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जब तक लोकतंत्र है लोगों को मुखर होना चाहिए : रिचा चड्ढा

मैं इस तरह के किरदारों को निभाना चाहती थी। मुझे खुशी है कि अब इस तरह की फिल्में बन रही हैं। फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चले या न चलें यह अलग बात होती है पर शुरुआत होती है हर एक चीज की। मैंने कभी पारंपरिक किरदार नहीं निभाए थे।

By Priti KushwahaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 12:31 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 12:31 PM (IST)
जब तक लोकतंत्र है लोगों को मुखर होना चाहिए : रिचा चड्ढा
Richa Chadda Talk About His Personal Life And Upcoming Movies Read Her Interview Here

मुंबई, स्मिता श्रीवास्तव। बीते साल रिलीज फिल्म  'शकीला'   के बाद रिचा चड्ढा अब 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में फिर केंद्रीय भूमिका में नजर आएंगी। उसके बाद वेब सीरीज 'कैंडी' में पुलिस अधिकारी की भूमिका में नजर आएंगी। उसके अलावा 'इनसाइड एज सीजन 3' की शूटिंग भी पूरी हो चुकी है। करियर के इस पड़ाव से रिचा खुश और संतुष्ट हैं। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश : 

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अब आप केंद्रीय किरदारों में नजर आ रही हैं ... 

मैं इस तरह के किरदारों को निभाना चाहती थी। मुझे खुशी है कि अब इस तरह की फिल्में बन रही हैं। फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चले या न चलें यह अलग बात होती है पर शुरुआत होती है हर एक चीज की। मैंने कभी पारंपरिक किरदार नहीं निभाए थे। मैं खुश हूं कि ऐसा दौर आया है कि इन कहानियों को जगह मिल रही हैं। जैसे-जैसे समय बदल रहा है लोगों को लग रहा है कि अभिनेत्रियों का रोल फिल्मों में बढ़ना चाहिए। हमारे यहां सोनिया गांधी, मायावती, जयललिता, वसुंधरा राजे सिंधिया, शीला दीक्षित'  सुषमा स्वराज्य समेत कई नामचीन महिला नेता हैं,  उसके बावजूद अब जाकर उन पर फिल्में बन रही हैं। बहरहाल, मैडम चीफ मिनिस्टर किसी की बायोपिक नहीं है। काल्पनिक कहानी है। जब हम कोई प्रेरणात्मक कहानी बनाते हैं तो प्रेरित तो करती हैं। इसलिए यह कहानी जरुरी हो जाती हैं। अगर बीते साल लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो मैडम चीफ मिनिस्टर शकीला से पहले रिलीज हुई होती।     

किरदार को निभाते समय क्या चीजें दिमाग में चल रही थीं। 

मुझे किरदार को निभाते समय किसी की भाषा या बॉडी लैंग्वेज की मिमिक्री नहीं करना था। अफलातून टाइप का किरदार है। बाइक चलाती है। सलमान खान की तरह हाथ में ब्रेसलेट पहनती है। अपने गांव में बहुत प्रसिद्ध है। सब उसे गांव की बेटी बोलते हैं। उस पर जुल्म होते हैं। उसके बावजूद वह उन बातों को लेकर नहीं बैठती है। वह फाइटर है। आगे बढ़ती रहती है। 

आप भी अपने विचारों को लेकर काफी मुखर हैं... 

जब तक लोकतंत्र है लोगों को मुखर होना चाहिए। हालांकि राजनीति का मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं है। पर बतौर कलाकार मुझे उस ज्ञान की जरुरत भी नहीं थी। मैं किरदार को किसी पर आधारित नहीं करना चाहती थी। जब आपके पास पावर होती है तो आपके अपने भी कई बार लालज में खिलाफ हो जाते हैं। उस तरह की चीजें फिल्म में हैं। 

राजनीति में महिलाओं के ज्यादा भागीदारी से किस प्रकार के बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है। 

महिलाएं पंचायत स्तर पर भी है। अहम यह है कि उन्हें पावर कितनी मिलती है। इसलिए कई बार महिलाएं आरक्षण की बात करती हैं। मुझे लगता है कि अलग-अलग पार्टी की महिला सांसद एकजुट होकर दुष्कर्म के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएं और कहें कि हमारे समाज में यह नहीं होना चाहिए। कम से कम ऐसे बयान तो नहीं आने चाहिए कि दुष्कर्म के पहले यह घर के सामने क्या कर रही थी। यह सब चीजें दुखदायी होती है। रोजाना किसी न किसी बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है। उसे मार दिया जाता है। यह समाज की बहुत बड़ी बीमारी है। इसे जल्दी से जल्दी ठीक करना होगा। सोशल मीडिया पर जब आपके विचार किसी से मेल नहीं खाते तो उन्हें मां बहन की गाली दी जाती है। उन्हें धमकी दी जाती है। हमारे समाज की सोच है कि औरत ज्यादा बोल रही है तो उसका मुंह ऐसे बंद कर दो। उस तरह की चीजों से तकलीफ होती है। उम्मीद है कि इसमें बदलाव आएगा। 

फिल्म में भाषण देने वाले सीन के बारे में बताएं... 

वह अनुभव मजेदार था। वह सीन ऐसा है कि मेरे किरदार को लगता है कि राजनीति में शायद कुछ कर सकती है। वह घर छोड़कर आई है। उसके पास कोई सहारा नहीं होता है। उसे लगता है कि शायद राजनेता ही बन जाउ। वह राजनीति के दांवपेंच सीखती है। मेरे ख्याल से उसका पहली बार भाषण देने का सीन है। उसे हम गांव में ही शूट कर रहे थे। वहां लोग मुझे पहचान नहीं पाए थे। उन्हें लगा था कि असली राजनीतिक रैली चल रही है। सब कुछ हमने रियल रखा था। कैमरा भी ऐसे रखा कि लोगों को नजर न आए। भाषण देने में मजा आया। थिएटर बैकग्राउंड होने की वजह से बहुत मदद मिली। 

महिलाएं आज भी समानता के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। यह बदलाव कैसे आएगा ... 

इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए। घर में बेटी-बेटा के बीच अंतर न रखें। हम अभी सरवाइल की लडाई ही लड़ रहे है कि रास्ते में छेडछाड़ न हो। उनके साथ दुर्व्यवहार न हो। शादी होने के बाद दहेज की वजह से उन्हें मार न दिया जाए। मुझे लगता है कि महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में जितना बढ़गी उतना तेजी से बदलाव होगा। उनकी आवाज तो सुनी जाएगी। 

ऐसी कौन से राजनेता रहे हैं जिनकी विचारधारा का आप पर प्रभाव रहा है ... 

इस फिल्म को करने के दौरान मैं बीआर अंबेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित हुई है। उनकी सोच दूरदर्शी थी। जातिवाद की समस्या वही बेहतर समझ सकता है जिसने इस पीड़ा को झेला हो। मैंने जब फिल्म के बारे में पढ़ना शुरु किया तो नजर आया कि वह हमारे सिर्फ संविधान के रचियता नहीं थे उन्होंने न जाने कितने लोगों के हक की लड़ाई भी लड़ी थी। 

वेब शो कैंडी में आप पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं... 

मेरा किरदार काफी दिलचस्प है। फिलहाल इसकी शूटिंग हम नैनीताल में कर रहे हैं। इसमें मेरे प्रतिद्धंद्धी रोनित राय इसमें मेरे दुश्मन बने हैं। मैं पहली बार उनके साथ काम कर रही हूं।


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