विद्या बालन का ये ख़त आपके नाम!
फ़िल्म की अभिनेत्री विद्या बालन ने चाइल्ड एब्यूज के मसले पर जागरण डॉट कॉम के तमाम पाठकों के नाम एक खत लिखा है, जो हम यहां आपसे शेयर कर रहे हैं।
मुंबई। बाल यौन शोषण एक बेहद संवेदनशील विषय है। आंकड़े बताते हैं कि हर दूसरी या तीसरी बच्ची के साथ कहीं न कहीं, किसी न किसी स्तर पर ये घिनौना काम हो रहा है। हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'कहानी 2' में इस मनोविज्ञान को भी समझने की कोशिश की गयी है कि चाइल्ड एब्यूज किस तरह से किसी बच्चे की सोच और परवरिश को प्रभावित करता है।
फ़िल्म की अभिनेत्री विद्या बालन ने इस मसले पर जागरण डॉट कॉम के तमाम पाठकों के नाम एक खत लिखा है, जो हम यहां आपसे शेयर कर रहे हैं।
प्यारे दोस्तों,
बचपन एक खूबसूरत लम्हा होता है हम सबके जीवन में। उस वक़्त जो अंकुर बो दिए जाते हैं उसका असर जीवन भर रहता है। मेरी कहानी की दुर्गा को सालों बाद भी कोई छूता है तो वो असहज हो जाती है, किसी भी तरह के फिजिकल टच से सहज नहीं हो पाती। दुर्गा अपने आप तक को पसंद नहीं करती क्योंकि कहीं न कहीं उसके मन में एक गिल्ट है, वो बचपन की उन तमाम बातों के लिए खुद को दोषी मानती है। दुर्गा ये भी नहीं चाहती कि अब कोई उसे पसंद करे, वो नहीं चाहती कि कोई उसकी तरफ आकर्षित हो और इसलिए कोई उसके पास आता भी है तो वो डर जाती है। बचपन की वो बुरी यादें उसके अंदर तक गहरी धंसी हुई हैं। बाल यौन शोषण एक काफी संवेदनशील विषय है और ज़्यादातर लोग इस विषय पर बात ही नहीं करते।
हम मानना ही नहीं चाहते पर सच तो यही है कि रोज़ ऐसी घटनाएं हो रही हैं। हमारे आस-पास बहुत कुछ ऐसा हो रहा है पर हम न देखना चाहते हैं, न सुनना चाहते हैं इन विषयों पर। ये बीमारी बहुत फैली हुई है हमारे समाज में। जब आपको अपने आस-पास ऐसा अहसास हो या कोई डाउट हो कि हो सकता है इसके साथ चाइल्ड एब्यूज हो रहा हो तो उसे थोड़ा धैर्य दीजिये, थोड़ी हिम्मत दीजिये।
कई बार विक्टिम को यह भी लगता है कि उसकी गलती रही होगी। क्योंकि, उससे कहा जाता है कि तुम चुप रहो, किसी से कुछ मत कहो। इस सोच को बदलने की ज़रूरत है। हमें इस बात को दबाना नहीं है बल्कि शेयर करना है, खामोश नहीं रहना है। तोड़नी है अपनी चुप्पी! जब तक लोगों को यह नहीं लगता कि ये मेरे साथ भी हो सकता है, मेरे घर में भी हो सकता है, हो रहा है और इसमें जो विक्टिम है उसकी कोई गलती नहीं है तब तक इस सच को दबाते ही रहेंगे हम।
मुझे पूरा यकीन है कि धीरे-धीरे बहुत कुछ बदलेगा और बदल भी रही हैं चीजें। जहां तक हम लड़कियों की बात है तो सिनेमा भी अब यही दिखा और बता रहा है कि ज़्यादातर लड़कियां अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जी रही हैं और नहीं भी जी रही हैं तो कम से कम उन्हें ये लगने लगा है कि वो अपनी शर्तों पर जी सकती हैं। छोटे-छोटे गांवों में भी बदलाव देखे जा रहे हैं। अब हम लड़कियां सिर्फ सपोर्टिंग रोल में नहीं है। हम अपनी अहमियत समझने लगे हैं। हमारी अपनी ख्वाहिशें हैं, मुश्किलें हैं, सपने हैं, संघर्ष हैं, चाह है, दुनिया है..जिसका आप सभी मर्द एक हिस्सा भर हैं।
आपकी
विद्या बालन