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पृथ्वीराज कपूर की चिंता, केदार शर्मा का थप्पड़... और मधुबाला के चक्कर में दुनिया को मिले 'शोमैन' राज कपूर

2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले राज कपूर को याद करता अनंत विजय का विशेष आलेख। जानिए राज कपूर से जुड़े रोचक तथ्य...

By Rajat SinghEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 10:31 AM (IST)
पृथ्वीराज कपूर की चिंता, केदार शर्मा का थप्पड़... और मधुबाला के चक्कर में दुनिया को मिले 'शोमैन' राज कपूर
पृथ्वीराज कपूर की चिंता, केदार शर्मा का थप्पड़... और मधुबाला के चक्कर में दुनिया को मिले 'शोमैन' राज कपूर

नई दिल्ली, (अनंत विजय)।  कौन जानता था कि जो बालक कोलकाता के स्टूडियो में केदार शर्मा से रील का रहस्य जानना चाहता था, वो रील की इस दुनिया में इतना डूब जाएगा कि पहले अभिनेता और बाद में 'शोमैन' राज कपूर के रूप में अपनी ख्याति पूरे विश्व में फैला देगा। 2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले राज कपूर को याद करता विशेष आलेख...

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मुंबई के रंजीत स्टूडियोज के लिए 1942 में केदार शर्मा 'विषकन्या' बना रहे थे। इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, साधना बोस और सुरेंद्र नाथ प्रमुख भूमिका में थे। केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर में कलकत्ता (अब कोलकाता) के दिनों से बहुत गहरी दोस्ती थी और दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के साथी थे। बाद में दोनों कोलकाता से मुंबई आ गए थे। 'विषकन्या' की शूटिंग के दौरान केदार शर्मा ने इस बात को नोटिस किया कि पृथ्वीराज कपूर जब भी शूटिंग के लिए सेट पर पहुंचते तो वो बहुत उदास रहते हैं। शूटिंग के पहले और बाद में भी गुमसुम रहते हैं और सेट पर किसी से बातचीत नहीं करते। केदार शर्मा लगातार इस बात को नोट कर रहे थे लेकिन पृथ्वीराज कपूर से पूछ नहीं पा रहे थे। 

एक दिन अवसर मिल ही गया। पृथ्वीराज कपूर शॉट देने के बाद सेट के एक कोने में जाकर बैठ गए। केदार शर्मा उनके पास पहुंचे, उनका हाथ पकड़कर बोले कि अगर इसमें बहुत व्यक्तिगत कुछ न हो तो मैं आपकी उदासी का कारण जानना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आप किसी खास वजह से बेहद परेशान हैं। आप मुझ पर भरोसा रखकर उदासी की वजह बताइए, मैं उसको दूर करने की कोशिश करूंगा। इतना सुनकर पृथ्वीराज कपूर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके और जोर से केदार का हाथ पकड़कर बोले, 'केदार! मैं अपने बेटे राजू को लेकर बहुत चिंतित हूं। किशोरावस्था की उलझनों में वो मुझे भटकता हुआ लग रहा है, मैंने उसको पढ़ने के लिए कॉलेज भेजा लेकिन वहां पढ़ाई से ज्यादा वो लड़कियों में खो गया है।' इतना बोलकर पृथ्वीराज कपूर चुप हो गए। 

केदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर के कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'अपने बेटे को मुझे सौंप दो लेकिन एक वादा करो कि मेरे और उसके बीच दखलअंदाजी नहीं करोगे। मैं उसको रास्ते पर ले आऊंगा, ठीक उसी तरह जिस तरह से कोई गुरू अपने चेले को लेकर आता है। मैं उसको अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनाने के लिए तैयार हूं।' यह सुनकर पृथ्वीराज कपूर का दुख कुछ कम हुआ। 

अगले दिन वो अपने बेटे राजू को लेकर केदार शर्मा के पास पहुंचे। कपूर खानदान की परंपरा के मुताबिक राजू ने केदार शर्मा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। केदार शर्मा ने राजू को उनके बचपन के दिनों की याद दिलाई, जब वो कोलकाता में रहते थे और पिता के साथ स्टूडियो आते थे। एक दिन जब केदार शर्मा रील देख रहे थे तो राजू ने उनसे जानना चाहा था कि रील में कैद चित्र पर्दे पर चलने कैसे लगते हैं। तब केदार शर्मा ने राजू को कहा था कि एक दिन मैं तुम्हें इसका रहस्य बताऊंगा। अब केदार शर्मा ने राजू से कहा, 'रील का रहस्य जानने का समय आ गया है। तुम अब मेरे साथ काम करो। आज से तुम मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर हो।'

इसके बाद की कहानी बहुचर्चित है कि कैसे केदार शर्मा ने राजू को एक जोरदार थप्पड़ जड़ा था और फिर उसके बाद अपनी फिल्म में काम करने का ऑफर दिया था। जब राजू को केदार शर्मा ने फिल्म का ऑफर दिया, तब राजू ने उनसे कहा था, 'हां अंकल! मैं कैमरे के आगे काम करना चाहता हूं और दुनिया को अपनी अभिनय की प्रतिभा दिखाना चाहता हूं।' इतना सुनते ही केदार शर्मा ने राजू को गले लगा लिया था। गले लगते ही राजू ने उनके कान में कहा था, 'प्लीज अंकल प्लीज मेरे साथ हीरोइन के तौर पर बेबी मुमताज को रख लेना, वो बेहद खूबसूरत है।'  इसी बेबी मुमताज को लोगों ने बाद में मधुबाला के नाम से जाना। केदार शर्मा ने वादा तो कर दिया लेकिन बाद में बेबी मुमताज को फिल्म में लेने के लिए उनको अपने पार्टनर की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी। खैर ये अलहदा प्रसंग है और इस पूरे प्रसंग को केदार शर्मा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है।

पर कौन जानता था कि जो बालक कोलकाता के स्टूडियो में केदार शर्मा से रील का रहस्य जानना चाहता था, जो किशोरावस्था में कॉलेज में पढ़ाई न करके ढेरों बदमाशियां करता था और जिसके पिता अपने बेटे के कॅरियर की चिंता में सेट पर उदास बैठते थे, वो रील की इस दुनिया में इतना डूब जाएगा, उसकी बारीकियों को इस कदर समझ लेगा या फिर रील में चलने-फिरने वाले इंसान के व्याकरण को इतना आत्मसात कर लेगा कि पहले अभिनेता राज कपूर के तौर पर और बाद में 'शोमैन' राज कपूर के रूप में अपनी ख्याति पूरे विश्व में फैला देगा। वक्त का पहिया बहुत तेजी से घूमता है। किसी वक्त केदार शर्मा के स्टूडियो में रील के राज सीखने वाले राज कपूर ने बाद में भारत के सबसे मशहूर आर.के. स्टूडियो को स्थापित किया। यह भी वक्त का खेल ही रहा कि हमने सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन राज कपूर को भी खो दिया और आर.के. स्टूडियो को भी। 

 आज राज कपूर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन रील की उनकी समझ, रील के रूप में उनकी सृजनात्मकता आज भी लोगों को चमत्कृत करती है।


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