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इस कॉमेडी फिल्म की शूटिंग के दौरान हो गया था श्रीदेवी के पिता का निधन, तब ऐसे संभाली थी शूटिंग

दवंगत निर्देशक यश चोपड़ा की बेहतरीन फिल्मों में ‘लम्हे’ को शुमार किया जाता है। यह आम प्रेम कहानी से बेहद अलग थी। इसमें दिवंगत एक्ट्रेस श्रीदेवी ने चुलबुली और संजीदा दोनों तरह के किरदार निभाए थे। अनिल कपूर का किरदार भी काफी अलग था।

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 03:36 PM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 03:36 PM (IST)
इस कॉमेडी फिल्म की शूटिंग के दौरान हो गया था श्रीदेवी के पिता का निधन, तब ऐसे संभाली थी शूटिंग
Photo Credit - Sridevi Instagram Fane Page

स्मिता श्रीवास्तव, जेएनएन। दवंगत निर्देशक यश चोपड़ा की बेहतरीन फिल्मों में ‘लम्हे’ को शुमार किया जाता है। यह आम प्रेम कहानी से बेहद अलग थी। इसमें दिवंगत एक्ट्रेस श्रीदेवी ने चुलबुली और संजीदा दोनों तरह के किरदार निभाए थे। अनिल कपूर का किरदार भी काफी अलग था। उनके दोस्त के किरदार में अनुपम खेर ने अपनी छाप छोड़ी थी। इस फिल्म की रिलीज को 29 साल पूरे हो गए हैं। फिल्म से जुड़ी यादों को इसकी लेखिका हनी ईरानी ने साझा किया है...

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‘लम्हे’ से पहले मैं ‘आईना’ की कहानी लिख रही थी। वह पहले टीवी सीरियल बनने वाला था। यश जी (यश चोपड़ा) को कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने कहा कि टीवी सीरियल मत बनाओ, इस पर फिल्म बना दो। वह मेरा पहला काम था और उसे काफी सराहा गया था। मैं बहुत उत्साहित थी। फिर उन्होंने कहा कि हनी मेरे पास दस-पंद्रह साल से एक आइडिया है। कई लेखकों के साथ बात की, लेकिन बात कुछ बनी नहीं। ‘आईना’ तुमने इतने अच्छे से लिखा है तो तुम्हें सुनाता हूं। देखो अगर तुम कुछ कर सकती हो तो। उन्होंने पांच मिनट में ‘लम्हे’ का आइडिया सुनाया।

वह आइडिया ऐसे था कि एक लड़की है, एक लड़का है। लड़का लड़की से प्यार करता है, लेकिन लड़की किसी और से प्यार करती है। उन दोनों की शादी हो जाती है। फिर लड़की मर जाती है। उसकी बच्ची पीछे रह जाती है। मैंने सोचा बहुत ही कंफ्यूजिंग कहानी है। मगर मैं उत्साहित थी और यश जी को इंप्रेस करना चाहती थी। मैंने 15 दिन में ही इसका ढांचा बना लिया। उसके बाद यश जी और उनकी पत्नी पैम (पामेला चोपड़ा) को सुनाया। दोनों सुनते रहे। पैम बहुत भावुक हो गईं। मैंने कहा यह लाइन है। इस पर अच्छा स्क्रीन प्ले बन सकता है।

यश जी ने सुना और फिर बिना कुछ कहे उठकर बाहर चले गए। मैं तो रोने लग गई। मुझे लगा कि गड़बड़ कर दी। कुछ दिन और ले लेने चाहिए थे। तब पैम ने कहा यह बहुत अच्छी है। मुझे खुद समझ नहीं आ रहा कि यश जी ने ऐसे कैसे प्रतिक्रिया दी। करीब आधे घंटे के बाद यश जी कमरे में वापस आए। उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा कि मैं तुम्हें बता नहीं सकता हूं कि तुमने क्या किया है। यह शानदार है। कल से काम शुरू कर देते हैं। इसकी कहानी मैंने शुरुआत से ही राजस्थान में गढ़ी थी। मुझे वहां का परिवेश और उसका रंग बहुत अच्छा लगता है।

वहां आलीशान हवेलियां, संस्कृति और रेगिस्तान का अकेलापन है। वह मुझे काफी पसंद है। मुझे लगा कि पहले हिस्से में लड़की लड़के से थोड़ा बड़ी होनी चाहिए, ताकि यह सोच रहे कि लड़की उम्र में बड़ी है, ऐसे में नायक उससे शादी के बारे में कैसे सोच सकता है। हमारे समाज में शादी के लिए लड़की अगर लड़के से बड़ी हो तो लोगों को थोड़ी तकलीफ होती है, इसलिए ऐसा प्लॉट रखा था कि दोनों का मेल नहीं हो सकता। वो किसी और को प्यार करती है। अब बच्ची पैदा हुई तो वह अनिल के किरदार कुंवर जी से प्यार करने लगती है, इसलिए चीजें थोड़ा आसान हुईं। फिल्म में राही मासूम रजा ने शानदार डायलॉग लिखे थे। उनकी कमी मुझे हमेशा महसूस होती है।

‘लम्हे’ की शूटिंग के दौरान मैं राजस्थान, लंदन सभी जगह मौजूद रही थी। मैं सेट पर पूरे समय रहती थी। यश जी की जिन फिल्मों में मैंने काम किया उनमें हमेशा सेट पर मौजूद रही। कई बार सेट पर इंप्रोवाइजेशन भी होता था। जैसे फिल्म में एक सीन था जहां पर पूजा का दाई जी फेशियल कर रही हैं और उसके बालों में सफेदी लग जाती है तो वह कहती है कि दाई जी मैं भी कुंवर जी के साथ अच्छी लगूंगी जब मेरे बाल सफेद होंगे। दाई जी समझ जाती हैं कि वह क्या कहना चाहती है। वह सीन सेट पर ही लिखा गया था। वह स्क्रिप्ट में था ही नहीं। ऐसे ही इस फिल्म से जुड़े ढेर सारे किस्से हैं। फिल्म बनने के दौरान ही श्रीदेवी के पिता का निधन हो गया था।

तब हम विदेश में थे। उन्हें वापस लौटना पड़ा। सारी यूनिट वहीं रुकी रही। वह वापस आईं तो दुखी थीं। उसी वक्त उन्हें कॉमेडी सीन करना था। उन्होंने उस सीन को इतनी खूबसूरती से किया कि लगा ही नहीं कि वह इतने दुख में हैं। ‘ कभी मैं कहूं’ गाने के दौरान जब श्रीदेवी और अनिल कपूर अंगूर के टब में कूद रहे होते हैं तब अनिल गिर पड़े थे। उनके पैर में हेयर लाइन फ्रैक्चर हो गया था। दर्द होने के बावजूद उन्होंने अपना शॉट पूरा किया था। यह काम के प्रति उनका समर्पण और प्रोफेशनलिज्म दर्शाता है। एक दो सीन लिखना कठिन भी था।

खास तौर पर जब पूजा कहती है कि मैं आपसे प्यार करती हूं कुंवर जी। इसी तरह जब अनिता और पूजा कॉफी पीने बैठती हैं और कुंवर जी को लेकर दोनों बात करती हैं। अनिता कहती है कि तुम उसकी जिम्मेदारी हो। वह मेरा पसंदीदा सीन है। उसमें तमीज, तहजीब के साथ चालाकी भी है। उसके अलावा क्लाइमेक्स। फिल्म का अंत शुरुआत से ही यही रखा गया था। कई लोगों ने कहा कि अंत बहुत खतरनाक है। लोग उसे स्वीकार नहीं करेंगे। हम लोगों ने उसके दो-तीन वर्जन और लिखे। फिर यश जी ने कहा कि हम लोग क्या कर रहे हैं।

जो चीज सोच कर हम लोग एक्साइटेड हुए। पूरी फिल्म शूट कर दी अब लोगों से डरकर अंत बदल रहे हैं। उन्होंने साहस दिखाया। कहा, अगर फिल्म नहीं चली तो कोई बात नहीं। मगर अंत यही रहेगा। वह फिल्म के निर्माता थे। उन्हें पता था कि फिल्म नहीं चलेगी तो कितना नुकसान होगा। यह वाकई हिम्मत की बात थी। फिल्म जब रिलीज हुई तो नहीं चली। लोगों ने पूजा को कुंवर की बेटी कहा, जबकि फिल्म में बहुत बार बताया गया कि पूजा बेटी नहीं है। विदेश में फिल्म खूब चली। उसे कल्ट फिल्मों में शुमार किया गया। श्रीदेवी और अनिल कपूर की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल किया गया। यश जी की बेस्ट फिल्म कहा गया। बहरहाल इस कहानी में इतनी लेयर थीं कि लिखने में मजा आ गया था।


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