55 साल बाद सलमान की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' में दिखेगा शीशमहल
निर्देशक के. आसिफ की फिल्म 'मुगले आजम' जिन्होंने देखी है, उन्हें इसका ये गाना 'जब प्यार किया तो डरना क्या...' जरूर याद होगा। भव्य सेट में लगे शीशों में नृत्य करती अभिनेत्री मधुबाला के अक्स को देखकर दर्शक शीशमहल की शानो-शौकत से दंग रह गए थे।
निर्लोष कुमार, आगरा। निर्देशक के. आसिफ की फिल्म 'मुगले आजम' जिन्होंने देखी है, उन्हें इसका ये गाना 'जब प्यार किया तो डरना क्या...' जरूर याद होगा। भव्य सेट में लगे शीशों में नृत्य करती अभिनेत्री मधुबाला के अक्स को देखकर दर्शक शीशमहल की शानो-शौकत से दंग रह गए थे।
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55 वर्षों के बाद अब अभिनेता सलमान खान की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' के लिए शीशमहल का सेट बनाया जाएगा। हालांकि आगरा किले में ताले में कैद अनूठा शीशमहल पर्यटकों की पहुंच से दूर ही है। वह उसे फिल्मी पर्दे पर ही देख सकेंगे। आगरा किले के शीशमहल की शानदार चित्रकारी और दीवार व छतों पर दर्पणों की श्रृंखला के बीच जब हल्की रोशनी की किरण फूटती है, तो धीरे-धीरे पूरा कक्ष रोशन हो जाता है।
हर दर्पण में देखने वाले का अक्स नजर आता है। शीशमहल मुमताज महल का स्नानागार था, जो मुगल काल में हमेशा जीवंत रहता था। 17 जून, 1631 को उसकी मौत के बाद इसकी अद्धितीय आभा फीकी पड़ती गई। मुमताज की मौत हुए 384 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन शीशमहल आज भी अपनी खोई आभा वापस पाने को तरस रहा है। पर्यटकों की नासमझी से इसकी यह खासियत अब पहले जैसी नहीं रही।
पर्यटकों ने उसे ऐसे घाव दिए, जो आज तक भरे नहीं जा सके हैं। पूर्व में वह यहां लगे शीशों को उखाड़कर ले जाते थे। जिससे दर्पण खराब हो गए या फिर झड़ गए। फुव्वारों के चलने से आद्र्रता की वजह से भी दर्पण खराब हुए। सूत्रों की मानें, तो हाथ की ऊंचाई तक 250 से अधिक दर्पण के पीस निकल चुके हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने संरक्षण के चलते वर्षों पूर्व शीशमहल में पर्यटकों का प्रवेश बंद कर दिया। शीशमहल का प्राचीन द्वार करीब एक मीटर चौड़ा है। पर्यटक इसका दीदार कर सकें, इसके लिए एएसआइ ने यहां शीशे का फ्रेम लगा रखा है। इसके अंदर झांककर पर्यटक देख सकते हैं, बाकी हिस्से में जाली लगी हुई है।
गाने पर खर्च हुए थे एक करोड़ रुपये
फिल्म 'मुगले आजम' ब्लैक एंड व्हाइट थी, लेकिन उसमें फिल्माया गया गीत 'जब प्यार किया तो डरना क्या...' कलर था। इस गाने की शूटिंग पर के. आसिफ ने करीब एक करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि उस समय भव्य फिल्में भी 10 लाख रुपये में बन जाती थीं। फिल्म में दिखाया गया शीशमहल का सेट भी कई वर्षों में बनकर तैयार हुआ था, जिसके बाद इसे तोड़ दिया गया था।