बॉलिवुड के लिए भी जन्नत सरीखा है 'कश्मीर', अब सरकार की नई फिल्म नीति से मिलेगी फिल्मेकर्स को मदद
कश्मीर में फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘द नोटबुक’ की शूटिंग कर चुके सलमान खान कहते हैं ‘कश्मीर इतना सुंदर है फिर भी लोग पता नहीं क्यों स्विट्जरलैंड चले जाते हैं। भारत में फिल्मों को शूट करने का अनुभव हमेशा अच्छा होता है।’
मुबई ब्यूरो, प्रियंका सिंह। कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है, मौसम बेमिसाल बेनजीर है, ये कश्मीर है। कश्मीर की खूबसूरती को फिल्मों में बखूबी बयां किया गया है। पिछली सदी के छठवें दशक से ही कश्मीर फिल्मकारों को लुभाता रहा है। ‘कश्मीर की कली’, ‘कभी कभी, ‘जंगली’, ‘बेताब’ सहित अनेक फिल्में कश्मीर में शूट की गईं। ‘जब तक है जान’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘हाइवे’ जैसी फिल्मों में जहां कश्मीर की वादियों को दिखाया गया, वहीं ‘रोजा’, ‘हैदर’, ‘हामिद’ इत्यादि में आतंकवाद और अन्य समस्याओं को बयां किया गया। अनुच्छेद 370 हटने के दो साल बाद सिनेमा पर सरकार ने नई नीति की घोषणा की है। इस संदर्भ में कश्मीर में र्शूंटग की अहमियत, सहूलियतें मिलने पर फिल्मकारों की राय, अर्थव्यवस्था पर सर की पड़ताल कर रही हैं प्रियंका सिंह
यश चोपड़ा ने अपनी आखिरी फिल्म ‘जब तक है जान’ की शूटिंग कश्मीर में की थी। कश्मीर में शूटिंग और वहां पर्यटन बढ़ाने में उनकी फिल्मों का भी अहम योगदान रहा है। वह कहा करते थे कि कश्मीर में शूटिंग करने के लिए न ही निर्देशक की जरूरत है, न ही कैमरामैन की, कैमरा कहीं भी लगाओ, फ्रेम अपने आप बन जाता है। जम्मू-कश्मीर की फिल्म नीति 2021 के तहत सरकार ने सिंगल विंडो क्लीयरेंस सुविधा, सब्सिडी, स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहन संबंधी कई घोषणाएं की हैं। कश्मीर में आगामी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ की शूटिंग कर रहे
आमिर खान इस परिप्रेक्ष्य में कहते हैं, ‘एक वक्त था, जब कश्मीर में बेहद रौनक रहती थी। आठ-दस फिल्मों की शूटिंग एकसाथ चला करती थी। वहां का सौंदर्य अद्भुत है।’ कश्मीर में फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘द नोटबुक’ की शूटिंग कर चुके सलमान खान कहते हैं, ‘कश्मीर इतना सुंदर है, फिर भी लोग पता नहीं क्यों स्विट्जरलैंड चले जाते हैं। भारत में फिल्मों को शूट करने का अनुभव हमेशा अच्छा होता है।’
व्यवहार में बदलाव पाया:
कश्मीर में अपनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की शूटिंग कर चुके निर्देशक और लेखक विवेक रंजन अग्निहोत्री कहते हैं, ‘कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से पहले और बाद में मैंने शूटिंग की है। जब मैं वहां शिकारा चलाने वाले, सब्जी बेचने वालों से मिला तो उनमें एक उम्मीद नजर आई कि अब केंद्र के शासन में उनके लिए विकास के अवसर बढ़ेंगे। कश्मीर में मुख्य व्यापार पर्यटन और शूटिंग ही है। नई फिल्म पालिसी वहां की अर्थव्यवस्था को गति मिलने की उम्मीद जगाती है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के लिए हमने तीन साल रिसर्च की। वहां हुए नरसंहार के विक्टिम्स के साथ वीडियोज शूट किए। लेखन और एक्टिंग के लेवल पर यह रूह को छूने वाली कहानी है। इसलिए जरूरी था कि हम इस फिल्म को सच्चाई से बनाएं। यही वजह है कि फिल्म की शूटिंग कश्मीर में की गई है, कश्मीरी लोगों को फिल्म में लिया गया है। रिसर्च, गाने, अभिनय, असिस्टेंट हर स्तर पर स्थानीय लोगों को काम दिया गया है। जब कश्मीर में शूटिंग करेंगे तो वहां के लोगों से मिलेंगे, वहां की कहानियां मेनस्ट्रीम सिनेमा में सामने आएंगी। हाल फिलहाल की ज्यादातर फिल्मों में कश्मीर से आतंकवादियों के ताल्लुक को बयां किया गया, जबकि वहां के लोग सामान्य इंजीनियर, डाक्टर हो सकते हैं। मेरी फिल्म का हीरो कश्मीरी पंडित है।’
विदेश में खूबसूरती ढूंढ़ने की जरूरत नहीं:
पिछली सदी के आठवें दशक में ‘लव स्टोरी’ और ‘बेताब’ जैसी फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में कर चुके निर्देशक राहुल रवैल उस वक्त के अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, ‘बाबी’ की शूटिंग के दौरान जब मैं असिस्टेंट हुआ करता था, तब पहली बार कश्मीर गया था। जब मैं निर्देशक बना तो मैंने अपनी तीन फिल्मों ‘बीवी ओ बीवी’, ‘लव स्टोरी’ और ‘बेताब’ की शूटिंग वहां की थी। जब हम ‘बेताब’ की शूटिंग कर रहे थे तो मुझे हल्का सा महसूस हुआ था कि वहां के विद्यार्थियों का बर्ताव हमारी तरफ बदला हुआ था। खैर, उस वक्त कश्मीर में शूटिंग करने के लिए किसी परमिशन की जरूरत नहीं थी, न कोई सब्सिडी थी, न कोई पालिसी थी। उस दौर में ट्रैवल एजेंट्स हुआ करते थे, जो शूटिंग की व्यवस्थाएं भी करवाते थे। वे आसानी से सब मैनेज कर लेते थे। मेरा मानना है कि नई फिल्म पालिसी फिल्ममेकर्स को आकर्षित करने के लिए है। जैसे-जैसे दिक्कतें कम होंगी, वहां फिल्मों की शूटिंग का सिलसिला बढ़ेगा, विदेश में जाकर खूबसूरती ढूंढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिल्म ‘बेताब’ का पूरा सेट स्थानीय कान्ट्रैक्टर ने बनाकर दिया था। स्थानीय लोगों की मदद के बिना कोई फिल्म नहीं बनाई जा सकती है। आपसी तालमेल और सहयोग की इस प्रक्रिया में इकोनामी को बढ़ावा मिलता है।’
एक इंडस्ट्री से मिलती है दूसरी इंडस्ट्री को मदद:
फिल्ममेकर अशोक पंडित कहते है, ‘अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर के लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा है। आज की पीढ़ी विकास, शिक्षा और प्रगति में यकीन करती है, उनके लिए मौके बढ़ेंगे। अन्य उद्योगों की तरह अगर फिल्म इंडस्ट्री वहां र्शूंटग को विस्तार देती है तो रोजगार बढ़ेंगे, स्थानीय लोगों को काम मिलेगा, पर्यटन बढ़ेगा, एक चक्र शुरू हो जाएगा। किसी राज्य में अगर सहूलियतें मिलें तो स्वत: ही फिल्म इंडस्ट्री उसको बढ़ावा देना शुरू करती है। डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से मेकर्स सिर्फ बड़े शहरों तक शूटिंग को सीमित नहीं रखना चाहते हैं। हर गली, हर शहर में एक संस्कृति होती है, जो फिल्म और वेब सीरीज को अलग रूप देती है। जम्मू-कश्मीर में मास्टर क्लासेस और एक्टिंग स्कूल की शुरुआत होनी चाहिए। मैंने फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एप्लाइज और इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन के साथ मिलकर अपने एक पत्र के जरिए जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गर्वनर से अपील की है कि इस पालिसी के क्रियान्वयन के लिए बनाए गए बोर्ड में निर्माता, निर्देशक, तकनीशियंस, मेकअप आर्टिस्ट से लेकर स्पाटब्वाय तक हर क्राफ्ट के लोग होने चाहिए।’
कश्मीर का विकल्प नहीं:
कश्मीर के संकटग्रस्ट हालात की वजह से कई बार फिल्ममेकर्स वहां की तरह खूबसूरत अन्य र्शूंटग स्थल ढूंढ़ते हैं। कश्मीर में अपनी फिल्म ‘हामिद’ की शूटिंग कर चुके निर्देशक एजाज खान कहते हैं, ‘मैंने अपनी फिल्म की शूटिंग जब की थी तो वहां हम पर पथराव भी हुए थे, फिर भी मैंने कश्मीर में ही शूटिंग की। कश्मीर को किसी और जगह से चीट नहीं किया जा सकता है। चिनार के पेड़ तो कश्मीर में ही मिलेंगे, जो कश्मीर की पहचान हैं। जब हम ‘हामिद’ शूट कर रहे थे, वहां के लोग हर लोकेशन पर बताते थे कि फलां फिल्म यहां शूट हुई है। कश्मीर का कोई कोना नहीं है, जो पुरानी फिल्मों में एक्सपोज न हुआ हो। इस पालिसी के बाद उम्मीद है कि बदलाव आएगा। मैं खुद अपनी आगामी तीन फिल्में कश्मीर पर बनाने वाला हूं।’
आतंकवाद नहीं, संस्कृति की बात:
फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों का कहना है कि कश्मीर का नाम लेते ही वे फिल्में याद आ जाती हैं, जिनमें आतंकवाद की बात की गई है, लेकिन यह पालिसी कहानियों का मिजाज बदलेगी। आतंकवाद से हटकर वहां की संस्कृति की बात होगी। वहां का खाना, लोकेशन, संस्कृति बहुत समृद्ध है। जम्मू-कश्मीर में लोकल प्रतिभा भरी हुई हैं। तकनीशियंस, कलाकार, पेंटर हर किसी को काम मिलेगा। ‘ऐलान ए जंग’, ‘फरिश्ते’, ‘बंधन कच्चे धागों का’ समेत कई फिल्में कश्मीर में शूट कर चुके निर्देशक अनिल शर्मा कहते हैं, कश्मीर का माहौल बिगड़ने से पहले साल 1988 में ‘फरिश्ते’ फिल्म कश्मीर में शूट की थी। मैं छह महीने तक कश्मीर में ही था। कश्मीर के लोगों ने मेरी बहुत मदद की। कश्मीरी चाहते हैं कि वहां फिर से फिल्में शूट हों, उनका विकास हो। मेरा मानना है कि कश्मीर की सुंदरता को शूट करना चाहिए, वहां के आंतरिक माहौल को संभालना प्रशासन का काम है।’
आगामी फिल्मों व वेब सीरीज की शूटिंग
आमिर खान ने अपनी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के कुछ हिस्सों की शूटिंग कश्मीर में की है। निर्माता महावीर जैन ने अपनी आगामी फिल्म और राजकुमार हिरानी के बेटे वीर हिरानी ने अपनी आगामी वेब सीरीज को पूरी तरह से कश्मीर में शूट करने का ऐलान किया है। निर्माता अशोक पंडित कश्मीर में अपनी वेब सीरीज की शूटिंग की योजना बना रहे हैं, जिसमें वह स्थानीय प्रतिभाओं को बढ़ावा देंगे।
जन्नत है कश्मीर
‘जब तक है जान’ की शूटिंग की मेकिंग के दौरान शाह रुख खान ने बताया था, ‘मेरी दादी आधी कश्मीरी थीं। पापा की तमन्ना थी कि मैं उनके साथ कश्मीर जाऊं। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका। मुझे पहले भी कई बार कश्मीर जाने और वहां शूटिंग करने के मौके मिले थे, लेकिन मैंने मना कर दिया था। ‘जब तक है जान’ के दौरान लगा कि एक बार वह जगह देख तो लूं जिसे पापा बेहद खूबसूरत बताते थे। कश्मीर जाने पर लगा कि मैं अपने पिता की मजबूत बाहों में हूं।’
बेखौफ माहौल जरूरी
कश्मीर में कई फिल्मों की शूटिंग कर चुके अभिनेता यशपाल शर्मा कहते हैं, ‘जब हम ‘लम्हा’ फिल्म की शूटिंग कश्मीर में कर रहे थे तो उसमें बंदूकें ट्रक में भरने का एक सीन था। हमारी शूटिंग यह कहकर रोक दी गई थी कि यह कश्मीर को बदनाम करने वाली बात है। वहां के लोग भी कश्मीर में सामान्य और बेखौफ माहौल चाहते हैं। वहां शूटिंग होंगी तो माहौल में बदलाव आएगा। कश्मीर की कहानियों को वहीं शूट किया जा सकेगा। इंग्लैंड और मारिशस जैसे देशों में शूटिंग पर सब्सिडी दी जाती है। वह सब्सिडी कश्मीर में दी जा रही है तो कोई खर्चा करके विदेश क्यों जाना चाहेगा।’