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20 सालों में सिनेमा के पर्दे पर दिखे अनेक रंग, सितारों का बदला अंदाज, ओटीटी ने बढ़ाया मनोरंजन का डोज

21वीं सदी के दो दशक हिंदी सिनेमा के लिए बदलाव वाले रहे हैं। सेक्सुअल समस्याओं से लेकर साइकोलॉजिकल समस्याओं तक बायोपिक से लेकर काल्पनिक कहानियों तक अब किसी भी विषय पर फिल्म बनाना वर्जित नहीं माना जाता है

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 08 Jan 2021 12:03 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jan 2021 04:06 PM (IST)
20 सालों में सिनेमा के पर्दे पर दिखे अनेक रंग, सितारों का बदला अंदाज, ओटीटी ने बढ़ाया मनोरंजन का डोज
Photo Credit - Krrish/ Thappad/ Bajirao mastani / Satya Poster Image

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। 21वीं सदी के दो दशक हिंदी सिनेमा के लिए बदलाव वाले रहे हैं। सेक्सुअल समस्याओं से लेकर साइकोलॉजिकल समस्याओं तक, बायोपिक से लेकर काल्पनिक कहानियों तक अब किसी भी विषय पर फिल्म बनाना वर्जित नहीं माना जाता है। लेखन से लेकर अभिनय, एक्शन, और फिल्म मेकिंग के तरीकों में तमाम सकारात्मक बदलाव आए हैं। मल्टीप्लेक्स की संख्या बढ़ी। इन बदलावों से जहां सिनेमा बदला वहीं डिजिटल प्लेटफार्म के आने से छोटे फिल्ममेकर्स की राहें आसान हुईं। इस पर एक रिपोर्ट :

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सिनेमा ने ली करवट 

बीती सदी के नौवें और आखिरी दशक की बात करें तो सिनेमा ने करवट लेना शुरू कर दिया। हीरो का दस गुंडों को मारना, बहन के साथ बलात्कार, हीरोइन को पटाने के लिए उसके पीछे भागने वाले फार्मूले चलना बंद हो गए थे। मैंने प्यार किया, हम आपके हें कौन, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्म की सफलता ने सिनेमा की दिशा बदलनी शुरू की। अगर बीते बीस सालों की बात करे तों लेखन के स्तर पर बहुत बदलाव आए हैं। अब छोटे छोटे मुद्दों पर फिल्म बन रही हैं। उनके लिए ऑडियसं भी है।

कहानी, एयरलिफ़ट जैसी फिल्मों के सहलेखक सुरेश नायर कहते हैं, अब लेखन के लिए तमाम माध्यम भी आ गए है। मुझे याद है कि पहले स्क्रिप्ट नहीं होती थी। अब बाउंड स्क्रिप्ट होती है। कलाकार बकायदा स्क्रिप्ट रीडिंग करते हैं। अब हर काम योजनाबद् तरीके से होता है। अब एनआरआई को टारगेट करती फिल्में भी बननी बंद हो गई हैं। अब हमारी फिल्में देसी हो गई हैं। अब ऐसी कहानी बताई जा रही जो हमारी जिंदगी के करीब हैं। ताजा मिसाल ‘थप्पड़’ है।

आउटसाइडर्स की दिलचस्पी 

वहीं बाटला हाउस, रेड जैसी फिल्मों के लेखक रितेश शाह कहते हैं, पिछली सदी के छठे और सातवें दशक में बाहरी लोग फिल्मों में काम करने आते थे, पर बीच में उनका आना कम हो गया था। पिछले 20 वर्षों में एक बार फिर से आउटसाइडर्स ने सिनेमा की तरफ दिलचस्पी दिखाई है जिसकी वजह से सिनेमा में इतनी विविधता देखी जा रही है। खास तौर पर पिछले पांच वर्षों में सिनेमा का कंटेंट बहुत बदला है। 

पहले भी अनुराग कश्यप और रामगोपाल वर्मा जैसे लोग ‘सत्या’ जैसी कहानियां लिखते थे। इंडस्ट्री में जितने आउटसाइडर्स आते गए, कंटेंट में भी उतनी विविधता आती गई। बहुत सी महिला निर्देशक भी आई, जो पहले नहीं होती थी। जैसे फराह खान ने मेनस्ट्रीम की मनोरंजक फिल्में बनाई। उसके बाद महिला फिल्म निर्देशकों का भी एक महत्वपूर्ण वर्ग आया है। फिर चाहे गौरी शिंदे, अश्विनी अय्यर तिवारी, जोया अख्तर हो या रीमा कागती हों।

महिला निर्देशक की आवाज़ बुलंद

पहले भी महिला निर्देशक फिल्में बनाती थीं, लेकिन यह महिला निर्देशकों का वर्ग पहले की तरह सिर्फ आर्ट सिनेमा के ठप्पे के साथ नहीं काम करती हैं, बल्कि इन्होंने मेनस्ट्रीम सिनेमा में ही अपनी एक अलग आवाज बुलंद की है। उसके बाद जूही चतुर्वेदी, नसीर मुन्नी कबीर, और कनिका ढिल्लन, भवानी अय़यर समेत कई महिला लेखिका भी आई। पहले इतनी महिला लेखिकाएं नहीं हुआ करती थी। अलग-अलग क्षेत्रों से और महिला लेखकों के आने से सिनेमा में एक ही तरह की फिल्में बननी कम हो गई। यह बड़ा बदलाव है।

वहीं 2005 में कॉरपोरेट्स के आ जाने के बाद लेखकों की फीस में काफी इजाफा हुआ है। लेखकों के कॉन्ट्रैक्ट और कॉपीराइट को सुनिश्चित करने के लिए फिल्म राइटर्स एसोसिएशन ने काफी प्रयास किया। पहले की तुलना में मीडिया भी लेखकों में ज्यादा दिलचस्पी लेता है, उन्हें भी कवरेज मिल जाता है। वहीं रुप की रानी चोरों का राजा, हम आपके दिल में रहते हैं, तेरे नाम जैसी फिल्मों के निर्देशक सतीश कौशिक कहते हैं, निर्देशक अब अलग-अलग तरह की कहानियों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। वहीं डिजिटल कैमरा और आधुनिक तकनीक के आने से फिल्मों की पिक्चर क्वॉलिटी पर कई बेहतरीन प्रभाव देखे जा सकते हैं। 

फिल्म रिलीज़ डेट का बदला तरीका

अब फिल्म निर्माण भी सुनियोजित हो गया है। फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आए बदलावों के संबंध में निर्माता शैलेश आर सिंह कहते हैं, अब फिल्में एक टाइमलाइन के अंतर्गत तैयार हो जाती हैं। काम करने के तरीके में भी कई महत्वपूर्ण सिस्टमैटिक बदलाव आए हैं। पहले फिल्में बनने से पहले कभी उनकी रिलीज डेट का ऐलान नहीं किया जाता था, लेकिन अब फिल्मों के साथ-साथ उनकी रिलीज की भी घोषणा कर दी जाती है। पहले फिल्में शुरू होती थी, लेकिन रिलीज कब होगी यह किसी को नहीं पता रहता था, लेकिन अब रिलीज डेट सब जानते रहते हैं, लेकिन शुरू होने में अनिश्चितता रहती है।

उसके अलावा अब फिल्मों से मार्केटिंग और बिजनेस जैसी अलग-अलग चीजें भी जुड़ गई हैं। पहले मार्केटिंग के लिए पोस्टर और बैनर के साइज समेत सभी आधारभूत चीजें पहले से ही तय रहती थी। अब तो फिल्म निर्माण से बड़ी मार्केटिंग की योजनाएं तैयार होती हैं। अब निर्माता फिल्म बनाने से पहले सोचते हैं कि इस फिल्म की मार्केटिंग कैसी करनी है। यह पूरी तरह से अलग किस्म की सोच है। यह फिल्म किस के लिए बन रही है, कहां के लिए बन रही है, इसका मार्केटिंग फेज क्या होगा समेत अब बहुत सारी चीजों की योजनाएं तैयार की जाती हैं। पहले फिल्मकार सिर्फ कहानी पसंद आने पर फिल्म बनाने चल पड़ते थे। अब अब अगर फिल्मकार को कहानी पसंद भी आए लेकिन मार्केटिंग और सेल्स टीम उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाए, तो निर्माता फिल्म नहीं बनाता। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से छोटी फिल्मों को अब ज्यादा स्कोप मिल रहा है।

अब फिल्मों में डिजिटल मूवी कैमरे इस्तेमाल में लाए जाते हैं। ‘दबंग’ जैसी फिल्मों के सिनेमेटोग्राफर महेश लिमाए कहते हैं, ‘मैंने अपने करियर का आगाज 1994 में किया था। उस समय मैं विज्ञापन बहुत शूट करता था। पहले कैमरे मेटल बॉडी होने की वजह से बहुत भारी होते थे। अब गोरिल्ला शूट होता है, जिसमें हाथ में कैमरे को किरदार के साथ लेकर चलना पड़ता है। पहले वह काफी मुश्किल होता था। अब कैमरे पहले की तरह भारी नहीं होते। हालांकि बहुत अंतर नहीं आया है लेकिन आप अलग-अलग तरह के कैमरे का प्रयोग कर सकते हैं। पहले तेज रौशनी को कैमरे में नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होता था। अब तकनीक ने बहुत सुविधा दी है। पहले असली तलवार से सब शूट करना पड़ता था। अब अगर किसी दृश्य में पेट में तलवार भोंकना हो उसका हैंडल लेकर ही आप एक्टर को एक्शन करने को बोल सकते हैं।

हम बाकी काम वीएफएक्स से कर सकते हैं। वरना पुरानी फिल्मों में हाथ और बॉडी के बीच में उसे घुसाते थे। उसे देखकर लगता था कि पेट में घुस गई है। वह सब तकनीक होती है उन्हें दिखाने की। दबंग 3 का क्लाइमेक्स का एक्शन सीक्वेंस हमने 23 दिन में शूट किया था। वह सुरंग में था। वहां पर अलग अलग ब्लॉस्ट हो रहे थे। हमने उसे तीन अलग-अलग जगहों पर शूट किया है। एक असली सुरंग में शूट किया है। एक सुरंग का पूरा सेट लगाया था।

सलमान भाई का बॉडी शॉट सब इनडोर शूट किया है। फिल्म देखते हुए आपको लगेगा नहीं कि यह अलग-अलग शूट हुआ है। यह सब तकनीक का कमाल है। उसके अलावा डिजिटल क्रांति होने से कई चीज इकोफ्रेंडली भी हुई। अब लाइट न होने की स्थिति में भी हम शूट कर सकते हैं और उसमें बेहतरीन शॉट निकल सकते हें। तकनीकी में क्रांति ने युवा फिल्ममेकरों को भी बहुत बड़ा प्लेटफार्म दिया है। अब वह अपने मोबाइल ही फिल्म को शूट कर सकते हैं। उसे इंटरनेट मीडिया पर डालकर वायरल कर सकते हैं।

एक्टर ख़ुद करते हैं स्टंट 

कृष, ब्लैक फ्राइडे, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत जैसी फिल्मों के एक्शन डायरेक्टर श्याम कौशल कहते हैं कि अब कहानी कहने के तरीकों में बदलाव आया है। उसके मुताबिक ही हमें भी काम करना होता हैं। पहले एक्टर के डुप्लीकेट ज्यादा काम करते थे। अब एक्टर खुद ही अपने स्टंट ज्यादा से ज्यादा करना चाहते हैं। अब स्टंट के लिए बहुत सारे उपकरण ऐसे आ रहे हैं जिसकी वजह से बहुत सारे स्टंट एक्टर से ही करा पाना मुमकिन होता है। अब बजट भी बड़ा हो गया। वीएफएक्स आने से चीजें आसान हो गई है। मसलन ब्लॉस्ट का अलग से शॉट ले लिया हीरो का अलग से। वहां से आप उन्हें जोड़कर बढि़या सीन बना सकते हैं।

बीते साल कोरोना संक्रमण की वजह से हुए लॉकडाउन भी फिल्मी दुनिया पर ब्रेक नहीं लगा पाया। इस दौरान तकनीक का उपयोग बहुत बढा। बड़े सितारों की फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म पर आई। वेब सीरीज का मार्केट बढ़ा। प्रेस कांफ्रेंस से लेकर इंटरव्यू और फिल्मों का प्रमोशन वुर्चअल हो गया। प्रमोशन के लिए नए तरीके ईजाद हुए। फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा ने कोरोनाकाल में सीमित संसाधन में फिल्म बनाई।

वह कहते हैं, ‘यह तकनीक का ही कमाल है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म हर जगह देखा जा रहा है। फिल्ममेकर होने के नाते अगर मैं इसका इस्तेमाल करके अपने लिए कुछ बना सकता हूं, तो मैंने वह तकनीक भी अपनाई। मैंने उन तकनीकों का फायदा उठाया, जो आज की तारीख में उपलब्ध है। आरजीवी वर्ल्ड थिएटर मेरा अपना डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जिस पर मैं अपनी वह फिल्में डालता हूं, जो शायद थिएटर में न रिलीज हो पाएं। दर्शकों को भी वह फिल्में देखने का मौका घर बैठे मिल रहा है, जो कम बजट और नए जॉनर में बनी हैं, जो शायद वह थिएटर जाकर न देखे, लेकिन घर पर रहकर अपने फोन में देखना चाहें। हमें कंटेंट मेकर होने के नाते तकनीक के साथ बदलना होगा।

अब लाभ में हिस्सेदारी ले रहे हैं सितारे

ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन कहते हैं कि आज शाह रुख खान, रितिक रोशन, आमिर खान, सलमान खान, जॉन अब्राहम, रणबीर कपूर, रणवीर सिंह जैसे हर बड़े सितारे का अपना प्रोडक्शन हाउस है। दीपिका पादुकोण और अनुष्का शर्मा फिल्म निर्माण में उतर चुकी हैं। यह सब मुनाफे में भी हिस्सेदारी ले रहे हैं। उसके अलावा मल्टीप्लेक्स आने से फिल्मों का बिजनेस बढ़ा है। उससे इंडस्ट्री में पारदर्शिता भी आई है कि अब फिल्म कितना बिजनेस कर रही है। गजनी सौ करोड़ क्लब में शामिल होने वाली पहली फिल्म बनीं। हालांकि उससे पहले हम आपके कौन देखें तो वह बहुत लंबे समय तक चली थी परउसकी कमाई ट्रैक नहीं हुई थी। अब फिल्मों की कमाई का आंकडा मिल जाता है।


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