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श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को स्वदेश वापिस लाने में इस भारतीय ने की मदद

पिछले 18 सालों में अशरफ अभी तक 4700 परिवारों की इस प्रकार मदद कर चुके हैं। श्रीदेवी के शव को भारत लाने में अशरफ ने अहम मदद की।

By Rahul soniEdited By: Published: Thu, 01 Mar 2018 03:46 PM (IST)Updated: Thu, 01 Mar 2018 03:46 PM (IST)
श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को स्वदेश वापिस लाने में इस भारतीय ने की मदद
श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को स्वदेश वापिस लाने में इस भारतीय ने की मदद

मुंबई। बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा श्रीदेवी दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं लेकिन लाखों दिलों में वो हमेशा जिंदा रहेंगी। श्रीदेवी का पार्थिव शरीर जब संयुक्त अरब अमीरात के एक साधारण से शवगृह में रखा हुआ था तब उसे स्वदेश भेजने में एक भारतीय अशरफ थमारासरे ने ही मदद की।

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अशरफ उन लोगों के लिए मसीहा बन चुके हैं जिनके परिजनों की मृत्यु यूएई में हो जाती है, चूंकि वे परिवार वालों को परिजन के शव को जल्दी दिलाने में मदद करते हैं। जिन लोगों को यूएई में प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती है उनकी मदद करते हैं अशरफ। अशरफ थमारासरे कोजीकोड़े निवासी हैं जो कि दुबई के एमबाल्मिंग सेंटर में काम करते हैं। पिछले 18 सालों में वे अभी तक 4700 परिवारों की इस प्रकार मदद कर चुके हैं। खास बात यह है कि, बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी के शव को भारत लाने में अशरफ ने अहम मदद की।

श्रीदेवी के एक भी फिल्म नहीं देखी

मिड-डे से बातचीत करते हुए अशरफ ने बताया कि, मैंने एमबाल्मिंग सेंटर में श्रीदेवी की मृत्यु के बारे में अस्पताल में मेरे नेटवर्क से जानकारी हासिल की। लेकिन जब तक पुलिस और प्रोजीक्यूशन द्वारा बॉडी को पोस्ट मॉर्टम और एमबाल्मिंग के बाद ले जाने के लिए क्लीअरेंस नहीं मिलता तब तक मेरा कोई रोल नहीं था। अमूमन, मृत्यु का कारण पता करने के लिए इस पूरी प्रक्रिया में एक से चार दिन का समय लगता है। इसके बाद ही बॉडी को एमबाल्मिंग के लिए भेजा जाता है। अशरफ ने बताया कि, उन्होंने आज तक श्रीदेवी की एक भी फिल्म नहीं देखी है। उन्होंने यह भी बताया कि, जब भी वे केरल जाते हैं तो टीवी नहीं देखते।

फारुख शेख के समय भी की थी मदद

एेसा पहली बार नहीं था कि, अशरफ ने किसी सेलिब्रिटी के परिवार की मदद की। एेसा वे पहले भी कर चुके हैं। 2013 में जब अभिनेता फारुख शेख की हार्ट अटैक से दुबई में मृत्यु हुई थी उस समय भी अशरफ ने उनके परिवार की मदद की थी। अशरफ उन लोगों के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हैं जिन्हें अपना घर छोड़कर इस रेगिस्तानी देश में रहना पड़ता है। उनका कहना है कि वह यह सब दुआ हासिल करने के लिए करते हैं। इसलिए भी करते हैं कि जब यहां किसी की मौत होती है तो लोगों को स्वदेश भेजने की प्रक्रिया के बारे में ठीक से नहीं पता होता है। 


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