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विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों की घटती परम्परा के बीच पर्दे पर इस साल हंसाने आ रही हैं ये कॉमेडी फिल्में, देखिए लिस्ट

फिल्मी दुनिया में कॉमेडी फिल्म का एक अलग महत्व है। इस फिल्म का निर्माण दर्शकों का मनोरंजन करने के उद्देश्य के साथ बनाई जाती हैं। जिसमें चलती का नाम गाड़ी गोलमाल चुपके चुपके छोटी सी बात चश्मे बद्दूर अंगूर जाने भी दो यारों जैसी कई फिल्में शामिल हैं।

By Nitin YadavEdited By: Published: Thu, 19 May 2022 04:31 PM (IST)Updated: Fri, 20 May 2022 07:10 AM (IST)
विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों की घटती परम्परा के बीच पर्दे पर इस साल हंसाने आ रही हैं ये कॉमेडी फिल्में, देखिए लिस्ट
These comedy films are coming to screen this year to make you laugh.

स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह, मुंबई। फिल्में बनाने के पीछे फिल्ममेकर का सबसे बड़ा उद्देश्य यही होता है कि वो दर्शकों का मनोरंजन करे, जिसमें कॉमेडी फिल्मों को इस उद्देश्य के साथ बनाया जाता है। जो कुछ वक्त के लिए ही सही, लेकिन दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं।

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ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर से कॉमेडी फिल्में दर्शकों को गुदगुदाती हुई आ रही हैं। हाफ टिकट, चलती का नाम गाड़ी, गोलमाल, चुपके चुपके, छोटी सी बात, चश्मे बद्दूर, अंगूर, जाने भी दो यारों, चमेली की शादी, हीरो नंबर 1, दुल्हे राजा, कुली नंबर 1 समेत कई ऐसी फिल्में आई हैं। जिन्होंने दर्शकों को खूब मनोरंज किया।

अभिनय के नौ रसों में से एक कॉमेडी का स्वरूप पर्दे पर बदलता रहा है। पहले आउट एंड आउट कॉमेडी फिल्में बना करती थीं, तो बीच में एक दौरा आया जहां, हीरो-हीरोइन से इतर फिल्मों में कॉमेडियन हुआ करते थे, जो बीच-बीच में हंसी के पल ले आते थे। फिर फिल्म के मुख्य कलाकारों ने ही कॉमेडी करनी शुरू कर दी। अब विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों का दौर कम हो गया है।

अब इस जॉनर को दूसरे जॉनर के साथ मिक्स किया जाने लगा है। अब हॉरर कॉमेडी, रोमांटिक कॉमेडी, एक्शन कॉमेडी, सोशल कॉमेडी ऐसे तमाम जॉनर में फिल्मों बन रही हैं। हाल में विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों में सर्कस, बड़े मियां छोटे मियां एक्का दुक्का ही ऐसी फिल्में बन रही हैं। जबकि जनहित में जारी, डबल एक्सएल, नायिका जैसी कई फिल्में आएंगी, जो कॉमेडी के साथ दूसरे जॉनर की झलक लिए होंगी। विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों की कमी, दूसरे जॉनर के साथ कॉमेडी के मिश्रण, दर्शकों का इन फिल्मों के प्रति मूड आदि पहलुओं की पड़ताल करती स्टोरी।

कॉमेडी का कोई तय दायरा नहीं

नो एंट्री, सिंह इज किंग, वेलकम जैसी विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों का निर्देशन कर चुके अनीस बज्मी इस बार हॉरर कॉमेडी फिल्म भूल भुलैया 2 लेकर आए हैं। वो कहते हैं कि कॉमेडी बनाने में मैं सहज हूं। खुद को एक्सप्लोर करना चाहिए, अगर आप अपने क्राफ्ट के साथ ईमानदार हैं, तो जॉनर मायने नहीं रखता है। वेलकम बैक फिल्म में भी मैंने एक सीन रखा था, जिसमें दोनों डॉन रात के तीन बजे जब निकलते हैं, तो उनके भीतर भी भूत का डर होता है। वहीं, कॉमेडी थी कि वह डान है, लेकिन डर रहा है। कॉमेडी के साथ जब दो-तीन एंगल जुड़ जाते हैं, तो कहानी का टेक बदल जाता है। जब आप दो जॉनर को मिक्स करते हैं, तो उनके बीच एक पतली लाइन होती है कि कब क्या करना है, जो बतौर निर्देशक, लेखक आपको पता होना चाहिए।

मेकर्स सिर्फ एक ही जॉनर को पकड़कर नहीं रख सकते हैं। हॉरर और रोमांटिक जॉनर के साथ कॉमेडी का रस बखूबी जाता है। दो-तीन जॉनर को मिलाना गलत नहीं है। कॉमेडी का दायरा तय नहीं किया जा सकता है, कोशिश होनी चाहिए कि आप जो हास्य कर रहे हैं, वह किसी की भावनाओं को आहत न करे। आप इस पर कोई पहरा लगाकर लाइन नहीं खींच सकते हैं कि कॉमेडी फिल्में फलां तरीके से ही बननी चाहिए।

विशुद्ध कॉमेडी के लिए आत्ममंथन जारी

विशुद्ध कॉमेडी फिल्में इन दिनों कम ही बन रही हैं। इसकी वजहों पर बात करते हुए निर्देशक और हीरो नंबर 1, बीवी नंबर 1, बड़े मियां छोटे मियां जैसी विशुद्ध कॉमेडी फिल्में लिख चुके रूमी जाफरी कहते हैं कि कॉमेडी को लिखने के लिए गंभीरता चाहिए। कई लोग यह सोचकर कॉमेडी फिल्म बनाते हैं कि यह आसान है, उस चक्कर में वह कुछ और ही बन जाती है।

शूटिंग के दौरान सेट पर भले ही लोग हंसते हों, लेकिन थिएटर में अगर दर्शकों को नहीं हंसा पाए, तो कैसी कॉमेडी फिल्म। कम ही लोग हैं, जो अच्छी कॉमेडी फिल्में बनाना जानते हैं, जिनमें वर्तमान में रोहित शेट्टी शामिल हैं, जो बड़ी कमर्शियल कॉमेडी फिल्में बनाते हैं। अब लोग कॉमेडी फिल्मों को लेकर आत्ममंथन कर रहे हैं, क्योंकि दर्शक हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फिल्में भी देखने के लिए तैयार हैं। यानी जॉनर चाहे एक्शन हो या कॉमेडी फिल्म अच्छी हो, तो वह सब देखेंगे। वैसे भी अब साफ-सुथरी कॉमेडी फिल्म लिखना बहुत मुश्किल हो गया है। मेरी किसी फिल्म में एक भी अश्लील संवाद नहीं हैं।

अब लोग फिल्म में अश्लील संवाद और गाली-गलौज डालकर सोचते हैं कि यह आज की फिल्म है, लेकिन ऐसा नहीं है। गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म को ही ले लिजीए। फिल्म की कहानी कमाठीपुरा में सेट है, दूसरे निर्देशक या लेखक शायद उसमें वर्लैगैरिटी या गालियां दिखा देते, लेकिन संजय लीला भंसाली ने ऐसा नहीं किया। ऐसा हर जॉनर के साथ किया जा सकता है। मेरे एक दोस्त हैं, जो बड़े निर्देशक हैं, उनकी कुछ फिल्में चली नहीं, तो वह टेंशन में आ गए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि उनके दोस्तों ने राय दी है कि फिल्में नहीं चल रही है, तो कॉमेडी फिल्म बना लो। मैंने उनसे कहा कि जब तक आपका भरोसा न हो, तब तक न बनाएं। दो-तीन फिल्में फ्लॉप होने का मतलब यह नहीं है कि आप निर्देशक बुरे हैं।

ह्यूमर के साथ कुछ भी कहना आसान

ड्रीम गर्ल फिल्म के निर्देशक राज शांडिल्य की आगामी फिल्म जनहित मे जारी होगी, जो एक सोशल कॉमेडी फिल्म है। फिल्म बढ़ती जनसंख्या को कंट्रोल करने पर है, जिसमें कंडोम की अहम भूमिका का जिक्र होगा। राज ने इस फिल्म का निर्माण किया है। वह कहते हैं कि दो जॉनर को मिलाने को लेकर वह कहते हैं कि अगर आप किसी पार्टी में जाते हैं, तो आपको पहले वहां खाने में स्टाटर मिलता है, फिर कॉकटेल होती है, उसके बाद मेन कोर्स, फिर मीठा खाते हैं। हर चीज खाने को थोड़ा-थोड़ा तो होना ही चाहिए। अगर आपको मेन कोर्स अच्छा नहीं लगा, तो आपका काम स्टारटर या मीठे से चल जाएगा।

एक टिपिकल कॉमेडी फिल्म को बनाना मुश्किल होता है, इसलिए लोग इसे दूसरे जॉनर के साथ मिक्स कर रहे हैं। हॉरर, सोशल, रोमांस के साथ जब कॉमेडी मिलता है, तो फिल्म के पसंद आने के चांसेस बढ़ जाते हैं। पब्लिक को अगर ह्यूमर के साथ कोई जरूरी बात समझा दी जाए, तो उससे बड़ी बात एक फिल्ममेकर के लिए क्या हो सकती है। कोशिश यही रहती है कि लोगों को बोर न किया जाए, अगर फिल्म में सिर्फ ज्ञान होगा, तो वह क्यों देखेंगे, फिल्में मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं।

अभिनेता परेश रावल भी इसमें हां में हां मिलाते हुए कहते हैं कि कॉमेडी इतना अच्छा साधन है कि इसके जरिए कड़वी बातों को गले के नीचे उतारा जा सकता है। लेकिन फिर कॉमेडी ओवर द टॉप भी नहीं होनी चाहिए। संतुलन रखते हुए कॉमेडी करें, तो उसका असर होता है। विषय में वह बात होनी चाहिए कि कॉमेडी की गुंजाइश हो। कॉमेडी नाजुक मामला होता है, लेकिन इसे करने में मजा आता है।

आउट ऑफ फैशन नहीं होगी कॉमेडी

भूल भुलैया 2 के लेखक आकाश कौशिक कहते हैं कि कॉमेडी फिल्में लाने के लिए टाइमिंग बहुत जरूरी होती है। यह कभी भी ऑउट ऑफ फैशन नहीं हो सकती है। हंसना किसे पसंद नहीं होता है। बस, ख्याल इस बात का रखना होता है कि आप जिस वक्त कॉमेडी फिल्म लेकर आ रहे हैं, उस वक्त का माहौल कैसा है, क्या दर्शक कॉमेडी फिल्म देखने के लिए तैयार हैं या नहीं। इन दिनों हॉरर कॉमेडी फिल्‍मों का दौर है। बाकी मिश्रण की बजाय हॉरर और कॉमेडी की मिश्रण अच्छा बन जाता है, क्योंकि दोनों एक-दूसरे से विपरीत जॉनर है।

हॉरर कॉमेडी जब लिखी जाती है, तो उसमें सिचुवेशन ऐसी बनानी पडती है, जो वाकई डरावनी है, लेकिन उसमें जो इंसान है, वह जिस तरह से रिएक्ट कर रहा है, वह देखने में मजेदार लगे। यह वास्तविकता के करीब होता है, मैं एक उदाहरण देता हूं, मैं जब भूल भुलैया 2 की स्क्रिप्ट रात में बैठकर लिख रहा था, तब मेरे फोन पर कॉल आया, जिस पर लिखा था मंजुलिका (फिल्म का भूतिहा किरदार) कॉलिंग। मैं इतना खोया हुआ था कि भूल गया था कि मेरी एक पुरानी दोस्त है मंजुलिका, जो मुझे कॉल कर रही थी। दो मिनट के लिए मेरी सांसें अटक गई थी। उसमें हॉरर और कॉमेडी दोनों ही थी। यही वास्तविक सिचुवेशन्स फिल्मों में जब आती हैं, तो दर्शक पसंद करते हैं, क्योंकि वह भी कभी उससे गुजरे होते हैं।

ओरिजनल कॉमेडी फिल्मों का रीमेक आसान नहीं

कई ऐसी ओरिजनल हिट कॉमेडी फिल्में रही हैं, जिन्हें आज पीढ़ी के लिए नए तरीके से रीमेक किया गया है, जिनमें कुली नंबर 1, जुड़वा 2 और आगामी फिल्म बड़े मियां छोटे मियां शामिल हैं। वर्ष 1998 में रिलीज हुई फिल्म बड़े मियां छोटे मियां के रीमेक को अब अली अब्बास जफर बना रहे हैं। मूल फिल्म के लेखक रूमी कहते हैं कि रीमेक बनाना मुश्किल इसलिए है, क्योंकि मूल कॉमेडी फिल्में आज भी टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की वजह से जिंदा हैं। आज की पीढ़ी ने भी मूल फिल्‍म बड़े मियां छोटे मियां देखी है। बहुत पहले फिल्में रिलीज होने के बाद उसके प्रिंट गोडाउन में पड़े रहते थे। जैसे मदर इंडिया महबूब खान की ही फिल्म औरत की रीमेक थी।

यह बात कम लोग ही जानते हैं। मदर इंडिया लोगों को याद है, क्योंकि थिएटर में आने के बाद यह फिल्म कई बार टीवी पर भी आ चुकी है, किसी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी मौजूद होगी। औरत फिल्म के साथ ऐसा नहीं हो पाया था। कॉमेडी मेरी लिए मेरी पहली महबूबा है। मैं कभी कॉमेडी लिखना नहीं छोड़ सकता हूं। जब भी लिखूंगा, पहले की फिल्मों से बेहतर लिखूंगा। अब भी मुझे कई बार कॉमेडी लिखने के ऑफर आते हैं।

कई बार ऐसा हुआ है कि जब मैं निर्देशक, निर्माता के साथ सीटिंग्स में बैठता था, तो वह कहते थे कि ऐसा मत लिखो, वैसा मत लिखो आज के दर्शकों को पसंद नहीं आएगा, जबकि वह भूल जाते हैं कि मैंने पहले जो फिल्में लिखी हैं, वह आज भी देखी जाती हैं। आज एक अच्छी कॉमेडी फिल्म या मूल फिल्म की रीमेक लाने के लिए ऐसे निर्देशक और लेखक को साथ आना होगा, जिन्हें वाकई पता हो कि वास्तविक कॉमेडी फिल्में क्या होती है।

अवॉर्ड नहीं दिलाती कॉमेडी फिल्में

हेराफेरी, वेलकम, आवारा पागल दीवाना में अभिनय करने वाले अभिनेता अक्षय कुमार विशुद्ध कॉमेडी फिल्मों को लेकर कहते हैं कि कॉमेडी करने वालों को कलाकारों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। अभी भी उनकी वो कद्र नहीं होती जिसके वो हकदार हैं। कभी सुना है कि कॉमेडी फिल्‍म के हीरो को बेस्‍ट हीरो का अवार्ड मिला है? क्‍यों नहीं मिलता क्‍या कॉमेडी एक्टिंग नहीं होती ? लेकिन अवॉर्ड नहीं देते हैं।

सिर्फ रोमांस करो या ट्रेजडी करो तो ही बेस्‍ट एक्‍टर का अवार्ड मिलता है, लेकिन यह भूल जाते हैं कि एक्टिंग में कॉमेडी का सबसे बड़ा हाथ होता है। फिर भी उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है। फिल्में जो ट्विस्ट के साथ हंसाने के लिए हैं तैयार जनहित में जारी – इस सोशल कॉमेडी फिल्म में नुसरत भरूचा अहम किरदार में हैं। डबल एक्सएल – हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ये सोशल कॉमेडी फिल्म बॉडी शेमिंग का मुद्दा उठाएगी, लेकिन हल्के-फुल्के अंदाज में।

विशुद्ध कॉमेडी में शामिल हैं ये फिल्में

फिल्म में इंडस्ट्री में एक बार फिर से विशुद्ध कॉमेडी फिल्म का दौर फिर से शुरू होता हुआ दिख रहा है, जिसमें रणवीर सिंह की फिल्म सर्कस, अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ की बड़े मियां छोटे मियां जैसी फिल्में शामिल हैं, जो आने वाले सालों में फैंस का मनोरंजन करते हुए दिखेंगे।


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