दरअसल: अच्छा है, सेंसर बोर्ड की गिरफ्त के बाहर हैं 'सेक्रेड गेम्स' जैसे शो!
पश्चिमी देशों में स्त्री-पुरुष संबंधों की सहजता अनुकरणीय है। फिल्में, टीवी शो और वेब सीरीज इस संदर्भ में उपयोगी हो सकते हैं।
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले एक हफ्ते से फ़िनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में हूँ। यहां डिज़ाइन आर्ट की पढ़ाई करने भारतीय छात्र आ रहे हैं। उनमें से कुछ एक सम्मेलन में मिले। फिल्मों और मनोरंजन जगत की बातों में ‘सेक्रेड गेम्स’ का ज़िक्र आया। सभी ने एक तरफ से इस वेब सीरीज की तारीफ की। उनके अनुसार भारत ने भी इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर अच्छी और प्रभावशाली मौजूदगी दर्ज की। मैंने उन्हें बताया कि भारत में तो इस सीरीज की निंदा और आलोचना हो रही है। सीरीज पर अनावश्यक अश्लीलता (न्यूड सीन) और राजनीतिक टिप्पणियों का आरोप है। कुछ लोगों की राय में अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी की यही सीमा है। वे हंस पड़े। उन्होंने लगभग एक स्वर में कहा कि भारतीय दर्शकों और समीक्षकों को ऐसे सीरीज का एक्सपोज़र नहीं है।
स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म पर ऐसे ‘ट्रू टू द लाइफ’ वेब सीरीज पसंद किए जाते हैं। सचमुच इस सीरीज पर चल रही प्रतिक्रियाओं और आपत्तियों को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। अपने देश में फिल्मों और मनोरंजन की बातें चलती हैं तो उसमें ‘फैमिली’ पर अतिरिक्त ज़ोर दिया जाता है। व्यापक अपील और दर्शकता के लिहाज से यह ज़रूरी भी है। सफल फिल्मों और टीवी शो की सूची बनाएं तो उनमें फैमिली फिल्मों और टीवी शो की संख्या ज्यादा होगी। हम एडल्ट एंटरटेनमेंट पर ध्यान ही नहीं देते। मान लिया गया है कि एडल्ट एंटरटेनमेंट में अनिवार्य रूप से अश्लीलता और हिंसा रहती है, इसलिए उसके दर्शक कम हो जाते हैं।
फिल्मों के लिए सीबीएफसी जिन फिल्मों के ‘ए’ सर्टिफिकेट देती है, उन्हें सैटेलाइट प्रसारण के लिए काट-छांट कर प्रस्तुत किया जाता है। कुछ अनजान समीक्षक एडल्ट फिल्मों की समीक्षा लिखते समय उसकी कमी बताते हैं कि उसे परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता। बलिहारी उनकी समझ और संवेदना की। हमारी समीक्षक बिरादरी मे अधिकांश सीबीएफसी के सदस्यों से भी अधिक नैतिकता दिखाते हैं। ऐसे ही समीक्षकों और टिप्पणीकारों का समूह नैतिकतावादियों से भी अधिक सक्रिय है। उनका तर्क है कि भारत में मनोरंजन एक पारिवारिक क्रिया है। सब कुछ साफ-सुथरा होना चाहिए। उन्हें बदलते मीडियम के स्वभाव और स्वरूप से मतलब नही है। ज़माना बदल चुका है। दर्शकों का नज़रिया बदल चुका है, लेकिन कुछ लोग लकीर के फ़क़ीर बने हुए हैं। उन्हें ‘सेक्रेड गेम्स’ के शारीरिक संबंध और सहवास के दृश्यों पर आपत्ति है।
कुछ उदार होने पर भी दबी जुबान से कहते सुनाई पड़ रहे हैं कि ऐसे दृश्यों के बगैर भी बात कही जा सकती थी। अभी सीबीएफसी के एक सदस्य की टिप्पणी में उनकी विवशता जाहिर हुई कि यह वेब सीरीज उनकी पकड़ से बाहर है। काश उनके पास इस पर पाबंदी लगाने के अधिकार होते। यह तो अच्छा हुआ है कि अभी तक स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म के शो सीबीएफसी की गिरफ्त के बाहर हैं। वे दर्शकों को ज़रूरी एक्सपोज़र दे रहे हैं। अंतरंग दृश्यों को लगातार देखने से स्त्री अंगों के प्रति पुरुष दर्शकों की जिज्ञासा खत्म होगी। आप यकीन मानें इससे उनके सामाजिक व्यवहार और ‘वोएरिज्म’ में भी फर्क आएगा।
कहने के लिए इंटरनेट पर पोर्न उपलब्ध है, लेकिन सच्चाई है कि ज्यादातर दर्शक उसे देखने का नैतिक साहस नहीं कर पाते। वे फिल्मों और गानों के अश्लील दृश्यों से अपनी मानसिक क्षुधा शांत करते हैं। कभी रियल में कम कपड़ों में कोई लड़की दिखे तो उतावले हो उठते हैं। यह अनायास नहीं है कि बलात्कार की घटनाओं का एक कारण लड़कियों की आधुनिक ड्रेसिंग बतायी जाती है। विजुअल माध्यम में अधिकाधिक अंतरंग दृश्यों के चित्रण से स्त्री शरीर के प्रति दर्शकों का कौतूहल कम और खत्म होगा। पश्चिमी देशों में स्त्री-पुरुष संबंधों की सहजता अनुकरणीय है। फिल्में, टीवी शो और वेब सीरीज इस संदर्भ में उपयोगी हो सकते हैं। हमें हर तरह की पाबंदी हटा कर हर उम्र के दर्शकों के लिए कार्यक्रम बनाए चाहिए।
‘सेक्रेड गेम्स’ की राजनीतिक टिप्पणियों से भी शिकायतें हैं। दरअसल, हमारी फिल्मों और शो में राजनीतिक टिप्पणियों और चित्रण से बचने की कोशिश रहती है। सभी विवादों से बचना चाहते हैं। इस वेब सीरीज में राजनीति और अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने की राजनीति पर सीधा कटाक्ष है। राजनीतिक भ्रष्टाचार का भी उल्लेख किया गया है। हमें अपने इतिहास, अतीत और वर्तमान के राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं पर क्रिटिकल होने की जरूत है। ‘सेक्रेड गेम्स’ उम्दा प्रस्थान है। इसकी सराहना होनी चाहिए।