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Basu Chatterjee: एक सख्त निर्देशक, जिनसे पर्दे पर उतरी आम लोगों की कहानियां

आम जनजीवन से जुड़ी बातों और मानवीय संवेदनाओं को बेहद खूबसूरती से उकेरन में माहिर फिल्मकार बासु चटर्जी ने फिल्मों का शिल्प गढ़ने में अनेक प्रयोग किए। याद कर रहे हैं अनंत विजय...

By Rajat SinghEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 07:00 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 07:54 AM (IST)
Basu Chatterjee: एक सख्त निर्देशक, जिनसे पर्दे पर उतरी आम लोगों की कहानियां
Basu Chatterjee: एक सख्त निर्देशक, जिनसे पर्दे पर उतरी आम लोगों की कहानियां

 नई दिल्ली, (अनंत विजय)। आम जनजीवन से जुड़ी बातों और मानवीय संवेदनाओं को बेहद खूबसूरती से उकेरन में माहिर फिल्मकार बासु चटर्जी ने फिल्मों का शिल्प गढ़ने में अनेक प्रयोग किए। ग्लैमर से इतर सामान्य चेहरों को उन्होंने नायक-नायिका के रूप में चुना तो बतौर निर्देशक छोटे पर्दे को भी दिए कई ऐसे तोहफे, जिन्हें देखने का मोह आज भी है बरकरार। उनके सफर को याद कर रहे हैं अनंत विजय...

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बासु भट्टाचार्य और बासु चटर्जी

बासु भट्टाचार्य जब हिंदी के मशहूर उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु की कृति 'तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम' पर आधारित फिल्म 'तीसरी कसम' का निर्देशन कर रहे थे तो उनके साथ सहायक निर्देशक के रूप में जुड़े थे बासु चटर्जी। जब बासु चटर्जी ने फिल्म बनाने का फैसला लिया तो उन्होंने चुना हिंदी के उपन्यासकार राजेन्द्र यादव की कृति 'सारा आकाश' को। यह महज संयोग था या एक प्रयोग इसका तो पता नहीं, लेकिन बासु चटर्जी की इस फिल्म को मृणाल सेन की फिल्म 'भुवन शोम' के साथ समांतर सिनेमा की शुरुआती फिल्म माना जाता है।

पहली फ़िल्म 'सारा आकाश'

हिंदी फिल्मों की दुनिया में जब राजेश खन्ना का डंका बज रहा था, राजेश खन्ना की फिल्मों के रोमांस का जादू जब हिंदी के दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा था, लगभग उसी दौर में हिंदी फिल्मों में समांतर सिनेमा का बीज भी बोया जा रहा था। एक तरफ राजेश खन्ना का सपनों की दुनिया में ले जाने वाला रोमांस था तो दूसरी तरफ आम मध्यमवर्गीय परिवारों का अपने संघर्षों के बीच प्रेम का अहसास दिलानेवाली फिल्में। बासु चटर्जी ने अपनी पहली फिल्म 'सारा आकाश' में इस तरह के प्रेम का ही चित्रण किया। जहां प्रेम तो है पर अपने खुरदरे अहसास के साथ। 

फिल्म 'सारा आकाश' को वो राजेन्द्र यादव के उपन्यास के पहले ही भाग पर केंद्रित कर बना रहे थे और राजेन्द्र यादव से लगातार उसपर ही चर्चा करते थे। राजेन्द्र यादव ने तब एक दिन बासु चटर्जी से कहा था कि यार तुम मेरे उपन्यास पर बालिका वधू सा क्या बना रहे हो? दरअसल राजेन्द्र यादव इस बात को लेकर चिंतित थे कि अगर उपन्यास पहले भाग पर केंद्रित रहा तो उनकी पूरी कहानी फिल्म में नहीं आ पाएगी। लेकिन बासु चटर्जी ने उनको समझा लिया था।

आम चेहरे वाले कलाकारों को बनाया हीरो 

बासु चटर्जी ने कई फिल्मों की पटकथा खुद ही लिखी थी क्योंकि वो मानते थे कि निर्देशक कहानी को सबसे अच्छे तरीके से समझ सकता है। बासु चटर्जी ने फिर मन्नू भंडारी की कहानी 'ये सच है' पर 'रजनीगंधा' फिल्म बनाई जो दर्शकों को खूब पसंद आई। इस फिल्म में ही अमोल पालेकर और दिनेश ठाकुर जैसे आम चेहरे मोहरेवाले नायकों को लीड रोल देने का साहसी कदम बासु चटर्जी ने उठाया था। इस फिल्म से ही विद्या सिन्हा को अभिनेत्री के तौर पर पहचान मिली। फिर तो वो इस तरह के कई अन्य प्रयोग करते रहे। 

इसके बाद उन्होंने अमोल पालेकर और जरीना बहाव को लेकर 'चितचोर' बनाई। एक और प्रयोग बासु चटर्जी ने अपनी फिल्म 'शौकीन' में किया। इस फिल्म में तीन बुजुर्ग अशोक कुमार, ए के हंगल और उत्पल दत्त को लेकर उन्होंने बुजुर्ग मन के मनोविज्ञान को बहुत ही कलात्मक और सुंदर तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया। 'शौकीन' में बुजुर्ग मन के उस हिस्से को उभारा गया है जहां रोमांस शेष रह जाता है, अपने मन की करने की ललक बची रह जाती है। 

अमिताभ बच्चन और राजेश ख़न्ना को भी किया निर्देशित

बासु चटर्जी ने कई कमर्शियल फिल्में भी की जिनमें अमिताभ बच्चन के साथ 'मंजिल' और राजेश खन्ना के साथ 'चक्रव्यूह' और अनिल कपूर के साथ 'चमेली की शादी' जैसी फिल्में भी शामिल हैं। एक निर्देशक के तौर पर बासु चटर्जी बहुत ही सख्त माने जाते हैं। सेट पर वो किसी तरह की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते थे। एक फिल्म पत्रिका के संपादक रहे अरविंद कुमार ने बासु चटर्जी के सहायक के हवाले से एक वाकया लिखा है,  'दिल्लगी' की शूटिंग के दिनों की बात है। शिफ्ट सुबह नौ से चार तक थी। शत्रुघ्न सिन्हा को सुबह आना था वो आए शाम के चार से कुछ पहले। बासु चटर्जी ने किसी तरह अपने को संयमित किया और शत्रुघ्न सिन्हा को बोल कॉस्ट्यूम पहन आएं। शत्रुघ्न सिन्हा तैयार होकर आए। इधर बासु चटर्जी और कैमरा निर्देशक मणि कौल में बहस हो रही थी। मणि कह रहा था, आधे घंटे में सूरज ढल जाएगा, तो दिन का यह सीन कैसे पूरा कर लेंगे आप? बासु ने शत्रुघ्न को देखते ही कहा, अब तो पैकअप करना होगा... कल कोशिश करते हैं' निर्देशक का कठोर और सहज संदेश। अगले दिन शत्रुघ्न सिन्हा ठीक दस बजे सेट पर मौजूद थे।

बासु की दूसरी पारी

बासु चटर्जी ने अपनी दूसरी पारी टीवी के साथ शुरू की थी। अभी हाल ही में लॉकडाउन के दौरान जिस सीरियल 'व्योमकेश बख्शी' को दर्शकों ने खूब पसंद किया उसे भी बासु दा ने ही बनाया था। इलके अलावा बासु चटर्जी ने 'रजनी', 'दर्पण'और 'कक्काजी कहिन' जैसे टीवी सीरियल का भी निर्माण किया। वो मानते थे कि टीवी का एक्सपोजर बहुत है और उसको बहुत सारे लोग एक साथ देखते हैं। साथ ही वो ये भी कहते थे कि टीवी की इतनी ज्यादा पहुंच है कि कुछ ऐसा बनाना जोनएकसाथ इतने सारे लोग को पसंद आए, बड़ी चुनौती है। बासु चटर्जी के निधन से हिंदी सिनेमा ने एक प्रयोगधर्मा व्यक्त्वि को खो दिया जिसकी जगह की भरपाई जल्दी संभव नहीं।


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