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इन विदेशी फ़िल्मों की वजह से चूर-चूर हो गया भारत का ऑस्कर जीतने का सपना, क्या 'जलीकट्टू' से होगा पूरा?

जलीकट्टू ने जिन फ़िल्मों को पछाड़ा उनमें अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की गुलाबो सिताबो विद्या बालन की शकुंतला देवी जाह्नवी कपूर और पंकज त्रिपाठी की गुंजन सक्सेना दीपिका पादुकोण की छपाक नवाज़उद्दीन सिद्दीकी की सीरियस मेन और अनुष्का शर्मा निर्मित बुलबुल जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 05:20 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 07:44 AM (IST)
इन विदेशी फ़िल्मों की वजह से चूर-चूर हो गया भारत का ऑस्कर जीतने का सपना, क्या 'जलीकट्टू' से होगा पूरा?
भारत ने मलयालम फ़िल्म जलीकट्टू पर दाव लगाया है। फोटो- मिड-डे

नई दिल्ली, जेएनएन। 93वें एकेडमी अवॉर्ड्स (Oscar) के लिए भारत ने मलयालम फ़िल्म जलीकट्टू पर दाव लगाया है। इस फ़िल्म को फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने भारत की आधिकारिक प्रविष्टि चुना है, जिसका मतलब है, जलीकट्टू को ऑस्कर अवॉर्ड्स की बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फ़िल्म कैटेगरी में नामांकन पाने के लिए दुनियाभर से आने वाली दर्ज़नों बेहतरीन फ़िल्मों के बीच अपनी योग्यता साबित करनी होगी।

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इस बार फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के चुनाव से अधिकतर फ़िल्म जानकार संतुष्ट नज़र आ रहे हैं और 'जलीकट्टू' को एक योग्य दावेदार मान रहे हैं। लेखिका शोभा डे ने सोशल मीडिया में लिखा कि पहली बार ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए कचरा बॉलीवुड फ़िल्मों के बजाए एक सही फ़िल्म भेजी जा रही है। भारतीय सिनेमा की जानी-मानी अभिनेत्री कंगना रनोट ने इस फ़िल्म के चुनाव का स्वागत किया।

'जलीकट्टू' ने जिन फ़िल्मों को पछाड़ा उनमें अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की 'गुलाबो सिताबो', विद्या बालन की 'शकुंतला देवी', जाह्नवी कपूर और पंकज त्रिपाठी की 'गुंजन सक्सेना', दीपिका पादुकोण की 'छपाक', नवाज़उद्दीन सिद्दीकी की 'सीरियस मेन' और अनुष्का शर्मा निर्मित 'बुलबुल' जैसी फ़िल्में शामिल हैं। यहां बताते चलें कि एकेडमी ने कोरोना वायरस पैनडेमिक की वजह से सिनेमा निर्माण और प्रदर्शन प्रभावित होने की वजह से उन फ़िल्मों को भी स्वीकार किया है, जो सिनेमाहॉल के बजाए सीधे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुईं। इसी वजह से नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम पर स्ट्रीम होने वाली फ़िल्में भी इस बार रेस में हैं।

बहरहाल, 'जलीकट्टू' ने आधिकारिक प्रविष्टि बनने के लिए 26 दूसरी बड़ी फ़िल्मों को धूल चटाते हुए घरेलू मैदान तो मार लिया, मगर दुनिया के दूसरे सिनेमा से मुक़ाबला जीत पाती है या नहीं, इसका पता लगने में अभी थोड़ा वक़्त है। इससे पहले हम उन विदेशी फ़िल्मों के बारे में जानते हैं, जिनकी वजह से हिंदी फ़िल्मों का ऑस्कर पाने का सपना तीन बार चूर-चूर हुआ। 

ऑस्कर को भेजी गयीं 52 भारतीय फ़िल्में 

विश्व-विख्यात ऑस्कर अवॉर्ड्स का आयोजन करने वाली अमेरिकी संस्था एकेडमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़ (AMPAS) की स्थापना 11 मई 1927 को हुई थी। पहले एकेडमी अवॉर्ड्स का आयोजन 16 मई 1929 को हुआ था। 1956 से एकेडमी अवार्ड्स में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म कैटेगरी आरम्भ हुई, जिसका नाम 2020 से 'बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फ़िल्म' कर दिया गया है। इस कैटेगरी के आरम्भ होने के बाद भारत की ओर से 2019 तक 52 फ़िल्में भेजी जा चुकी हैं, जिनमें से सिर्फ़ 3 ही नामांकन (Nomination) की चुनौती को पार कर सकीं और वो भी ऑस्कर लाने में कामयाब नहीं हो सकीं। 

'नाइट्स ऑफ़ कैरेबिया' से हारी 'मदर इंडिया'

विदेशी भाषा कैटेगेरी आरम्भ होने के एक साल बाद 1957 से ही भारत ने एकेडमी अवॉर्ड्स में अपनी दावेदारी पेश करना शुरू कर दिया था। 30वें एकेडमी अवॉर्ड्स की विदेशी भाषा कैटेगरी में भारत की पहली आधिकारिक प्रविष्टि महबूब ख़ान की 'मदर इंडिया' बनी। भारतीय सिनेमा के लिए यह बड़ी बात थी कि इस कालजयी फ़िल्म ने पहली ही बार में नामांकन तक पहुंचने का करिश्मा कर दिखाया था। हालांकि, अंतिम मुक़ाबले में भारत की 'मदर इंडिया' इटली की 'नाइट्स ऑफ़ कैरिबिया' से हार गयी, जिसे विश्व सिनेमा के लीजेंड्री निर्देशक फैडरिको फैलिनी ने निर्देशित किया था। यह फ़िल्म रोम की एक वेश्या की कहानी थी, जिसे सच्चे प्यार की तलाश है। फ़िल्म में जूलिएता मासीना ने फीमेल लीड रोल निभाया था। 

'सलाम बॉम्बे' से जीती 'पेले द कॉन्करर'

हिंदी भाषी फ़िल्म को एकेडमी अवॉर्ड्स की दहलीज़ पर पहुंचने का दूसरा मौक़ा इसके लगभग 30 साल बाद 1988 मिला, जब मीरा नायर की फ़िल्म 'सलाम बॉम्बे' एकेडमी अवॉर्ड्स के नॉमिनेशन में चुन ली गयी थी। इस फ़िल्म के निर्माण में नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (NFDC) ने सह-निर्माता की भूमिका निभायी थी। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मीरा की यह पहली फीचर फ़िल्म थी। 'सलाम बॉम्बे' से ऑस्कर लाने का ख़्वाब छीना दानिश फ़िल्म 'पेले द कॉन्करर' ने, जिसे दानिश फ़िल्म इंडस्ट्री के दिग्गज बिल ऑगस्ट ने निर्देशित किया था। यह स्वीडन से डैनमार्क पहुंचे एक पिता-पुत्र के संघर्षों की कहानी थी, जो इसी नाम से आये उपन्यास से ली गयी थी। 

'नो मैंस लैंड' ने 'लगान' को किया क्लीन बोल्ड

भारत ने ऑस्कर लाने का सपना तीसरी बार उस वक़्त देखा, जब आमिर ख़ान की आशुतोष गोवारिकर निर्देशित फ़िल्म 'लगान' नॉमिनेट हो गयी थी। मगर, आमिर की मेहनत पर बोस्निया की फ़िल्म 'नो मैंस लैंड' ने पानी फेर दिया था, जिसने विदेशी भाषा कैटेगरी में साल 2001 का ऑस्कर अवॉर्ड अपने नाम किया। बोस्निया युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म का निर्देशन डैनिस टैनोविक ने किया था। ख़ास बात यह है कि यह डैनिस की पहली निर्देशित फ़िल्म थी। 

'लगान' के बाद 2019 की 'गली बॉय' तक 17 भारतीय फ़िल्में ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए भेजी जा चुकी हैं, मगर नॉमिनेशन की दहलीज़ तक एक भी नहीं पहुंच सकी। इनमें 10 फ़िल्में हिंदी भाषा की हैं, जबकि 3 मराठी, एक मलयालम, एक तमिल, एक गुजराती और एक असमी भाषा की फ़िल्म है। अब सब निगाहें 'जलीकट्टू' पर केंद्रित हैं। 


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