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लाइट्स कैमरा एक्शन: सुरों के बादशाह ख्य्याम ने बताया कि उस जमाने में क्यों गाने हो जाते थे याद

खय्याम को तीन बार फिल्‍मफेयर अवॉर्ड मिला। 2011 में खय्याम को पद्म भूषण से नवाजा गया।

By Rahul soniEdited By: Published: Sat, 13 Oct 2018 04:13 PM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 09:24 AM (IST)
लाइट्स कैमरा एक्शन: सुरों के बादशाह ख्य्याम ने बताया कि उस जमाने में क्यों गाने हो जाते थे याद
लाइट्स कैमरा एक्शन: सुरों के बादशाह ख्य्याम ने बताया कि उस जमाने में क्यों गाने हो जाते थे याद

मुंबई। प्रसिद्ध संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम फिल्म इंडस्ट्री का जाना पहचाना नाम है जिन्होंने कई क्लासिक्स में अपने संगीत से अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई। इन फिल्मों को आज भी याद किया जाता है और हमेशा किया जाएगा।

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खय्याम कई फिल्में सिर्फ संगीत के लिए जानी जाती हैं और यह कहा जा सकता है कि वे संगीत के कारण ही सफल रही। संगीतकार खय्याम साहब के साथ जागरण डॉट कॉम के एंटरटेनमेंट एडिटर पराग छापेकर ने शो लाइट्स कैमरा एक्शन में बातचीत की और उनकी जिंदगी से जुड़े कई राज जाने। नीचे आप इस पूरे साक्षात्कार के अंश पढ़ने के साथ दी गई लिंक पर क्लिक करके पूरा शो भी देख सकते हैं -

खास बातचीत में संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम ने पत्नी जगजीत कौर से पहली मुलाकात के बारे में बताया। खय्याम बताते हैं कि, जगजीत से पहली मुलाकात आज भी याद है। पहली मुलाकात तो नहीं लेकिन मुंबई के दादर स्टेशन पर उन्हें देखा था पहली बार। दादर स्टेशन पर एक पुल है जो ईस्ट और वेस्ट को जोड़ता है। इस पुल से एक बार में गुजर रहा था तब वहां से एक लड़की मुझे नजर आई जो पुल से जा रही थी और मेरी निगाह उस पर गई। उस समय में उसे बस देखता ही रह गया। उसने भी एक दफा पलटकर मेरी तरफ देखा। एेसा लगा कि ईश्वर से कहा कि यही तो हैं। लेकिन न मुलाकात हुई न बातचीत। इसके बाद लगभग चार पांच महीनों बाद कोई हमारे मिलने वाले आए और कहा कि एक पंजाबी गायिका आई है। उनको आप आप सुन ले। और जगजीत मेरे सामने आई, तो लगा कि अल्लाह की ही इसमें इच्छा है। इस तरह कारवा आगे बढ़ गया। बता दें कि, जगजीत ने कई फिल्मों के गीतों को अपनी आवाज दी है। 

खय्याम ने बताया कि, शुरुआत के पांच सालों तक वे शर्मा जी के नाम से काम करते रहे। इस दौरान उन्होंने  1948 में आई फिल्म हीर रांझा की म्यूजिशियन जोड़ी शर्माजी-वर्मा जी के शर्माजी के नाम से शुरुआत की थी। 

खय्याम बताते हैं कि, दिलीप कुमार, मीना कुमारी जैसे कलाकारों के साथ जो फिल्में बनी हैं उस समय संगीत अजीब था। उस समय अजीब सा रिवॉल्यूशन था। गौर करने वाली बात यह है कि उस समय अलग से रिकॉर्डिंग स्टूडियो नहीं हुआ करते थे। इसलिए संगीत की रिकॉर्डिंग रेगुलर स्टूडियो में ही की जाती थी और इसका फायदा यह होता है कि गाना पूरा याद हो जाता था। गलती की संभावना नहीं होती थी। सभी कलाकारों के बीच बेहतर बॉन्डिंग बन पाती थी। रिकॉर्डिस्ट को गाइड करते थे कि क्या कैसे करना है। इतना अच्छी बॉन्डिंग होती थी कि सिंगर गा रहा है और म्यूजिशियन बजा रहे है मानो दिलों जान से जहन हर तरह से शामिल हो कर संगीत दिया जा रहा है।  

सिनेमा के संगीत में बदलाव को लेकर खय्याम ने कहा कि, मैंने अपना कर्तव्य निभा दिया है। ईश्वर ने जितनी ताकत दी है पूरी लगा दी है। फिल्मों में संगीत दिया, गलते बनाई और भजन गाए। आपको बता दें कि, खय्याम को तीन बार फिल्‍मफेयर अवॉर्ड मिला। सबसे पहले 1977 में फिल्म कभी कभी के लिए। इसके बाद 1982 में आई फिल्म उमराव जान के लिए। 2010 में उन्‍हें फिल्‍मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। 2011 में खय्याम को पद्म भूषण से भी नवाजा गया।

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