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'पुष्पा इम्पॉसिबल' ने महिलाओं को लेकर कहा, 'उनके लिए मानसिक आत्मनिर्भरता जरूरी'

औरत किसी भी भूमिका में हो वह हर स्थान पर संपूर्ण होती है। मां और बीवी होकर अपनी भूमिकाओं कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का अच्छी तरह से निर्वहन करना कोई छोटी बात नहीं है। रही बात आत्मनिर्भरता की तो महिलाओं के लिए मानसिक आत्मनिर्भरता सबसे ज्यादा जरूरी है।

By Priti KushwahaEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2022 12:30 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 12:30 PM (IST)
'पुष्पा इम्पॉसिबल' ने महिलाओं को लेकर कहा, 'उनके लिए मानसिक आत्मनिर्भरता जरूरी'
Photo Credit : karuna kanchan Instagram Photo Screenshot

दीपेश पांडेय। शो 'भागे रे मन' व 'देवांशी' में अभिनय का जलवा दिखा चुकी करुणा पांडे इन दिनों सोनी सब टीवी के शो 'पुष्पा इम्पॉसिबल' में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। टीवी और हिंदी सिनेमा की दुनिया में करीब दो दशक से सक्रिय करुणा इस शो में आत्मनिर्भर और जिम्मेदार मां का किरदार निभा रही हैं। करुणा से इस शो, उनके करियर और महिलाओं की आत्मनिर्भरता से जुड़े मुद्दों पर बातचीत...

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मिलती जुलती जिंदगी

इस शो और अपने किरदार के बारे में करुणा कहती हैं, इस शो के लिए मैंने करीब दो-तीन महीने पहले आडिशन दिया था। जब मैंने इस किरदार के बारे में सुना तो इसका ग्राफ मुझे बहुत अच्छा लगा। स्नेहा ने इसे बहुत अच्छी तरह से लिखा है। उनकी लिखी स्क्रिप्ट से तैयारी करके मैंने आडिशन दिया। इसके बाद दो-तीन माक टेस्ट हुए कि मां-बेटे और मां-बेटी की जोड़ी स्क्रीन पर कैसे लगती है। करुणा के किरदार से मैं व्यक्तिगत तौर पर खुद को बहुत जुड़ी हुई महसूस करती हूं। उसकी ऊर्जा, समझदारी और अल्हड़पन जैसी कई चीजें मेरी जिंदगी से मिलती-जुलती हैैं। मेरा मानना है कि एक मां बहन, बीवी या बेटी होने से पहले हर औरत अपना एक व्यक्तित्व लेकर पैदा होती है। ऐसे में जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को निभाते समय खुद को नहीं भूलना चाहिए। जिंदगी में कितने भी संघर्ष हों, कितनी भी परेशानियां हों, लेकिन वह अपने आपको कभी नहीं भूलतीं। जिंदगी के हर मोड़ पर वह अपनी खुशियों का भी खयाल रखती हैं। मुझे इस किरदार की यह चीज बहुत सुंदर लगती है।

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फिल्म से कोई लेना देना नहीं

पिछले साल रिलीज हुई तेलुगु फिल्म पुष्पा: द राइज पार्ट वन सुपरहिट रही। उससे मिलते-जुलते शो के नाम को लेकर करुणा कहती हैं, हमारे शो का फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है। शो के लेखकों ने बहुत पहले से यह नाम सोच रखा था। इस शो की तैयारी नई नहीं है, वे इस शो पर काफी समय से काम कर रहे हैं। मेरे किरदार का नाम पुष्पा होने के पीछे एक बैकस्टोरी है। पुष्प का अर्थ फूल होता है। पुष्पा के माता-पिता ने अपनी सारी बेटियों का नाम फूलों के नामों पर ही रखा था तो इसका नाम पुष्पा पड़ा। यह अपने आप में एक संपूर्ण शो है, जिसका एक अलग किस्म का ग्राफ है।

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मेहनत से संभव बनाना है

अपने करियर में इंपासिबल यानी कि असंभव लग रही चीजों को लेकर करुणा कहती हैं, जब मैं मुंबई आई थी, तब मेरे पिताजी की तबीयत ठीक नहीं थी। उस समय वह कैंसर से लड़ रहे थे। मेरे जीवन में कई सारी चीजें ऊपर-नीचे चल रही थीं। ऐसे में मेरे लिए बिना किसी गाडफादर के मुंबई आना और अपना रास्ता बनाना एक लंबा सफर रहा। शुरुआती मुश्किलों और संघर्षों के बाद मेरा सफर आगे बढ़ा, लेकिन मैं खुद पर ईश्वर की कृपा मानती हूं कि मुझे ज्यादा संघर्ष नहीं करने पड़े, जितना बाहर से आए अन्य कलाकारों को करना पड़ता है। गुजरते वक्त और बढ़ते अनुभव के साथ हम जिंदगी में कई चीजें सीखते हैं। अब मैं सिर्फ अच्छा काम करना चाहती हूं। यही एक लालसा मन में है। अच्छा काम करने के सफर में संघर्ष तो आते ही रहेंगे, लेकिन मुझे अपनी मेहनत से इसी इंपासिबल को पासिबल (संभव) बनाना है। मैं कुछ ऐसा काम करना चाहती हूं, जो देखने में इंपासिबल लगे, लेकिन मेहनत करने के बाद वह पासिबल हो जाए।

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आत्मनिर्भरता के लिए शिक्षा जरूरी

वर्तमान दौर में महिलाओं की आत्मनिर्भरता के बारे में करुणा का कहना है, आजकल देखा जाता है कि लोग कामकाजी महिलाओं की तुलना में घर के काम और जिम्मेदारियां देख रहीं मां, बहन या बेटी की भूमिका को कमतर आंकते हैं। हर भूमिका की अपनी एक महत्ता होती है। औरत किसी भी भूमिका में हो, वह हर स्थान पर संपूर्ण होती है। मां और बीवी होकर अपनी भूमिकाओं, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का अच्छी तरह से निर्वहन करना कोई छोटी बात नहीं है। रही बात आत्मनिर्भरता की तो महिलाओं के लिए मानसिक आत्मनिर्भरता सबसे ज्यादा जरूरी है। महिला अगर आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर भी है, लेकिन उसकी जिंदगी के सारे फैसले पुरुष कर रहे हैं तो फिर उसका क्या फायदा? अगर महिलाएं मानसिक तौर पर आत्मनिर्भर हो जाती हैं तो वे अपने जीवन का रास्ता स्वयं ढूंढ़ लेती हैं, जैसे मेरी किरदार पुष्पा ढूंढ़ लेती है, जबकि वह पढ़ी-लिखी भी नहीं है। इस दिशा में शिक्षा और आत्मसम्मान के लिए जागरूक होना सबसे जरूरी है।


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