अमिताभ बच्चन के लिए लेखक की लिखी लाइन पत्थर की लकीर होती है- जूही चतुर्वेदी
Juhi Chaturvedi on Big B गुलाबो सिताबो में अमिताभ बच्चन का किरदार ही एकलौता ऐसा किरदार था जो स्क्रिप्ट लिखने से पहले ही तय था कि उसे बिग बी ही निभाएंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। गुलाबो सिताबो की लेखक जूही चतुर्वेदी कहती हैं कि किरदार लिखने से पहले उनके जेहन में स्पष्ट था कि अमिताभ ही होंगे फिल्म के मुख्य किरदार। जूही खुद लखनऊ से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए उन्होंने फिल्म में बखूबी पेश किया है इस शहर का मिजाज। फ़िल्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है।
'गुलाबो सिताबो' में अमिताभ बच्चन का किरदार ही एकलौता ऐसा किरदार था, जो स्क्रिप्ट लिखने से पहले ही तय था कि उसे बिग बी ही निभाएंगे। इससे पहले 'विकी डोनर' और 'पीकू' की स्क्रिप्ट लिख चुकीं जूही कहती हैं कि किसी भी किरदार को लिखने से पहले उस किरदार के चाल-ढाल, रहन-सहन और भाषाशैली के बारे में सोचा जाता है।
'गुलाबो सिताबो' में लखनऊ निवासी मिर्जा का किरदार जब सोचा जा रहा था, तब मेरे और निर्देशक शूजित सरकार के दिमाग में अमिताभ बच्चन के अलावा कोई और नहीं था। जबकि बाकी किरदारों के बारे में स्क्रिप्ट पूरी होने के बाद सोचा गया। बच्चन साहब खुद प्रयागराज (इलाहाबाद) से ताल्लुक रखते हैं। वहां की संस्कृति, भाषा, संगीत, बोलचाल के लहजे से बाखूबी वाकिफ हैं।
जूही कहती हैं, ''मैं खुद लखनऊ से ताल्लुक रखती हूं। ऐसे में अपने अनुभव के मुताबिक मैंने स्क्रिप्ट लिखी थी, लेकिन उसे वैसे ही पर्दे पर तराशकर दर्शाना बच्चन साहब से बेहतर कोई नहीं कर सकता था। लखनऊ में गर्मी के दौरान फिल्म की शूटिंग हुई थी। बच्चन साहब का जो लुक था, उसके मेकअप में ही दो से तीन घंटे लग जाते थे। उन्होंने जिस तरह से खुद को उस किरदार में ढाला, उन्हें पहचानना मुश्किल था।''
स्क्रिप्ट के मुताबिक भीड़-भाड़ वाले इलाके में फिल्म की शूटिंग होनी थी। शूजित सर बच्चन साहब को ऑटो में बिठाकर ले जाते थे और उन्हें कोई पहचान भी नहीं पाता था। जूही इससे पहले 'पीकू' फिल्म पर अमिताभ बच्चन के साथ काम कर चुकी हैं। उनके साथ काम करने की खासियत बताते हुए वह कहती हैं कि बच्चन साहब को चीजों की काफी परख है। उनके पास जीवन के अनुभवों का खजाना है, जो हमारे अनुभवों को भी एक नई सोच और दिशा प्रदान करता है।
उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह निर्देशक और लेखक को तवज्जो देते हैं। उनके लिए लेखक की लिखी हुई लाइन पत्थर की लकीर की तरह होती है। बच्चन साहब के पिताजी हरिवंशराय बच्चन लेखक रहे हैं, ऐसे में वह यह बात समझते हैं कि लेखक ने एक-डेढ़ साल का वक्त लगाकर अगर एक स्क्रिप्ट लिखी है तो सोच समझकर ही लिखी होगी। वह निर्देशक के विजन को भी समझते हैं। कई बार हम जब लिखते हैं, तो कुछ ऐसे शब्द होते हैं, जो सीन को करते वक्त किरदार से मेल नहीं खाते हैं।
ऐसे में अगर बच्चन साहब को स्क्रिप्ट में कोई बदलाव करना भी होता है तो वह यह नहीं कहते हैं कि मैं यह शब्द या लाइन नहीं बोलूंगा। वह हमसे ही कहते हैं कि सोचो और क्या दूसरा शब्द या लाइन हो सकती है। वह कोशिश करते हैं कि वह शब्द हम ही उन्हें दें।
फिल्म की शूटिंग लखनऊ में हुई है। जूही बताती हैं कि कहानी लखनऊ में सेट है। लिहाजा उस शहर की संस्कृति, मिजाज से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक की झलक फिल्म में दिखाई देती है। लखनऊ नवाबों का शहर है। आज भी वहां पर कई हवेलियां हैं, जो अब पुरानी और जर्जर हो चुकी हैं, लेकिन उनमें रहने वालों का नवाबी अंदाज बरकरार है। वही बात फिल्म में नजर आएगी। बताना चाहूंगी कि वह नवाबी मुझमें भी है, तभी दो साल में एक स्क्रिप्ट लिखती हूं।
(जूही चतुर्वेदी की प्रियंका सिंह से बातचीत)