बॉलीवुड फिल्मों में है बहुत पोटेंशियल, हॉलीवुड की तरह किया जाए ये काम - विक्रमादित्य मोटवाने
वेब सीरिज घूल के तीन एपिसोड रिलीज किए जा चुके हैं। इसमें राधिका आप्टे और मानव कौल की अहम भूमिका है।
मुंबई। हम डिजीटल हो रहे हैं और अब वेब सीरिज का भी ट्रेंड बढ़ रहा है। फिल्ममेकिंग के चैलेंजेस की बात करें तो बॉलीवुड में अभी भी अच्छी स्क्रिप्ट की कमी नजर आती है। वैसा कंटेंट जनरेट नहीं हो पा रहा जैसा होना चाहिए। इस कारण हमारे यहां पूरी डिपेंडेंसी स्टार पर रह जाती है। वहीं, बात करें हॉलीवुड की तो एेसा नहीं है। वहां पर परफेक्ट बैलेंस देखने को मिलता है। क्योंकि कंटेंट के साथ स्टार भी स्ट्रॉन्ग होता है और दोनों के कंधों पर फिल्म की सक्सेस की जिम्मेदारी होती है। यह कहना है फिल्ममेकर विक्रमादित्य मोटवाने का। विक्रमादित्य ने जागरण डॉट कॉम से अपनी वेब सीरिज घूल को लेकर एक्सक्लूसिव बातचीत की और फिल्मों को लेकर बात की।
हाल ही में विक्रमादित्य द्वारा प्रोड्यूस की गई वेब सीरिज घूल के पहले तीन एपिसोड्स को दर्शकों के सामने लाया गया है। घूल के प्रोड्यूसर विक्रमादित्य मोटवाने कहते हैं कि, हम अब डिजीटल हो रहे हैं। अब फिल्मों के साथ वेब सीरिज का भी ट्रेंड बढ़ रहा है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि, पहले कुछ हफ्तों तक फिल्मों लिए थिएटर तक जाना होता है लेकिन वेब सीरिज को कही भी देखा जा सकता है। फिल्ममेकिंग के चैलेंजेस को लेकर बात करते हुए विक्रमादित्य ने बताया कि, बॉलीवुड में स्क्रिप्ट की कमी है। दरअसल, दो बाते हैं। ब्रेड एंड बटर फिल्में जो हैं उनसे उतना कंटेंट जनरेट नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। वहीं, नए कंटेंट और आइडिया का उतना ज्यादा सपोर्ट नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिए। आखिरकार डिपेंडेंसी स्टार पर रह जाती है कि वो कितना आगे तक फिल्म को ले जा पाता है। हॉलीवुड में इसका परफेक्ट बैलेंस देखने को मिलता है। क्योंकि, वहां पर कंटेंट के साथ स्टार भी स्ट्रॉन्ग होता है और दोनों के कंधों पर फिल्म होती है। बात करें फिल्म संजू की तो इसमें बहुत पोटेंशियल था, फिल्म ने 300 करोड़ का आंकड़ा पार किया। लेकिन फिल्म ज्यादा समय के लिए थिएटर्स में नहीं रहती तो इस कारण पोटेंशियल होने के बावजूद ज्यादा फायदा नहीं हो पाता। हॉलीवुड में तो फिल्में थिएटर्स में तीन-तीन महीने तक रहती हैं जिस कारण उनको और ज्यादा फायदा होता है। उसके विपरित बॉलीवुड में तो 6 हफ्ते के अंदर ही फिल्म थिएटर्स से बाहर हो जाती है। इसलिए बॉलीवुड फिल्मों के पोटेंशियल को देखते हुए और समय मिलना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा थिएटर्स में फिल्म को रिलीज किया जाना चाहिए।
बाहुबली ने बदली बड़ी पिक्चर की परिभाषा
को बदला विक्रमादित्या कहते हैं कि, एसएस राजमौली की फिल्म बाहुबली ने बड़ी फिल्म की परिभाषा को बदल दिया है। एक फिल्म क्या होती है और कैसे बनकर तैयार होती है और अाखिरकार दर्शकों के सामने कैसे पेश की जाती है इसका बेहतरीन उदाहरण है बाहुबली।
डायरेक्शन करना चाहता था
विक्रमादित्य कहते हैं कि, वे डायरेक्शन करना चाहते थे। विक्रमादित्य ने बताया कि, मुझे उड़ता पंजाब, एनएच 10 फिल्मों को डायरेक्ट करने की इच्छा थी। लेकिन यह मेरी सिर्फ इच्छा थी। और मुझे लगता है कि जब भी मेरी एेसी इच्छा किसी फिल्म को लेकर होती है तो वो अच्छी बनती है चाहे कोई और डायरेक्ट करे। तो मेरा कुछ एेसा विचार बिल्कुल नहीं है कि मैं ही फिल्म को डायरेक्ट करूं।
घूल को दिया है अलग ट्रीटमेंट
डायरेक्टर पेट्रिक ग्राहम कहते हैं कि, वेब सीरिज का टाइटल अरेबिक है जिसका मतलब भूत होता है। इसकी कहानी को लेकर पेट्रिक ने बताया कि, हमारी कोशिश थी कि कहानी को अलग तरह से कहा जाए। कुछ नया हो। हां, जॉनर जरूर हॉरर है लेकिन अलग करने की चाह थी कि इसे बाकी फिल्मों से अलग तरह से पेश किया जा सके। इस तरह की हॉरर फिल्म इंडिया में नहीं आई है, क्योंकि इसका ट्रीटमेंट बहुत अलग है।
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