Bollywood के लिए ख़तरे की घंटी National Film Awards में क्षेत्रीय सिनेमा का प्रदर्शन
सितारों के आकर्षण में जकड़े हिंदी सिनेमा की चमक लगतार फीकी हो रही है और क्षेत्रीय भाषाओं की फ़िल्में लगातार उसे कड़ी चुनौती दे रही हैं।
मुंबई। राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में क्षेत्रीय सिनेमा की बढ़ती भागीदारी और दावेदारी हिंदी सिनेमा के लिए ख़तरे की घंटी है। कहानियों की मौलिकता और फ़िल्म निर्माण की गुणवत्ता के पैमाने पर हिंदी फ़िल्में लगातार मुंह की खा रही हैं। सितारों के आकर्षण में जकड़े हिंदी सिनेमा की चमक लगतार फीकी हो रही है और क्षेत्रीय भाषाओं की फ़िल्में लगातार उसे कड़ी चुनौती दे रही हैं। 65वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों के विजेता चुनने के लिए गठित ज्यूरी के अध्यक्ष शेखर कपूर ने हिंदी सिनेमा को अल्टीमेटम दे दिया है।
शुक्रवार को देश के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों का एलान किया तो ये बदलती तस्वीर साफ़ नज़र आती है, जब सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए बंगाली फ़िल्मों के नवोदय कलाकार रिद्धि सेन (नगरकीर्तन) को चुना जाता है। वहीं, बाहुबली2- द कंक्लूज़न जैसी ग़ैर हिंदी भाषी फ़िल्म (तेलुगु) राष्ट्रीय पुरस्कारों में अपनी धमक दिखाती है। वक़्त आ गया है, जब क्षेत्रीय भाषाओं के सिनेमा को हिंदी के मुक़ाबले दोयम दर्ज़े का मानने के बजाए उसे गंभीरता से लेना चाहिए। शेखर ने इसके संकेत अपने ट्वीट में दिया है।
मासूम, मिस्टर इंडिया और बैंडिट क्वीन जैसी हिंदी फ़िल्में देने वाले शेखर ने लिखा है- ''राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार 2018 की अध्यक्षता करना आंखें खोलने वाला अनुभव रहा। क्षेत्रीय सिनेमा की गुणवत्ता ने हमें चौंका दिया है। ये विश्वस्तरीय है और इस पर लगा क्षेत्रीय सिनेमा का टैग हटा लेना चाहिए। दूसरी भाषाओं में हमने जो गुणवत्ता देखी, उससे लगा कि हिंदी सिनेमा अब इसका मुक़ाबला नहीं कर सकता।''
शेखर ने पुरस्कार चयन समिति का अध्यक्ष बनाने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी का शुक्रिया अदा किया है कि उन्होंने घर वापसी (भारतीय सिनेमा) का मौक़ा दिया। शेखर ट्वीट में लिखते हैं- ''मुझे घर लाने के लिए शुक्रिया। उस भारतीय सिनेमा को बाहर लाने के लिए जो बॉलीवुड की झूठी चकाचौंध में छिप गया है। जो दिलों का सिनेमा है। जो ऐसे सिनेमा को पनाह देता है, जिसमें मेरी मासूम और बैंडिट क्वीन जैसी फ़िल्मों को बेहतर करता है।''
बताते चलें कि शेखर भारतीय सिनेमा के साथ अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं। बैंडिट क्वीन के बाद उन्होंने कोई हिंदी फ़िल्म नहीं बनायी है। अलबत्ता बतौर एक्टर यहां की फ़िल्मों में ज़रूर नज़र आते रहे हैं। वहीं, हॉलीवुड में शेखर एलिज़ाबेथ जैसी फ़िल्मों के लिए जाने जाते हैं।
What an eye opener it has been chairing the #NationalFilmAwards2018. The quality of regional cinema has left us stunned. It’s world class and its time to take away the tag of regional cinema. For Hindi cinema no longer can compete with the quality we saw from other languages— Shekhar Kapur (@shekharkapur) April 14, 2018
Thank you @smritiirani @vanityparty for bringing me home. Home to a world of Indian cinema that gets hidden behind the false glare of what we call Bollywood. Home to a Cinema of the heart. Home to a cinema thats bettered my films like Masoom and Bandit Queen #NationalFilmAwards— Shekhar Kapur (@shekharkapur) April 14, 2018