में कुछ डायरियां और रजिस्टर अभी भी हैं, जिनमें उधम सिंह के बारे में जानकारियां मिलती हैं। सिनेमा का हमारे समाज पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। किसी विचारधारा को समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिए मैं इसे एक अहम हथियार मानता हूं। हमारे क्रांतिकारियों और उनके बलिदान को लोगों के सामने लाने में सिनेमा बड़ा योगदान दे सकता है’।

‘जलियांवाला नरसंहार का बदला लेने के बाद सरदार उधम सिंह ने अपने संदेश में कहा था कि मैंने सिर्फ यही कोशिश की थी कि दुनिया इसे भूले नहीं, क्योंकि अगर दुनिया इसे भूल जाएगी तो ऐसी घटनाएं दोहराई जाएंगी। मैंने इसको ट्रेलर में शामिल किया है। फिल्म के माध्यम से मैंने यही सवाल उठाने की कोशिश की है कि सरदार उधम सिंह का बलिदान कुछ पंक्तियों में क्यों सिमट कर रह गया। कम से कम एक चैप्टर तो हो जिसमें हम उनके बारे में विस्तार से जान पाएं।’

ऐसा था सरदार उधर्म सिंह का जीवन

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में पैदा हुए सरदार उधम सिंह के पिता तेहाल सिंह रेलवे चौकीदार थे। उनके बचपन का नाम शेरा था। जन्म के कुछ समय बाद ही मां का देहांत हो गया। उसके कुछ वर्ष बाद पिता भी दुनिया छोड़कर चले गए। फिर शेरा और उनके बड़े भाई मुक्ता की परवरिश अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में हुई। जहां उन्हें उधम सिंह नाम दिया गया। साल 1917 में उनके भाई की भी मौत हो गई। साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया। उसी साल अपनी आंखों के सामने जलियांवाला नरसंहार देखने के बाद सरदार उधम सिंह ने उसके बदले की आग अपने सीने में 21 साल तक जलाए रखी।

शहीद भगत सिंह से प्रभावित होकर वह गदर पार्टी का हिस्सा बने। जो पूरी दुनिया में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने का काम करती थी। इसी पार्टी के लिए काम करते हुए उन्हें 1927 में गैर लाइसेंसी रिवॉल्वर और कारतूस ले जाते हुए गिरफ्तार किया गया और पांच साल की जेल हुई। उसके बाद वह क्रांतिकारियों से चंदा एकत्र करके विदेश चले गए। इस बीच वह जर्मनी और उसके बाद 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक निजी संस्था में काम करते हुए बदला लेने की योजना पर काम जारी रखा और एक सिपाही से रिवाल्वर खरीदी।

13 मार्च 1940 में लंदन के काक्सटन हाल में ईस्ट इंडिया कंपनी और सेंट्रल एशियन सोसाइटी की संयुक्त मीटिंग थी, जिसमें माइकल ओ डायर को भी शामिल होना था। उस मीटिंग में सरदार उधम सिंह भी किताब में रिवॉल्वर छिपा कर पहुंच गए। जैसे ही माइकल भाषण देने मंच की तरफ बढ़ा, सरदार उधम ने उसके सीने पर तड़ातड़ दो गोलियां दाग दी। उन्होंने वहां से भागने की कोशिश भी नहीं की।

सद्भाव की मिसाल

पुलिस कस्टडी में सरदार ऊधम सिंह अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद लिखते थे। जो भारत में रहने वाले हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों प्रमुख संप्रदायों को प्रतिबिंबित करता है। लंदन की कोर्ट में चले मुकदमे में उन्हें हत्या का दोषी करार दिया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इसके बाद सरदार भगत सिंह की तरह उन्हें भी शहीद-ए-आजम की उपाधि दी गई।


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