नवाज़ ने सिर्फ़ एक रूपये में किया इस फिल्म में काम, और बाकी ने फ्री में
नंदिता के मुताबिक इस फिल्म के लिए ऋषि कपूर, परेश रावल, रणवीर शौरी, दिव्या दत्ता और जावेद अख्तर ने भी कोई पैसा नहीं लिया।
मुंबई। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का नाम परदे पर उनकी बेहतरीन एक्टिंग के लिए लिया जाता है। वो अक्सर कुछ ऐसा करते हैं कि लोग चौंक जाएं। पिछले दिनों जब मुन्ना माइकल में डांस किया था तो लोग उनकी ये स्किल देखकर भी हैरान हुए। और अब नवाज़ ने एक और काम किया है जिसे जानकार आप उनकी तारीफ़ करेंगे।
मालूम हो कि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, जाने माने और विवादित साहित्यकार सआदत हसन मंटो पर बन रहे बायोपिक मंटो में लीड रोल में हैं। ख़बर है कि इस फिल्म के लिए उन्होंने फीस के रूप में सिर्फ़ एक रुपया लिया लिया है। इस फिल्म का निर्देशन नंदिता दास कर रही हैं और बताते हैं कि नवाज़ का ये फैसला उनके दिल को छू गया। इस बारे में नंदिता ने बताया है कि यह बहुत बड़ी उदारता का उदहारण है कि कोई स्टार अपनी सामान्य फीस के बिना भी आपकी फिल्म में काम कर रहा है। बताते हैं कि फिल्म का टाईट बजट देखते हुए नंदिता ने उन्हें सिर्फ एक रुपया फीस ऑफर की थी और नवाज़ मान गए ।
यही नहीं नंदिता के मुताबिक इस फिल्म के लिए ऋषि कपूर, परेश रावल, रणवीर शौरी, दिव्या दत्ता और जावेद अख्तर ने भी कोई पैसा नहीं लिया। नंदिता के मुताबिक ऋषि कपूर ने पहली ही मीटिंग में इस फिल्म में काम करने की स्वीकृति दे दी और फीस के बारे में पूछा तक नहीं। अच्छे कलाकार अच्छे काम के भूखे होते हैं और जब उनके पास मनचाहा प्रोजेक्ट आये तो वो किसी भी कीमत पर उसके साथ समझौता नहीं करते । उनके लिए तब बड़ा से बड़ा मेहनताना कोई मायने नहीं रखता ।
इस फिल्म को कान फिल्म फेस्टिवल, टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे कई फेस्टिवल में सिलेक्ट किया गया थाl इसे कान फिल्म फेस्टिवल के 'अन सर्टन रिगार्ड' सेक्शन में दिखाया गया । ये फिल्म 40 और 50 दशक के उस लेखक के जीवन पर बनी फिल्म है, जिन्होंने अपने बाग़ी और बेबाक तेवरों से दुनिया को आइना दिखाने की कोशिश की। नंदिता दास की लिखी और निर्देशित मंटो में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी साफिया का रोल रसिका दुग्गल निभा रही हैं। फिल्म 21 सितंबर को रिलीज़ हो रही हैl
कौन थे मंटो -
सदाअत हसन मंटो ने अपनी 42 साल और 8 महीने की जिंदगी में इश्क, त्रासदी, सांप्रदायिक झगड़ों पर खूब लिखा। बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, पांच रेडियो नाटक संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह लिखने वाले मंटो पर अश्लीलता के कई आरोप लगे। उन्हें कुल 6 बार अदालत में जाना पड़ा। 3 बार ब्रिटिश भारत में 3 बार पाकिस्तान में। लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया। उनकी लेखनी समाज को उधेड़ देने वाली थी। मंटो की लेखनी अलीगढ़ में ही निखरी थी। उनकी लिखी दूसरी कहानी ‘इंकलाब पसंद’ भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से प्रकाशित ‘अलीगढ़ मैगजीन’ में 1935 में छपी थी। पहली कहानी ‘तमाशा’ थी। टीबी की बीमारी के कारण स्कूली पढ़ाई छोड़ दी। मंटो ने फ्रांसीसी व रूसी लेखकों को पढ़ा और अंग्रेजी लेखन का उर्दू में अनुवाद किया। उन्होंने कई कहानियां घरेलू मसलों पर भी लिखी हैं। कहते हैं अगर उस ज़माने में मुंशी प्रेमचंद ने गांव के पिछड़े तबके के दर्द को उठाया तो मंटो ने इससे इतर तवायफों को चुना। वह मानते थे कि समाज में सर्वाधिक उपेक्षित, कमजोर व मजबूर समूह तवायफों का ही है। उनके सच को बयां करने में उनकी कलम नहीं रुकी।
कहते हैं जिस वक्त मंटो कहानी ‘बू’ लिख रहे थे, उसी दौरान सच्चितानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय भी इसी शीर्षक से कहानी लिख रहे थे। दोनों की भेंट मुंबई में साहित्यकार भैरों प्रसाद गुप्ता के यहां हुई। भैरों दा ने अज्ञेय को मंटो की ‘बू’ पढ़ने को दी। उसे पढ़ने के बाद अज्ञेय ने अपनी ‘बू’ फाड़ दी। विभाजन के बाद मंटो लाहौर चले गए और 18 जनवरी 1955 को निधन हो गया। छोटे से जीवन में ही वह अपने समय से आगे की बात कह गए। उनकी लिखी ठंडा गोश्त , काली सलवार, टोबा टेक सिंह और पर्दे के पीछे काफी चर्चित रही हैं।
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