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इन्हें बड़े भाई अशोक कुमार के जन्मदिन पर ही मिली मौत

'कोरा कागज' फिल्म के गीत 'मेरा जीवन कोरा कागज ही रह गया' को गाया किशोर कुमार ने था। आज भी इस गीत की इन पक्तियों को पढ़ने के बाद उस समय की याद आ जाती है जब किशोर कुमार के चाहने वालों ने उन्हें

By Edited By: Published: Sun, 13 Oct 2013 11:16 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2013 11:17 AM (IST)
इन्हें बड़े भाई अशोक कुमार के जन्मदिन पर ही मिली मौत

एक हवा का झोंका आया, टूटा डाली से फूल

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ना पवन की, ना चमन की, किस की है ये भूल

खो गयी खुशबू हवा में, कुछ ना रह गया।

'कोरा कागज' फिल्म के गीत 'मेरा जीवन कोरा कागज ही रह गया' को गाया किशोर कुमार ने था। आज भी इस गीत की इन पक्तियों को पढ़ने के बाद उस समय की याद आ जाती है जब किशोर कुमार के चाहने वालों ने उन्हें दुनिया से अलविदा कहते हुए देखा था। आज 13 अक्टूबर है और इसी तारीख को किशोर कुमार ने दुनिया से अलविदा कहा था इसलिए आज उनकी निजी और फिल्मी दुनिया से जुड़ी बातों को याद किया जाएगा।

कभी अलविदा न कहना

-मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में 4 अगस्त, 1929 को एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में किशोर कुमार का जन्म हुआ।

-किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनकी आवाज के जादू से देवआनंद सदाबहार हीरो कहलाए और राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा जाने लगा। किशोर कुमार की आवाज के कारण ही अमिताभ बच्चन महानायक बने।

ऑलराउंडर थे किशोर दा

-अशोक कुमार हिन्दी सिनेमा में किशोर कुमार से पहले स्थापित थे लेकिन फिल्मों में काम के लिए किशोर कुमार ने खुद मेहनत की। अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर, 1911 को हुआ था और किशोर कुमार की मृत्यु 13 अक्टूबर 1987 को हुई थी।

-दोनों भाइयों के बीच 13 अक्टूबर की तारीख समान है। एक ने 13 अक्टूबर को जन्म लिया और दूसरे ने इसी तारीख पर दुनिया को अलविदा कह दिया। अशोक और किशोर कुमार दोनों भाइयों को ही दुनिया एक ही तारीख पर याद करती है पर सिर्फ अंतर यह है कि अशोक जैसे कलाकार को 13 अक्टूबर की तारीख के दिन जन्म लेने के लिए याद करती है और किशोर कुमार को इसी तारीख पर दुनिया से अलविदा कहने के लिए याद करती है।

-किशोर कुमार के चार शादियां करने के बावजूद भी उनकी जिंदगी में प्यार की कमी रही। जिंदगी के हर क्षेत्र में मस्तमौला रहने वाले किशोर कुमार के लिए उनकी लव लाइफ भी बड़ी अनोखी थी। प्यार, गम और जुदाई से भरी उनकी जिंदगी में चार पत्‍ि‌नयां आईं। किशोर कुमार की पहली शादी रूमा देवी से हुई थी, लेकिन जल्दी ही शादी टूट गई।

-इसके बाद उन्होंने मधुबाला के साथ विवाह किया। लेकिन शादी के नौ साल बाद ही मधुबाला की मौत के साथ यह शादी भी टूट गई। साल 1976 में किशोर कुमार ने अभिनेत्री योगिता बाली से शादी की लेकिन यह शादी भी ज्यादा नहीं चल पाई। इसके बाद साल 1980 में उन्होंने चौथी और आखिरी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उम्र में उनके बेटे अमित से दो साल बड़ी थीं।

-साल 1960 में किशोर कुमार और मधुबाला ने शादी कर ली जिसके लिए किशोर कुमार ने अपना नाम बदलकर इस्लामिक नाम 'करीम अब्दुल' रख लिया था।

-फिल्म 'महलों के ख्वाब' ने मधुबाला और किशोर कुमार को पास लाने में अहम भूमिका निभाई।

-मध्य प्रदेश के खंडवा में 18 साल तक रहने के बाद किशोर कुमार को उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने मुंबई बुला लिया।

-किशोर कुमार यूं तो अशोक कुमार यानि दादामुनी के भाई थे जो हिन्दी सिनेमा में किशोर कुमार से पहले स्थापित थे लेकिन फिल्मों में काम के लिए किशोर कुमार ने खुद मेहनत की।

-साल 1969 में निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म आराधना के जरिए किशोर गायकी के दुनिया के बेताज बादशाह बने। इस फिल्म में किशोर कुमार ने 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू' और 'रूप तेरा मस्ताना' जैसे गाने गाए।

-किशोर कुमार ने एस.डी. बर्मन के लिए 112 गाने गाए और उनका यह सफर उनके आखिरी दिनों तक जारी रहा।

-किशोर कुमार को बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष 1948 में 'बाम्बे टाकीज' की फिल्म 'जिद्दी' में सहगल के अंदाज में ही अभिनेता देवानंद के लिए 'मरने की दुआएं क्यों मांगू' गाने का मौका मिला।

-'रूप तेरा मस्ताना' गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक पहला फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

-1964 में 'दूर गगन की छांव' और 1971 में 'दूर का राही' फिल्म के बाद किशोर दा के अभिनय की मिसाल भी दी जाने लगी।

-किशोर कुमार के कुछ प्रसिद्ध गीत हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। सागर जैसी आंखों वाली, रात कली एक ख्वाब में आई, तेरे चेहरे में, सिमटी सी शरमाई सी, ये नैना ये काजल, पल भर के लिए, प्यार दीवाना होता है, छूकर मेरे मन को।

-किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कॅरियर में 600 से भी अधिक फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया।

-साल 1987 में किशोर कुमार ने यह निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अकसर कहा करते थे कि दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जाएंगे लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया।

-13 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई। उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उनको खंडवा में ही दफनाया गया।

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