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तेरा क्या होगा कालिया..

बॉलीवुड में कई ऐसे अभिनेताओं का नाम लिया जा सकता है, जिन्होंने अपने करियर की पहली ही फिल्म से इस इंडस्ट्री में नाम और शोहरत दोनों पाई। लेकिन इस बॉलीवुड में ऐसे अभिनेताओं का नाम जुबान पर नहीं आता, जिन्होंने खलनायक के किरदार से अपना पांव इस इंडस्ट्री में जमाया हो। लेकिन ऐसा एकमात्र नाम पुराने और नए जमाने के लोगों को आज भी याद है। उसका नाम है अमजद खान। उनका जन्म 12 नवंबर, 1

By Edited By: Published: Mon, 12 Nov 2012 10:50 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2012 03:03 PM (IST)
तेरा क्या होगा कालिया..

नई दिल्ली। बॉलीवुड में कई ऐसे अभिनेताओं का नाम लिया जा सकता है, जिन्होंने अपने करियर की पहली ही फिल्म से इस इंडस्ट्री में नाम और शोहरत दोनों पाई। लेकिन इस बॉलीवुड में ऐसे अभिनेताओं का नाम जुबान पर नहीं आता, जिन्होंने खलनायक के किरदार से अपना पांव इस इंडस्ट्री में जमाया हो। लेकिन ऐसा एकमात्र नाम पुराने और नए जमाने के लोगों को आज भी याद है। उसका नाम है अमजद खान। उनका जन्म 12 नवंबर, 1940 को मध्य प्रदेश में हुआ था। अपने जमाने की सफलतम फिल्म 'शोले' से बॉलीवुड में पांव जमाने वाले वाले अमजद खान ने इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय की जो छाप छोड़ी वह आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर जिंदा है।

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अमजद खान का बॉलीवुड से रिश्ता बेहद पुराना था। उनके पिता जयंत भी अपने दौर के जानेमाने हीरो थे। अमजद खान के दो भाई इम्तियाज और इनायत खान भी फिल्मों से जुड़े हुए थे। जयंत ने बॉलीवुड का ककहरा सिखाने के लिए अमजद को कुछ डायरेक्टर्स के पास भी भेजा, लेकिन अमजद इससे खुश नहीं थे, लिहाजा वह इससे अलग हो गए। इसकी वजह उनका तुनक मिजाज होना भी था।

अपने बीस वर्ष के फिल्मी सफर में अमजद ने करीब 130 फिल्मों में काम किया। यूं तो उनकी सभी फिल्मों को सराहा गया लेकिन फिल्म 'शोले' न सिर्फ बॉलीवुड की बल्कि उनके फिल्मी करियर में भी मील का पत्थर साबित हुई। हालांकि अमजद खान ने चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर भी कुछ फिल्में की थीं। इनमें 1951 में आई फिल्म नाजनीन और अब दिल्ली दूर नहीं फिल्म शामिल है। इसके अलावा बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने पिता के साथ भी उन्होंने कुछ फिल्में की। 1960 में उन्होंने बतौर व्यस्क पहली फिल्म हिंदुस्तान की कसम अभिनय किया।

वर्ष 1975 में आई फिल्म 'शोले' ने अमजद खान की दुनिया ही बदल दी। इस फिल्म के लिए उन्होंने जबरदस्त तैयारी भी की। एक कुख्यात डाकू की भूमिका निभाने से पहले उन्होंने चंबल के बीहड़ों और वहां के डाकुओं के बारे में जानने के लिए उन्होंने अभिशप्त चंबल नामक किताब का गहन अध्ययन किया। यह किताब जया बच्चन के पिता तरुण कुमार भादुड़ी ने लिखी थी।

इस फिल्म के रिलीज होने के बाद लोगों की जुबान पर इस फिल्म के हीरो के डायलॉग कम और गब्बर के डायलॉग ज्यादा चढ़े हुए थे। 'कितने आदमी थे', 'यहां से पचास-पचास कोस दूर जब बच्चा रोता है तो मां कहती है कि सो जा, सो जा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा'। 'बोहत जान है इन हाथों में ठाकुर, ये हाथ हमका दे ठाकुर', 'बहुत पछताओगे ठाकुर', 'दुनिया की कोई जेल गब्बर को तीस साल कैद में नहीं रख सकती', 'अरी ओ छमिया जब तक तेरे पांव चलेंगे, तब तक इसकी जिंदगी चलेगी' जैसे कई डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर सर चढ़कर बोलते हैं।

अमजद खान ने इसके बाद कई फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई। उन्होंने कुछ पॉजीटिव रोल वाली भी फिल्में की जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, याराना, लावारिस जैसी फिल्में शामिल हैं। उत्सव में वह कामसूत्र के रचयिता वात्सायन की भूमिका में दिखाई दिए। इसके अलावा गुलजार के टीवी सीरियल मिर्जा गालिब में भी वह नजर आए। 1988 में वह एक इंग्लिश मूवी द परफेक्ट मर्डर में भी नजर आए।

1986 में एक कार एक्सीडेंट के बाद उनके वजन में बेतहाशा वृद्धि होनी शुरू हो गई और यही उनकी मौत का कारण भी बना। 27 जुलाई 1992 में उनको दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।

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