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ग्लोबल बाजार ढूंढने पर है जोरः नीना लाथ गुप्ता

उम्दा फिल्मों का साथ देने के लिए सरकारी ईकाई एनफडीसी है। गोवा में हर साल होने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में वह फिल्म बाजार आयोजन के जरिए क्वॉलिटी कहानियों को ग्लोबल मंच प्रदान करती है। उस मंच पर दुनिया भर के निर्माता खरीददार फिल्म फेस्टिवल के प्रोग्रामर व स्टूडियो साथ

By Monika SharmaEdited By: Published: Sat, 14 Nov 2015 02:33 PM (IST)Updated: Sat, 14 Nov 2015 04:11 PM (IST)
ग्लोबल बाजार ढूंढने पर है जोरः नीना लाथ गुप्ता

मुंबई। उम्दा फिल्मों का साथ देने के लिए सरकारी ईकाई एनफडीसी है। गोवा में हर साल होने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में वह फिल्म बाजार आयोजन के जरिए क्वॉलिटी कहानियों को ग्लोबल मंच प्रदान करती है। उस मंच पर दुनिया भर के निर्माता खरीददार फिल्म फेस्टिवल के प्रोग्रामर व स्टूडियो साथ आते हैं। हाल के बरसों की बात करें तो 'द गुड रोड', शिप ऑफ थीसियस', 'किस्सा', 'द लंचबॉक्स', 'कोर्ट', 'किल्ला' फिल्म बाजार की ही उपज हैं। उक्त में 'द गुड रोड' और 'कोर्ट' ऑस्कर तक गईं। अनूप सिंह की 'किस्सा' के लिए जर्मनी व दो और निर्माताओं के संग मिल 12 करोड़ अरेंज किए गए।

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इस साल रोमांटिक फिल्मों का लैब भी लाया गया है। इस बार फिल्म बाजार का नौवां संस्करण 20 नवंबर से गोवा में प्रारंभ हो रहा है। वह 14 नवंबर तक चलेगा। इस बार दुनिया भर के प्रमुख खरीददारों में रेमी बुराह, एंजेल एन, नैंसी जस्र्टमैन, नसरीन कबीर आ रहे हैं। रेमी बुराह यूरोप के सबसे बड़े सैटेलाइट राइट खरीददार हैं। नैंसी जस्र्टमैन ने 'कोर्ट' के ओवरसीज राइट्स खरीदे हैं।

दुनियाभर के प्रमुख फिल्म फेस्टिवल प्रोग्रामरों में क्रिश्चिन जेउन, पाओलो बर्टोलिन चार्ल्स सेशन, सर्गियो फेंट हैं। क्रिश्चियन कान फिल्म फेस्टिवल तो पाओलो वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के प्रोग्रामर हैं। विदेशी निर्माताओं में मार्क बेशैट व बेनी ड्रेशल प्रमुख हैं। दोनों ने 'द लंचबॉक्स' खरीदी थी।

एनएफडीसी की कार्यकारी निदेशक नीना लाथ गुप्ता ने फिल्म बाजार 2007 में स्थापित किया था। तब से लेकर अब आठ सालों के दरम्यान इसके ढांचे, मकसद व अप्रोच में काफी बदलाव आया है। बकौल नीना, 'हमारा मकसद व प्राथमिकता दोनों स्पष्ट हैं। आर्ट व रियलिज्म के नाम पर सिर्फ डार्क फिल्मों को प्रमोट नहीं किया जाएगा। 'दम लगा के हईसा' हमारे लैब की ही देन है। वह फील गुड फिल्म होने के साथ-साथ आला दर्जे की पटकथा की मिसाल है। हम साथ ही ज्यादा से ज्यादा नए अंतरराष्ट्रीय बाजार ढूंढ रहे हैं। विभिन्न देशों के साथ सह-निर्माण में आ रहे हैं। उससे हमें वहां के सैटेलाइट राइट तक मिलने में आसानी होती है। मसलन 'किस्सा' एक इंडो-जर्मन फिल्म है। उसे जर्मनी के टेलीविजन मार्केट में आसानी से एंट्री मिली है। हम अब अपनी फिल्मों को क्रमवार तौर पर ही रिलीज नहीं करेंगे। हम अपनी फिल्मों को एकसाथ सिनेमाघरों, टीवी, डीवीडी व यूट्यूब पर रिलीज करेंगे।'

यह बात साफ है कि मार्केट में अच्छी कहानियों की डिमांड है। ऐसे में हम बेहतरीन कहानियों के सबसे बड़े सप्लायर बनना चाहते हैं। वैसी कहानियों की खेप हमारी स्क्रीनरायटर्स लैब में तैयार होती है। फिल्म बाजार जैसे आयोजन में देश-दुनिया से निवेशक आते हैं। सौभाग्य से हमारी कहानियों में उनकी दिलचस्पी काफी है। हमारे लैब की सभी कहानियों को निर्माता मिल चुके हैं। कहानियों से मेरा तात्पर्य हार्डबाउंड स्क्रिप्ट है। यानी आप के पास स्टोरी, स्क्रिनप्ले और डायलॉग तीनों होने चाहिए। इतना ही नहीं, हम चुने गईं कहानियों के कहानीकारों को नैरेशन करने की कला भी सिखाते हैं। हम उन्हें खासतौर पर सात मिनट में अपनी कहानी का सार बताने की कला सिखाते हैं। यकीन मानिए हमारे उस सेशन में निवेशकों की काफी भीड़ रहती है। 'द लंचबॉक्स' उसी लैब की उपज थी और आप यकीन करेंगे उसे लेने वाले निवेशकों की लंबी कतारें लगी हुईं थीं। उस लैब के अलावा हमारी फिल्म प्रदर्शन श्रेणी भी है। वहां फिल्म बाजार की तरफ से सजेस्टेड फिल्में दिखाई जाती हैं। चार पहले उसके तहत 10 फिल्में दिखाई जाती थीं। अब 12 फिल्में दिखाई जाती हैं।

पूरे आयोजन की बात करें तो हम 150 फिल्में दिखा रहे हैं। वे सब न्यू एज सिनेमा हैं। उसके जरिए हम उन फिल्मों को वितरक गैप फाइनेंसर व अन्य देशों के फिल्म फेस्टिवल प्रोग्रामर मुहैया करवाते हैं। उक्त के अलावा हमने वर्क इन प्रोग्रेस लैब भी सेट अप किया है। उसके तहत दुनिया भर के दिग्गज फिल्मकार सेल्स एजेंट, अंतरराष्ट्रीय निर्माता, फिल्म समीक्षक और खरीददार आते हैं। वे उस लैब की फिल्मों पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं। मिसाल के तौर पर 'मिस लवली', 'तितली' उस लैब की फिल्में थीं। 'तितली' के सेशन में तो कान फिल्म फेस्टिवल के प्रोग्रामर आए हुए थे। वह भी उसके अनसर्टेन रिगार्ड कंपीटिशन व डायरेक्टर्स फोर्टनाइट एंड क्रिटिक श्रेणी के। उनके अमूल्य विचारों की बदौलत फिल्में निखर कर सामने आईं।

फिल्म बाजार आयोजन अब तक सफल रहा है। सरकार और फिल्म बिरादरी दोनों से हमें पूरा सहयोग मिला है। विधु विनोद चोपड़ा, सुधीर मिश्रा, प्रकाश झा और केतन मेहता के विचारों से हम फिल्म फेस्टिवल के फलक में अप्रत्याशित इजाफा कर पा रहे हैं। हमारे आयोजन में 38 से 40 देश के निर्माता, फिल्मकार, खरीददार आते हैं। अब तो अपने प्रोजेक्ट की पिचिंग के लिए न सिर्फ कहानीकार बल्कि उससे जुड़े कलाकार भी स्क्रीनरायटर्स लैब में आते हैं। पूरे जोशोखरोश से कहानी नरेट करते हैं। पिछले आठ सालों में हमने एक लंबा सफर तय कर लिया है। हम हर साल 150 से 200 प्रोजेक्ट को प्रमोट करने लगे हैं। हम उस किस्म की फिल्मों के प्रति फिल्मकारों में दिलचस्पी पैदा कर सके हैं, जो एकाध दशक पहले तक घाटे का सौदा मानी जाती थीं। मिसाल के तौर पर 'मंजूनाथ' व 'मांझी : द माउंटेनमैन' को वायकॉम तो 'तितली' व 'दम लगा के हईसा' को यशराज ने बनाया।
पूरे आयोजन का मकसद खुद को बतौर मददगार के तौर पर स्थापित करना है। हम एक पुल का काम कर रहे हैं। एनएफडीसी अब फिल्मों के निर्माण की बजाय उम्दा फिल्मों को उनके पोटेंशियल खरीददार, निर्माताओं तक पहुंचाने पर जोर दे रही है। उसकी वजह यह है कि कई फिल्मों में हमारी लागत नहीं निकल पाती। उदाहरण के तौर पर 'किस्सा' हम साथ ही देशभर में नए थिएटर खोलना चाहते हैं।
- अमित कर्ण

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