'एम एस धौनी- द अनटोल्ड स्टोरी' फेम निर्देशक नीरज पांडे ने कहा, इतिहास बहुत कुछ सिखाता है
अच्छी कहानी कभी-कभी अखबार के एक छोटे से लेख से किसी के व्यक्तित्व से और कभी टीवी पर चल रही खबर से निकलकर आ जाती है। ऐसे में अच्छी कहानी के लिए हमेशा अपनी आंख और कान खुले रखने की कोशिश करता हूं।
दीपेश पांडेय, मुंबई। फिल्ममेकर नीरज पांडे ने हाल ही में अपने प्रोडक्शन हाउस के तले डॉक्यूमेंट्री सीक्रेट ऑफ सिनौली का निर्माण किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिनौली में हुई खुदाई से प्राप्त चीजों के आधार पर लगभग 4000 वर्ष पूर्व के इतिहास की खोजबीन करती यह डॉक्युमेंट्री डिस्कवरी प्लस ऐप पर उपलब्ध है। 'स्पेशल 26', 'बेबी' और 'एम एस धौनी- द अनटोल्ड स्टोरी' फेम निर्देशक नीरज फिलहाल अजय देवगन के साथ फिल्म 'चाणक्य' पर काम कर रहे हैं:
डॉक्यूमेंट्री में कल्पनाओं का सहारा नहीं लिया जा सकता। उसे मनोरंजक बनाने में क्या चुनौतियां होती हैं?
अब कहानी बताने की शैली बदल चुकी है। पहले डॉक्यूमेंट्री पृष्ठभूमि में एक गंभीर आवाज के साथ बड़े शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ बनाई जाती थी। वह बहुत ही नीरस हुआ करता था। अब विभिन्न प्लेटफॉम्र्स और सिनेमा के वैश्वीकरण की वजह से डॉक्यूमेंट्रीज का भी अंदाज काफी बदल चुका है। आज डॉक्यूमेंट्री में भी कहानियों को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है, एडिटिंग टेबल पर उन्हें जानकारी के साथ और भी दिलचस्प और मनोरंजक बनाया जा रहा है। इन बदलावों से डॉक्यूमेंट्री के दर्शक बढ़े हैं।
इतिहास के अनछुए पहलुओं को लोगों के बीच में लाने में सिनेमा की क्या भूमिका हो सकती है?
अगर हम अपने आप को कहानीकार मानते हैं तो इतिहास से संबंधित आकर्षक और अनछुई चीजों को कहानियों के माध्यम से लोगों के सामने लाना हमारे काम का हिस्सा है। जानकारी देने के साथ इतिहास हमें जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखाता भी है।
इतिहास बताना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है, इस जिम्मेदारी को निभाने में इंडस्ट्री कितनी ईमानदार रही है?
अगर हम इतिहास से संबंधित सभी सिनेमा को सिर्फ एक ही वर्ग में रखेंगे तो गलत होगा। लोगों का अलग-अलग प्रयास और नजरिया होता है। इतिहास पर डॉक्यूमेंट्री बनाना आसान होता है, क्योंकि उसमें दर्शकों के सामने सभी मत रखे जा सकते हैं, लेकिन सिनेमा में किसी एक मत का चयन करना होता है।
'चाणक्य' के निर्माण में क्या सावधानियां बरतेंगे?
रिसर्च ऐतिहासिक फिल्मों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमने जब चाणक्य पर काम करना शुरू किया तो इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से मिले और उनके नजरिए को समझा। इस साल के अंत तक इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने की योजना बना रहे हैं। जल्द ही इसकी आधिकारिक घोषणा भी करेंगे।
फिल्मकार की नजरें हमेशा अच्छी कहानियों पर होती हैं, सिनौली दौरे पर क्या आपको कुछ और आकर्षक कहानियां मिली?
सिनौली में खुदाई वाली जगह फिलहाल भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकार में हैं। वहां खुदाई में मिले सभी सामान भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा दिल्ली में रखा गया है। इस डॉक्यूमेंट्री के रिसर्च के दौरान हम दिल्ली और सिनौली दोनों जगहों पर गए। वहां स्थानीय लोगों के साथ हमने कई इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के साथ बातचीत की। अच्छी कहानियां खोजना एक प्रक्रिया होती है। यह समय के साथ पता चलता है कि कौन सी कहानियां अच्छी हैं और उन्हें लोगों के सामने लाया जाना चाहिए। सिनौली बहुत दिलचस्प जगह है, वहां एक नहीं कई अच्छी-अच्छी कहानियां हैं। अभी तो सिनौली की शुरूआत है, जैसे-जैसे खुदाई और आगे बढ़ेगी और भी रोचक तथ्य, और कहानियां मिलेंगी।
आपकी ज्यादातर फिल्में वास्तविक कहानियों पर आधारित रही हैं, इस आकर्षण की क्या वजह रही है?
ऐसा नहीं कि मैं किसी योजना के तहत सिर्फ ऐसी फिल्में बनाता हूं। जो कहानियां मुझे समझ में आती हैं और जिनको लोगों के सामने दिखाने में मैं सहज रहता हूं, मैं उन्हीं कहानियों का चयन करता हूं। अच्छी कहानी कभी-कभी अखबार के एक छोटे से लेख से, किसी के व्यक्तित्व से और कभी टीवी पर चल रही खबर से निकलकर आ जाती है। ऐसे में अच्छी कहानी के लिए हमेशा अपनी आंख और कान खुले रखने की कोशिश करता हूं।