विवेक ओबराय को भाया साऊथ इंडियन फिल्मों का स्वाद, कई सारी और
वो जल्द ही मलयालम फिल्म लुसिफर में नज़र आयेंगे। फिल्म में साऊथ के सुपरस्टार मोहनलाल हैं जबकि एक्टर पृथ्वीराज इस फिल्म से निर्देशन शुरू करने जा रहे हैं।
मुंबई। राम गोपाल वर्मा की फिल्मों से लेकर कृष के विलेन बनने तक विवेक ओबराय ने बड़े परदे पर कई किरदार निभाएं। आजकल वो हिंदी फिल्मों में कम दिखते हैं क्योंकि उनको साऊथ भा गया है।
आपको याद होगा कि पिछले साल तामिल की एक फिल्म आई थी विवेगम। अजित स्टारर इस फिल्म में विवेक भी अहम् भूमिका में थे और इस फिल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई का तूफ़ान लाया था। अब विवेक ने कन्नड़ में भी अपना डेब्यू कर लिया है। उनकी कन्नड़ फिल्म का नाम रुस्तम है। पहली बार निर्देशन में उतरे रवि वर्मा की इस फिल्म की शूटिंग बुधवार को बेंगलुरु में शुरू हो गयी। इस फिल्म में शिव राजकुमार और श्रद्धा श्रीनाथ का लीड रोल होगा। अभी कुछ समय पहले ही विवेक ने इस फिल्म के लिए अपनी तैयारी शुरू की थी और कन्नड़ बोलना सीखा था। रुस्तम, एक गैंगस्टर की कहानी है जिसे बड़े बजट के साथ बनाया जा रहा है। फिल्म की शूटिंग का पहला शेड्यूल 15 अगस्त को खत्म होगा। फिल्म में विवेक का गैंगस्टर का अवतार है।
वैसे विवेक सिर्फ इसी फिल्म के साथ साऊथ का सफ़र पूरा नहीं करेंगे। वो जल्द ही मलयालम फिल्म लुसिफर में नज़र आयेंगे। फिल्म में साऊथ के सुपरस्टार मोहनलाल हैं जबकि एक्टर पृथ्वीराज इस फिल्म से निर्देशन शुरू करने जा रहे हैं। विवेक को राम चरण तेजा के साथ एक तेलुगु फिल्म में भी कास्ट किया गया है।
विवेक की फिल्म विवेगम ने दुनिया भर के बॉक्स ऑफ़िस पर जबरदस्त कमाई की थी और पहला वीकेंड ख़त्म होने के साथ 100 करोड़ का कलेक्शन कर लिया था ।शिवा निर्देशित इस तमिल फिल्म में अजित ने लीड रोल निभाया और फिल्म में विवेक ओबराय ,काजल अग्रवाल और श्रुति हसन की अहम् भूमिकाएं निभाई । इस फिल्म ने 25 करोड़ 83 लाख रूपये से ओपनिंग लेकर लोगों को भौचक्का कर दिया था ।
पिछले दिनों विवेक वेब सीरीज़ 'इनसाइड एज़' में भी दिखे थे । इस दौरान उन्होंने कहा था कि आज भारत में 40 करोड़ लोगों के पास मोबाइल है और जो इंटरनेट का उपयोग करते हैं। ऐसे में वह जब भी चाहे मेरी वेब सीरीज जहां चाहे वहां देख सकते हैं। जबकि भारत में आज भी बड़े शहरों को छोड़ दें तो फिल्म देखने जाने के लिए पूरा दिन लग सकता है। ऐसे में वेब सीरीज़ न सिर्फ लोगों का समय बचाती है बल्कि उन्हें कभी भी देखने का मौका देती है। जबकि फिल्मों की बात करें तो भारत में चीन से अधिक सिनेमाघर नहीं हैं। इसलिए भारत में जहां एक ओर ढाई करोड़ लोग मुश्किल से सिनेमा देख पाते हैं।
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