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Bollywood Book: पॉप क्वीन ऊषा उथप की कहानी लेकर आए हैं विकास कुमार झा, जानिए किताब में क्या है ख़ास

विकास कुमार झा ने किताब उल्लास की नाव को काफी रोचक बनाया है। किताब में सिर्फ उषा उथुप ही मौजूद हों ऐसा नहीं है। पढ़िए पूरा रिव्यू

By Rajat SinghEdited By: Published: Sun, 23 Aug 2020 03:45 PM (IST)Updated: Sun, 23 Aug 2020 03:45 PM (IST)
Bollywood Book: पॉप क्वीन ऊषा उथप की कहानी लेकर आए हैं विकास कुमार झा, जानिए किताब में क्या है ख़ास
Bollywood Book: पॉप क्वीन ऊषा उथप की कहानी लेकर आए हैं विकास कुमार झा, जानिए किताब में क्या है ख़ास

नई दिल्ली, जेएनएन। भारत में पॉप संगीत की महारानी उषा उथुप के जीवन और कला यात्रा को समेटते हुए विकास कुमार झा ने किताब 'उल्लास की नाव' को काफी रोचक बनाया है। फिल्मी पटकथा की तरह रोचक कहानियों, बेबाक संस्मरणों और जीवन से संबंधित ढेरों पक्षों को कुशलता से समायोजित करते हुए लेखक ने कई परतों वाली जीवनकथा कही है। 

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किताब में सिर्फ उषा उथुप ही मौजूद हों, ऐसा नहीं है। उनके पिता बैद्यनाथ सोमेश्वर सामी, जिन्हें बंबई पुलिस का 'शरलॉक होम्स' कहा जाता था, के रोमांचक कारनामे पढ़ते हुए यह लगता ही नहीं कि आप किसी गायिका की जीवनी पढ़ रहे हैं। एक लंबा अध्याय, सामी के उन तमाम ऑपरेशन के बारे में दिलचस्प ढंग से ब्यौरेवार लिखा गया है, जिसे उनके द्वारा सुलझाए गए केसों की गुत्थियों को दम साधे आप पढ़ते जाते हैं। बहरहाल, आत्मविश्वास से भरी उनकी बेटी की इस असाधारण जीवनी को पढ़कर चकित होने के बहुत से कारण हैं। लेखक ने यह वाजिब ही लिखा है- 'उषा जब माइक थामकर अपना मशहूर गाना शान से गाती हैं तो लगता है कि बैद्यनाथ सोमेश्वर सामी का ही शालीन रुआब है।'

उषा के साथ उनकी दो बड़ी बहनों इंदिरा व उमा की चर्चा भी अतीत के पुराने पन्नों को एक बार फिर से जीवंत करती है, जो 'सामी सिस्टर्स' के नाम से बंबई के अभिजात आयोजनों में अंग्रेजी गानों के लिए मशहूर थीं। वे मंगेशकर सिस्टर्स की तरह ही पचास के दशक में शोहरत की बुलंदियों पर थीं और उन्हें 'भारत की ऐंड्रयूज सिस्टर्स' कहा जाता था। इन बहनों का संस्मरण प्रभावी ढंग से उषा उथुप के जीवन के तमाम अवसरों की निशानदेही करता है। यह एक संयोग ही है कि सामी सिस्टर्स ने जहां सत्तर के दशक तक आते-आते अपना गायन लगभग छोड़ दिया था, उसी दौर में उषा एक बड़ी गायिका के तौर पर उभरकर पाश्चात्य गीतों की अपनी पारिवारिक परंपरा को कायम रखती हैं। किताब सिर्फ संगीत ही नहीं, उषा उथुप की पढ़ाई और जे.जे. स्कूल ऑफ आट्र्स के उनके अनुभव, उसी अनुपात में दर्ज करती है, जितनी कि उनकी कहानी कहने के लिए सामग्री की आवश्यकता है। यह जानना रोचक है कि अमृता शेरगिल का सौंदर्य उन्हें बेहद पवित्र और रहस्यमय लगता था। आज अगर अमृता जीवित होतीं तो वह उन्हें खत लिखतीं और उनसे दोस्ती गांठतीं। इस जीवनी का एक सलोना पक्ष यह भी है कि लेखक ने बड़ी नाजुकी के साथ उनके स्त्री मन को भी खूबसूरती से उभारा है। दादर, मुंबई में रहकर किस तरह वे जंगली बादाम, नीम व इमली के पेड़ों की छवि को यहां दिखने वाले बरगद, महोगनी के दरख्तों में ढूंढ़ती- यह सब बारीकी से शामिल रहा है।

छोटे अध्यायों में बांधी गई इस जीवनी के हर अध्याय को एक सारगर्भित शीर्षक दिया गया है। एक चौकन्नी दृष्टि से पाठ सामग्री का संपादन किया गया है, जिसमें कहीं भी अतिरिक्त उलझाव या स्फीति दिखाई नहीं देती। 'अपनी आवाज सुनो' एक ऐसा ही अध्याय है, जिसमें 'हरे रामा हरे कृष्णा' फिल्म के गीत के विवाद को तफसील से बयां किया गया है। उनके हिस्से आने वाला गाना 'दम मारो दम', जिसका रिहर्सल उनसे कराए जाने के बाद गीत आशा भोंसले से गवाया गया। आर.डी. बर्मन ने फिल्म का दूसरा गीत, जो जीनत अमान पर फिल्माया जाना था, उसका अंग्रेजी हिस्से वाला भाग उषा को दिया। बाद में यह गीत 'आई लव यू/कांट यू सी दैट आई रियली डू' इतिहास बन गया। इस गीत के संदर्भ से यह बात उभरती है कि संघर्षशील गायिका के रूप में भी उथुप ने हिम्मत नहीं हारी और बाद में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गईं।

किताब में उनकी ईमानदारी, साफगोई और स्पष्ट कह देने की युक्ति प्रभावित करती है। उनका यह तर्क 'संगीत मेरा पेशा नहीं है मैं बस संवाद बनाती हूं', उनके पूरे करियर और व्यक्तित्व को खुलकर अभिव्यक्ति देता है। उन्हें किसी से गिला-शिकवा नहीं है और सिनेमा की दुनिया में अपने अवसर कम कर दिए जाने के बावजूद भी वह किसी के प्रति कटु नहीं हुईं। शायद यही बात है, जो उनके संगीत को आनंद के अतिरेक तक पहुंचाने में सक्षम बनाती है। यह अकारण नहीं है कि 1968 में जब उन्होंने बाकायदा गाना शुरू किया तो हैरी बेलाफोंटे की संवाद कला उनके लिए प्रस्तुति का सांचा थी। खुशवंत सिंह ने सबसे पहले 'द इलस्ट्रेटेड वीकली' में उनके बारे में लिखा- 'क्वीन ऑफ पॉप'। इंदिरा गांधी ने प्यार से भरकर उनसे पूछा था- 'क्या तुम अपना नया म्युजिक एल्बम मुझे देना चाहोगी?'

यह किताब इत्मीनान से पढ़ने का आमंत्रण है, जो एक बेलौस गायिका को समझने की न सिर्फ दृष्टि देती है, बल्कि उनके जीवन के विविध प्रसंगों को रोचकता से उजागर भी करती है। उनके गाए मशहूर गीतों का अलग-अलग अध्यायों में प्रयोग और उनके बनने की कहानी, इस जीवनी को लिरिकल भी बनाते हैं। चटख बंगलौरी कांजीवरम साड़ी, माथे पर गोल सा टीका लगाए और जूड़े में वेणी सजाए उषा उथुप को आधुनिक संदर्भों में समझने का यह एक सुनहरा मौका है।

यतीन्द्र मिश्र


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