लगने लगे फिर सितारों के मेले, मल्टीस्टारर फिल्मों का फार्मूला अक्सर बाक्स आफिस पर रहा हिट
मल्टीस्टारर फिल्मों का फार्मूला अक्सर बाक्स आफिस पर हिट रहा है। जब एक टिकट के पैसे में दर्शकों को चार से पांच हीरो-हीरोइन देखने को मिल रहे हैं तो उनके भी पैसे वसूल होते हैं। आने वाले दिनों में सर्कस ब्रह्मास्त्र जैसी कई मल्टीस्टारर फिल्में आएंगी।
प्रियंका सिंह। साल 1965 में रिलीज हुई फिल्म वक्त में बलराज साहनी, राजकुमार, सुनील दत्त, शशि कपूर, शर्मिला टैगोर, साधना समेत कई दिग्गज कलाकार थे। उस फिल्म का जिक्र मल्टीस्टारर फिल्मों में सबसे पहले होता है। शोले, अमर अकबर एंथोनी, मुकद्दर का सिकंदर, सौदागर, बार्डर, दिल चाहता है, कभी खुशी कभी गम, ओमकारा, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, दिल धड़कने दो जैसी तमाम ऐसे फिल्में बनी हैं, जिनमें सितारों की भरमार थी। महानायक अमिताभ बच्चन ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने शोले, अमर अकबर एंथोनी, त्रिशूल, काला पत्थर, शान, नसीब, हम, कांटें, कभी खुशी कभी गम जैसी तमाम मल्टीस्टारर फिल्मों में काम किया है। उनके साथ फिल्में कर चुके दिवंगत अभिनेता ऋषि कपूर ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि जब उन्होंने शुरुआत की थी, तो मल्टीस्टारर फिल्मों का जमाना था।
बकौल ऋषि, 'दर्शक बहुत मासूम थे, उन्हें एंटरटेनमेंट चाहिए था। पिछली सदी के सातवें दशक में तकरीबन तीन से चार फिल्में मिलने और खोने वाले फॉर्मूला पर बना करती थीं। दूसरा फॉर्मूला था अमीर और गरीब लड़की-लड़के के बीच प्यार का। हम सब ऐसी ही फिल्में करते थे, जिसमें मल्टीपल स्टारकास्ट होती थी। उसमें सबसे बड़ी छाप बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन) की थी। हमने अपने मन से उन फिल्मों में काम किया था, किसी ने जबरदस्ती नहीं की थी। उन दिनों ऐसी ही फिल्में इसलिए भी बनती थी कि पांच रूपये की टिकट में दर्शकों को दो से तीन हीरो तो चाहिए ही होते थे।'
कंटेंट पर सब कुछ चलता है: देओल परिवार से सजी फिल्म अपने 2 फिल्म के निर्माता दीपक मुकुट कहते हैं कि पहले के दौर में मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा, राजकुमार कोहली लगभग हर किसी ने मल्टीस्टारर फिल्में बनाई हैं। मेरे पिता डिस्ट्रीब्यूटर रहे हैं, उन्होंने कई मल्टीस्टारर फिल्में रिलीज की हैं। वह कमर्शियली हिट होती थीं। दौर भले ही बदला हो, लेकिन सब कुछ किरदार और स्क्रिप्ट पर निर्भर करता है। पहले भी कहानियां में उतने कलाकारों की जरुरत होती थी, इसलिए मल्टीस्टारर फिल्में बनती थी। निर्माता कभी ऐसे नहीं सोचते हैं कि पहले कलाकारों को साइन कर लेते हैं, फिर उसके हिसाब से स्क्रिप्ट लिखवा लेंगें, ऐसे तो वह एक प्रोजेक्ट हो जाएगा। फिल्म वाली बात नहीं होगी। आरआरआर फिल्म मल्टीस्टारर फिल्म थी, दर्शकों को लार्जर दैन लाइफ वाली कहानियां पसंद होती हैं। 300 रूपये की टिकट में अगर वह बड़ी चीजें और ज्यादा स्टार्स देखते हैं, तो उन्हें मजा आता है। हालांकि आज की तारीख में एक्टर्स सिर्फ अपने दम पर दर्शकों को नहीं खिंच सकते हैं। सब कुछ कंटेंट पर चल रहा है। आरआरआर में भी कंटेंट था। दर्शक कनेक्ट करेंगे, तो मल्टीस्टारर फिल्म में नए कलाकार होंगे, तो भी फिल्म चलेगी।
कलाकारों को साथ लाना है चुनौती: हाल ही में रिलीज हुई फिल्म अनिल कपूर, वरुण धवन, नीतू कपूर, कियारा आडवाणी अभिनीत फिल्म जुगजुग जीयो फिल्म का निर्देशन करने वाले निर्देशक राज मेहता कहते हैं कि जब मल्टीस्टारर फिल्में बनती हैं, तो सभी कलाकारों को साथ लाना सबसे बड़ी चुनौती होती है। डेट्स की दिक्कतें तो मैनेज हो जाती हैं। लेकिन जिन कलाकारों के बारे में आपने सोचा है, उन्हें एक साथ बोर्ड पर लाना आसान नहीं होता है। अब जैसे जुगजुग जीयो फिल्म में मैंने स्क्रिप्ट लिखते समय ही अनिल कपूर सर को ध्यान में रखकर किरदार लिखा था। किस्मत अच्छी थी कि उन्होंने फिल्म कर ली। अगर वह नहीं करते तो मेरे लिए दिक्कत हो जाती। मैं सौदागर, रामलखन जैसी मल्टीस्टारर फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं। मेरी समझ मल्टीस्टारर फिल्मों को लेकर वहीं से आई है। बतौर निर्देशक जो चुनौतियां होती हैं, वह इस पर निर्भर करती हैं कि आप किन कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं। मेरे साथ तो नहीं हुआ है, लेकिन सुना है कि कई बार कलाकारों के ईगो क्लैश हो जाते हैं। हालांकि मैंने यही देखा है कि जब ज्यादा कलाकार साथ आते हैं, तो वह एक-दूसरे को सपोर्ट ही करते हैं। अब जैसे गुड न्यूज फिल्म के दौरान कई बार ऐसा हुआ कि मैं कोई लाइन अक्षय कुमार के पास लेकर गया, तो उन्होंने कहा कि यह दिलजीत दोसांझ को दे दो, उन पर ज्यादा सही लगेगा। निर्देशक होने के नाते इस बात को लेकर सतर्क रहना पड़ता है कि हर किसी का काम करने का अनुभव अच्छा हो। अब जैसे वरुण और कियारा के साथ मैं पहले भी काम कर चुका हूं, तो उनके साथ दोस्ताना रिश्ता है। अनिल सर और नीतू मैम से बात करने का और काम करने का तरीका बदल जाता था। सीनियर कलाकारों के साथ अच्छे से पेश आकर कैसे काम निकलवाया जाए, वह केयरफुल होकर करना पड़ता है। निर्देशक का काम होता है कि सभी कलाकारों को साथ लाकर अपने विजन को पर्दे पर उतारे, लेकिन इस प्रकिया में मजा आना चाहिए। सेट के सभी कलाकारों को जब खुश रखेंगे, तो वह पर्दे पर दिखता है।
हर किरदार को देनी होती है जगह: मल्टीस्टारर फिल्मों में हर कलाकार को महत्व देने की जिम्मेदारी सबसे पहले लेखकों पर आती है। लिखते समय ही उन्हें इन बातों का ख्याल रखना होता है। राष्ट्र कवच ओम फिल्म के स्क्रीनप्ले राइटर राज सलूजा कहते हैं कि मल्टीस्टारर फिल्में लिखने की प्रक्रिया सोलो कलाकारों वाली फिल्में लिखने से ज्यादा मुश्किल है। मल्टीस्टारर का मतलब ही यही होता है कि फिल्म में जितने कलाकार हैं, उनको जगह देना होता है। सिर्फ कलाकार को ही नहीं, बल्कि उस कहानी के हर किरदार को जगह देनी होती है। किरदार को जगह नहीं, मिली तो कलाकार का काम करना बेकार हो जाएगा। लेखन के क्षेत्र में कहा जाता है कि हर किरादर का एक सर्कल होना जरूरी है। एक पूरा आर्क होना चाहिए, जो फिल्म के आखिरी में खत्म हो जाना चाहिए, अधूरा नहीं रहना चाहिए। बड़े कलाकारों को साथा लाना अलग ही चैलेंज होता है। निर्माताओं पर दबाव होता है, अभिनेताओं को उनकी जगह देनी होती है। हर अभिनेता जानना चाहता है कि मेरा किरदार कैसा है, सामने वाले कलाकार का काम कितना होगा।
बॉलीवुड में यह चीजें होती है कि फलां कलाकार से ज्यादा अच्छा किरदार उनका हो। हमें सबको बैलेंस करना होता है। कलाकारों में जब ईगो नहीं होता है, तो काम आसानी से हो जाता है। हालांकि लेखकों को मल्टीस्टारर कहानियां लिखने में मजा बहुत आता है। स्टार्स के लिए मल्टी ट्रैक्स लिखे जा सकते हैं, जिससे दर्शकों को कहानी के साथ बांधे रखने में आसानी होती है। विक्रम फिल्म कुछ दिनों पहले रिलीज हुई है, फिल्म में बहुत सारे किरदार हैं, कई सारी कहानियां एक साथ चल रही हैं। अंत में सारी कहानियां जाकर मिल जाती हैं और दर्शकों को फिल्म समझ भी आ जाती है। कहानी दर्शकों को अच्छी लगी, इसलिए फिल्म ने कमाई की। आगे भी हम ऐसी फिल्में लिख रहे हैं। दृश्यम फिल्म की तरह ही एक थ्रिलर फिल्म लिखी है, जिसमें चार-पांच कहानियां साथ चलती है, जो अंत में जुड़ जाएंगी। ऐसे में फिल्म में कई कलाकार होंगे। एक-दो किरदारों वाली कहानियां कई बार इंटरवल के बाद थोडी सी प्रेडिक्टेबल हो जाती हैं। मल्टीस्टारर में रोमांच बना रहता है।
कलाकार नहीं होते इनसिक्योर: मल्टीस्टारर फिल्मों को लेकर कई बार खबरें आती रही हैं कि कलाकारों में इनसिक्योरिटी होती है कि कहीं सामने वाले कलाकार का रोल उनसे बड़ा तो नहीं। मल्टीस्टारर फिल्म लूडो के अभिनेता राजकुमार राव कहते हैं कि एक कलाकार कभी दूसरे कलाकार से इनसिक्योर नहीं महसूस कर सकता है। फिल्में बनाना किसी एक शख्स का काम नहीं है। एक फिल्म बनाने के पीछे पूरी टीम मेहनत करती है। सिनेमा टीमवर्क है। मुझे मजा आता है, क्योंकि इतने सारे प्रतिभाशाली लोग एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान देते हैं। अच्छे कलाकार के साथ काम करके मुझे सीखने को मिलता है। काम भी अच्छा होता है। मैं अब भी सीख रहा हूं। मुझे नए लोगों से मिलना और उनसे सीखना पसंद है।
बढ़ता है बजट: सोलो स्टार वाली फिल्मों के मुकाबले मल्टीस्टारर फिल्मों का बजट यकीनन ज्यादा होता है। दीपक कहते हैं कि जब चार बड़े एक्टर होते हैं, तो उनकी जरुरत अलग होती है, उनका ख्याल रखना पड़ता है। बजट देखकर फिल्में बनाई जाती हैं, लेकिन किरदारों के साथ समझौता नहीं करता हैं। अपने 2 में धर्मेंद्र, सनी देओल, बॉबी देओल चाहिए, तो उनको लेना ही होगा। मैं तो चाहता हूं कट्रीना कैफ भी वापस आ जाए, शिल्पा शेट्टी टीम को ज्वाइन करें। अगर वह कलाकार नहीं मिलते हैं, तो किसी और को लेने की सोचेंगे। किरदार की डिमांड के मुताबिक कौन वह किरदार निभा सकता है, वह सोचा जाता है। कई बार जो कलाकार चाहिए होता है, तो दूसरे को लेना पड़ता है। दूसरे विकल्प भी तैयार रखने पड़ते हैं। मल्टीस्टारर की जरुरत अगर स्क्रिप्ट में हैं, तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है। फिल्म को कंट्रोल में बनाना मकसद होता है, लेकिन समझौता कोई निर्माता नहीं करते हैं। जब सिनेमा बनकर आता है, तो लोग विजुअल देखते हैं, जो अच्छा बनना चाहिए, स्क्रिप्ट से मैच करना चाहिए। मैं सबसे पहले स्क्रिप्ट देखता हूं।
मल्टीस्टारर फिल्मों में आता है मजा: रामलखन, त्रिदेव, सौदागर जैसी कई मल्टीस्टारर फिल्में कर चुके अभिनेता जैकी श्रॉफ की आगामी फिल्म बाप ऑफ ऑल फिल्म्स होगी, जिसमें उनके साथ सनी देओल, मिथुन चक्रवर्ती, संजय दत्त नजर आएंगे। जैकी कहते हैं सेट पर जब बहुत सारे कलाकार होते हैं, तो मजा आता है, न की हमारे बीच कोई प्रतियोगिता होती है। इस फिल्म में तो सब मेरे दोस्त है, संजय बाबा, सनी भैया, मिथुन दादा, इनमें मैंने हर किसी के साथ कई फिल्में पहले की हैं। पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। सेट पर हमारे बीच बातें चलती रहती हैं पता ही नहीं चलता है वक्त कहां गुजर गया। मैंने तो कर्मा, सौदागर जैसी कई बड़ी मल्टीस्टारर फिल्मों में काम किया है। दिग्गज कलाकारों के साथ काम करने का उनसे सीखने का मौका मिला। दिलीप साहब के साथ कर्मा, सौदागर, हीरो फिल्म में शम्मी जी (शम्मी कपूर), हरी भाई (संजीव कपूर) सभी बड़े कलाकार थे। जिन्हें हम पर्दे पर देखा करते थे, उनके साथ स्क्रीन पर स्पेस मिल रहा था। मैं उसी फ्रेम में खड़ा था, जिसमें दिलीप साहब, राजकुमार खड़े थे। जो बहुत बड़ी बात थी।