जब तीन हीरो का रोल खा गया था अकेला खलनायक, 45 साल पुरानी फ्लॉप फिल्म आज बनी कल्ट
कोई फिल्म जब कहानी से ज्यादा उसके एक किरदार से चार दशक बाद भी याद रह जाए तो फिर बॉक्स आफिस की गणित ज्यादा मायने नहीं रखती। ऐसी फिल्म थी ‘शान’। बड़े-बड ...और पढ़ें
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हीरो से ज्यादा पॉपुलर हुआ विलेन (फोटो क्रेडिट- एक्स)
अनंत विजय, नई दिल्ली। हिंदी फिल्मों के इतिहास में कई ऐसी फिल्में हैं जो कारोबार के हिसाब से बेहद सफल नहीं हो सकीं, लेकिन कल्ट फिल्म के तौर पर याद की जाती हैं। ऐसी फिल्में अपने क्राफ्ट के कारण वर्षों बाद भी लोगों की जुबान पर होती हैं। ‘जाने भी दो यारो’, ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘लम्हे’ कुछ ऐसी ही फिल्में हैं, जो आज भी बेहतरीन फिल्मों की सूची में शामिल हैं, लेकिन वो सफल फिल्मों की श्रेणी में नहीं आतीं।
शान का शाकाल सब पर भारी
ऐसी ही एक और फिल्म है आज से 45 वर्ष पूर्व प्रदर्शित हुई ‘शान’। फिल्म ‘शोले’ की सफलता के बाद रमेश सिप्पी एक शहरी और आधुनिक कहानी पर फिल्म बनाना चाहते थे। ऐसी फिल्म जिसमें नायक, नायिकाएं, खलनायक सभी शहरी हों और फिल्म का वातावरण भी आधुनिक लगे। लेखक सलीम-जावेद की हिट जोड़ी उनके साथ थी। फिल्म ‘शान’ की कहानी तैयार हो गई, जिसमें इयान फ्लेमिंग के उपन्यासों और जेम्स बांड सीरीज की फिल्मों के खलनायक ब्लोफेल्ड पर आधारित एक खलचरित्र रचा गया। शाकाल नाम का ये पात्र गंजा है।

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‘शोले’ की तरह ही इस फिल्म को मल्टीस्टारर बनाने की योजना बनी। रमेश सिप्पी चाहते थे कि फिल्म ‘शोले’ में काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियां फिल्म ‘शान’ में भी अलग -अलग भूमिका करें। शाकाल की भूमिका के लिए रमेश सिप्पी पहले संजीव कुमार को ही चाहते थे, लेकिन उनकी अन्यत्र व्यस्तता थी। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी भी ‘शान’ फिल्म के लिए समय नहीं निकाल सके तो शशि कपूर और बिंदिया गोस्वामी को भूमिकाएं दी गईं।
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कुछ दिनों पहले धर्मेंद्र ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वो चाहते थे कि फिल्म ‘शान’ में काम कर सकें, लेकिन उनके पास डेट्स नहीं थीं। जब ‘शोले’ बन रही थी, तब भी गब्बर सिंह के किरदार के लिए रमेश सिप्पी की पसंद संजीव कुमार थे। इस बात का उल्लेख कई पुस्तकों में मिलता है। फिल्म ‘शोले’ के प्रदर्शित होने के दो वर्ष बाद ‘शान’ का निर्माण आरंभ हो गया था। तीन वर्षों में ये फिल्म बनकर तैयार हुई। इस फिल्म पर निर्माता ने काफी खर्च किया था। ये उस समय की सबसे महंगी फिल्मों में एक थी। एक द्वीप पर फिल्म का भव्य सेट और सुनहरी चील ने दर्शकों का ध्यान खींचा था।
फिल्म की आईकॉनिक स्टार कास्ट
करीब 45 वर्ष पूर्व एक द्वीप के अंदर तकनीक के तामझाम के साथ शूट करना कठिन था। कुलभूषण खरबंदा अभिनीत किरदार शाकाल जिस कुर्सी पर बैठता था, उसके सामने कई रंगों की जलती-बुझती बत्तियां और कई तरह के स्विच व लीवर एक शहरी खलनायक की ऐसी छवि दर्शकों के समक्ष उपस्थित करते थे, जिसके मोहपाश में बंधने की संभावना थी।
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अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, शशि कपूर, जीनत अमान, राखी जैसे कलाकार फिल्म को हिट कराने के लिए काफी थे। शाकाल के गुर्गों की भूमिका भी बेहतरीन अभिनेताओं को दी गई। ‘शोले’ में सांभा की भूमिका निभाने वाले मैकमोहन शाकाल के साथी जगमोहन की भूमिका में थे। हालांकि सितारों और भव्यता के बावजूद फिल्म को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। हां, बाद में ‘शान’ को लोगों ने पसंद किया। यह अद्भुत संयोग है कि रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शोले’ भी पहले सफल नहीं हुई, लेकिन बाद के दिनों में जबरदस्त हिट रही।
फ्लॉप के बावजूद बनी कल्ट
‘शान’ जबरदस्त हिट तो नहीं हो सकी, लेकिन इसके क्राफ्ट ने इसको कल्ट फिल्म बना दिया। रमेश सिप्पी ने सलीम-जावेद के लिखे किरदार शाकाल को इस तरह से पर्दे पर गढ़ा कि उसका गंजापन और संवाद अदायगी दर्शकों को पसंद आई। कुलभूषण खरबंदा ने पर्दे पर शाकाल को जीवंत कर दिया। फिल्म के अंतिम दृश्य में जब उसको गोली लगती है तो वो कहता है कि मुझे मालूम है कि मैं मरने वाला हूं, लेकिन तुम लोग भी बचोगे नहीं। ऐसा कहने से पहले शाकाल एक हैंडल को नीचे की ओर झुका देता है, जिससे उसका ठिकाना धमाके में नष्ट हो जाए।
कुलभूषण खरबंदा की संवाद अदायगी बढ़िया थी। इस फिल्म में एक गाना है ‘यम्मा यम्मा’। इसको आर. डी. बर्मन और मोहम्मद रफी ने साथ मिलकर गाया है। दोनों का साथ गाया यह एकमात्र गाना है। इस फिल्म को बने 45 वर्ष हो गए, लेकिन जब भी हिंदी फिल्मों के खलनायकों की बात होती है तो शाकाल का नाम उसमें अवश्य आता है।

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