Exclusive Interview: राजस्थान में रिलीज हुए बिना सार्थक नहीं होगी 'पद्मावत'- भंसाली
हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी विवादित फिल्मों में से एक पद्मावत 25 जनवरी को रिलीज होने के बाद अब भी मध्य प्रदेश में कुछ जगहों को छोड़कर और राजस्थान में रिलीज नहीं हो पायी है.
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' ने बॉक्स आॅफिस पर बड़ी सफलता हासिल की है. लेकिन इसके बावजूद अभी उन्हें सुकून नहीं हैं. संजय लीला ने खुद स्वीकारा है कि जब तक वह अपनी यह फिल्म राजस्थान के लोगों और पूरे देश के दर्शकों तक नहीं पहुंचा पाते हैं. तब तक उन्हें सुकून नहीं आयेगा.
हिंदी सिनेमा की सबसे विवादित फिल्मों में से एक 'पद्मावत' 25 जनवरी को रिलीज होने के बाद अब भी मध्य प्रदेश में कुछ जगहों को छोड़कर और राजस्थान में रिलीज नहीं हो पायी है. भंसाली का मानना है कि कुछ लोग गलतफहमी के शिकार थे. हमने फिल्म दिखायी. अब तो सब कुछ स्पष्ट हो चुका है कि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है. यह फिल्म राजस्थान की एक महान गाथा है और वहां के लोगों तक पहुंचना बतौर निर्देशक यह उनकी जिम्मेदारी भी है. ऐसे में संज़य लीला भंसाली ने फिल्म के पूरे सफर पर विस्तार से बातचीत की है. पेश है बातचीत के मुख्य अंश-
सवाल- फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता हासिल की है. लेकिन क्या इसके बावजूद आपको यह अफसोस है कि अब तक फिल्म पूरे भारत में रिलीज नहीं हो पायी है?
जवाब- बिल्कुल. मुझे बेहद अफ़सोस है. इसलिए मैं फिल्म का पूरा जश्न नहीं मना पा रहा हूं और मैं तब तक सुकून से नहीं बैठ सकता, जब तक कि राजस्थान और बाकी जगहों पर दर्शक फिल्म देख न लें. खासतौर से राजस्थान में. मध्य प्रदेश में अब फिल्म दिखाने की शुरुआत हो गयी है. लेकिन गुजरात और राजस्थान में अब भी नहीं हो पायी है. दुख है कि जिनकी शान की कहानी है. जिनकी गाथा है. वहीं मेरी फिल्म नहीं देख पाए हैं, जबकि इससे पहले राजपूतों पर ऐसी फिल्में बनी नहीं हैं. आज तक किसी फिल्म में इस तरह राजपूतों को दिखाया ही नहीं गया है. इसके बावजूद आप लोगों को क्यों डिप्राइव्ड कर रहे हो कि मत देखो. यह बात मुझे समझ नहीं आ रही है. आप इनजस्टिस को कैसे जस्टिस कर रहे हो. अब बहुत हो चुका है. अब तो गलतफहमी निकाल कर रिलीज करने दीजिए. इस कहानी को दुनियाभर में लोग देख रहे हैं. जर्मनी से लोग आकर देख रहे हैं. लोग जयपुर से दिल्ली जाकर देख रहे हैं. गुजरात से मुंबई आकर देख रहे हैं. जो फिल्म में दिखाया गया है. उसकी स्ट्रेंथ देखिए न. उनके सोल में स्ट्रेंथ है. उनके रहन-सहन की फिल्म है. इससे आपके ही चित्तौड़गढ़ को बढ़ावा मिलेगा. वहां के टूरिज्म को बढ़ावा मिल रहा है. लोग वहां भीड़ लगा रहे हैं इसे देखने के लिए. इस फिल्म की वजह से बाहरी लोगों का राजपूती जीने के तरीके को देखने और समझने में इंटेस्ट बढ़ गया है. आपके ही बेनिफेट के लिए फिल्म. विरोध की बजाय आपको कहना चाहिए कि राजस्थान में प्रीमियर हो इस फिल्म का. इस फिल्म को सेलिब्रेट किया जाना चाहिए.भले ही आप इसको फिक्शनल बोलो. चाहे हिस्टोरिकल बोलो. लेकिन आपकी जिंदगी का हिस्सा तो है. इतनी मेहनत से रिस्पांसबिल्टिी से बनाया है तो देखना चाहिए. मेरी दरख्वास्त है उनसे कि गलतफहमी थी. दूर हो गयी. अब लोगों को देखने दीजिए. मैं तब तक चैन से नहीं बैठ पाऊंगा. पूरी तरह सेलिब्रेट नहीं कर पाऊंगा. मेरी फिल्म परदे पर नहीं दिखी, लोगों ने एंजॉय नहीं किया तो मेरा काम कैसे पूरा होगा. चूंकि मैं एक फिल्मकार हूं. एक आर्ट फॉर्म है सिनेमा , उस पर बवाल तोड़-फोड़ सही नहीं है. मेरे जैसे जो भी फिल्ममेकर हैं, जो रिस्पांसिबिलटी से अपनी फिल्म बनाते हैं. हमको मालूम है कि हम किस तरह अपने फ्रीडम आॅफ एक्सप्रेशन को इस्तेमाल करना है. किस हद तक नहीं करना चाहिए. हम जैसे फिल्ममेकर को इतनी चीजों से नहीं गुजारना चाहिए. ऐसे में अगर पास्ट की कहानियों को लोग दिखाना चाहते हैं तो दिखाने दीजिए. मैंने तो एक पन्ने की स्टोरी पढ़ी थी पद्मावत की बचपन में. अभी आपके पास ढाई घंटे की फिल्म है. तो इसे प्रोत्साहित करें.
सवाल- आपकी फिल्मों में हमने अक्सर देखा है कि पूरी फिल्म के इमोशन को आप आखिर में कैरेक्टर के रनिंग सीन पर लाकर एक टर्निंग पॉइंट देते हैं. क्या यह कांसस क्रियेटिव डिशिजन है कि क्लाइमेक्स में ऐसा क्रूशियल पीक प्वाइंट हो ही?पद्मावत में भी जौहर सीन के साथ आपने कुछ वैसा ही ट्रीटमेंट दिया है.
जवाब- हम दिल चुके सनम में एक औरत दौड़ी है रेड साड़ी में आपने देखा. पद्मावत में 16000 महिलाएं दौड़ी हैं. लेकिन हां, मोटिव एक ही है. आपका आॅब्जरवेशन रेयर है. आपने कमाल का सवाल पूछा. लेकिन हां, मैं हम दिल चुके सनम, देवदास और यहां तक का सफर देखूं तो इस तरह के दृश्य ड्रेमेटिक अर्ज की वजह से होता है.उस वक्त लगता है कि अगर एक कैरेक्टर को पहुंचाना होता है. तो वह रनिंग सीन जरूरी है. देवदास मर रहा है और गेट बंद हो रहा है और उसे पारो चाहिए. यह पूरी कहानी का जिस्ट है. लेकिन मेरा अपना यह ग्राफ रहा है कि मैं कैरेक्टर को किस तरह से देखता हूं.
ऐसा नहीं है कि मैं सोच कर रखता हूं कि मेरी हर फिल्म में ऐसा करना ही है. आपने अचानक यह बात छेड़ी है तो मैं सोच रहा हूं वाकई यह दिलचस्प बात है. पद्मावत में तो महिलाएं फायर की तरफ जा रही हैं.यह कठिन था. तो ये मेरे लिए फिल्माना भी सबसे कठिन दृश्यों में से एक रहा, वह बलिदान था उन महिलाओं के लिए. राजपूत महिलाओं ने जिस तरह आपस में मिल कर ठाना कि बिना हथियार के वह अपने राजाओं की हार का बदला लेंगी. इसका एक अलग रिफ्लेक्शन होता है. इसलिए यह कहानी बतायी गयी है.इसलिए इस कहानी को राजस्थान में देखा जाना चाहिए. इस कैरेक्टर को चीन, जापान, हर राज्य के लोग जानते हैं. उसके जौहर के बारे में जानते हैं, राजपूती शान के बारे में जानते हैं. आपने फिल्म देखी न. आप मुझे बताएं क्या आपको ऐसी कोई बात नजर आयी. पूरी दुनिया की मीडिया को नहीं लगी. फिर क्यों रोक रहे हैं. हो सकता है कि आपने गलतफहमी में प्रोटेस्ट किया. लेकिन अब तो वह दूर हो चुकी है. फिर अब किस बात की हिचक है.
सवाल- दीपिका ने यह बात बार-बार दोहरायी है कि वह कभी नहीं सोचती थीं कि वह भंसाली की हीरोइन बन सकती हैं. लेकिन आपकी फिल्में उनकी टर्निंग प्वाइंट हो गयीं?
जवाब- यह वाकई एक संयोग है कि वह जिस फिल्म से इंडस्ट्री में आयीं. उसी दिन सांवरिया रिलीज हुई थी. लेकिन मैं उस वक़्त उन्हें उस तरह नहीं देखता था. लेकिन अब वह मेरी चहेती एक्ट्रेस है ं वह. जान हैं मेरी. मैं उनको कमाल की एक्ट्रेस मानता हूं. वह अपने काम पर फोकस करती हैं. अपनी फिल्म को लेकर काम करती हैं तो अपने तक रखती हैं. वह अफर्ट दुनिया को नहीं दिखातीं कि मैं बहुत मेहनत कर रही हूं. मैंने बहुत रिसर्च किया. इस तरह की बात जाहिर नहीं करतीं. जबसे मैंने उन्हें काम करने को बोला. वह करती हैं. हम दोनों में अब आंखों से बातें होती हैं. मजेदार बात यह है कि पहले जब वह रामलीला में आयी थीं तो दूसरे दिन ही मैंने उन्हें रामलीला का डॉन बनी लीला का लंबा सीन पढ़ने को कह दिया था. इसलिए वह रोने लगी थीं. उन्होंने बोला भी कि मैं नहीं कर पाऊंगी बाद में मैंने उन्हें रिलेक्स किया. और देखिए अब तीन फिल्मों में हम साथ हैं. उनका ग्रोथ कमाल का है. मजे की बात है कि उनकी मैंने रामलीला से पहले कोई फिल्म नहीं देखी है. वह जो बोलती हैं वह महसूस करती हैं. अपने परफॉरमेंस को तराशती है. इसलिए मेरी केमेस्ट्री है उनसे. मैं उससे कुछ भी करवा लेता हूं. यह विश्वास है. तैयारी रहती है उनकी. ऐसा नहीं था कि मैंने जब राम लीला में उन्हें कास्ट किया तो पहले से उनका काम देखा था. बस मेरे मन में बात आयी कि यही लीला है और उन्हें कास्ट कर लिया.
सवाल- रणवीर सिंह जबकि नायक के रूप में अब तक दर्शकों के सामने आ रहे थे. आपके मन में उन्हें खिलजी बनाने का ख्याल कहां से आ गया?
जवाब- रणवीर को लेकर मेरा मानना है कि वह रेयर टैलेंट हैं. लेकिन उनको अच्छे निर्देशक मिलना जरूरी है. वह बेमिसाल एक्टर हैं. उनका पैशन कमाल का है. अपने आप को अलग मुकाम पर ले जाकर वह अभिनय करते हैं. लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि अभी उन्हें बहुत सीखना है और अच्छे निर्देशक के साथ काम करना चाहिए. आप देखें तो उसका बेस्ट काम मेरे साथ रहा है. तो मुझे ऐसा लगता है कि उसके स्टारडम का थोड़ा श्रेय मुझे भी मिलना चाहिए. जहां तक बात है खिलजी की तो मेरे दिमाग में उनकी एनर्जी थी. उनका अंदाज मेरी आँखों के सामने थी. फिर मैं दो फिल्मों में काम कर चुका हूं. उनकी कमजोरी और स्ट्रेंथ को जानता हूं. जानता था कि मैं करवा लूंगा. वह उस एनर्जी और कैरेक्टर को एकदम घोल कर पी जाने वालों में से हैं. तीन फिल्मों के बाद एक ट्रस्ट आया है हम दोनों के बीच. लेकिन फिर मैं कहूंगा उनको अच्छे निर्देशक मिलने बेहद जरूरी है. एक एक्टर अछे निर्देशक के साथ ही और अधिक उभरता है. एक डायरेक्टर को भी यह मालूम होना ही चाहिए कि सामने वाले से वह क्या कुछ नहीं निकलवा सकते.
सवाल- आपने लीड किरदारों के साथ बाकी किरदारों के चुनाव में भी काफी मशक्कत की है?फिल्म में जितनी चर्चा फिल्म के लीड किरदारों की हुई है. उतनी ही चर्चा कैरेर्क्ट्स आर्टिस्ट की भी हो रही है. अमूमन ऐसी भव्य फिल्मों में वे कहीं खो जाते हैं.
जवाब- मेरा मानना है कि इसका श्रेय श्रूति महाजन जो कि हमारी कास्टिंग डायरेक्टर हैं. उन्हें जाता है. वह हमारे साथ राम लीला से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने अपने प्रीफरेंस दिये थे.उनकी जजमेंट कमाल की होती है. जब वह जिम सारब का मेरे पास आॅडिशन लेकर आयी थीं, तो मैं पहली बार में ही पूरी तरह कनविंस हो गया था. हालांकि मैंने नीरजा नहीं देखी थी. जिम को कहा गया था कि आप इंट्रोक् शन सीन का टेस्ट करके फोन पर ही भेजें . वह उस वक्त विदेश में थे. मैंने ऑडिशन देखा तो मुझे काफी पसंद आया था. तो श्रूति जो-जो कास्ट लेकर आयीं , जिनमें अदिति राव हैदरी जैसे नाम, फिर जिन्होंने गोरा और बादल का किरदार निभाया है सभी बिल्कुल परफेक्ट थे. मैं ये बात पूरी तरह से स्वीकारता हूं कि अच्छा एक्टर अच्छा एक्टर होता है. फिर मुझे इस बात की परवाह नहीं होती है कि वह नामी है कि नहीं है. उनके साथ आप सीन को प्ले करते-करते कई नयी चीजें कर सकते हों. तो मेरा मानना है कि सिर्फ दीपिका, रणवीर और शाहिद की ही नहीं. इन सभी की भी सराहना करनी चाहिए. साथ ही मेरा मानना है कि प्रकाश कपाड़िया ने जो किरदार लिखा है. तारीफ़ उनकी भी कीजिये. दरअसल, ये सारे किरदारों का फाउंडेशन प्रकाश का है. कई-कई बार एक्टर्स दावा करते हैं. शो ऑफ़ करते हैं कि हमने हमारा सोचा, हमारा फाउंडेशन है. हमारा खुद का है. हम डार्क में चले गए थे तो हमने ये किया वो किया. डींगे हांकने लगते हैं. लेकिन इस फिल्म में ऐसा बिल्कुल नहीं था. वह अपना श्रेय अकेले ले ही नहीं सकते हैं. सबने मिल कर काम किया है. मेरे राइटर ने डायलॉग जिस तरह लिखा है. कॉस्टयूम ड्रामा है तो जिस तरह मेरे किरदारों को सजाया कॉस्टयूम डिपार्टमेंट ने. कैमरा, लाइटिंग हर डिपार्टमेंट को क्रेडिट मिलना चाहिए इस फिल्म का. और मैं यह मानता हूं कि मेरे साथ दिमागी तौर पर ऐसे थिंकिंग लोग रहे हैं और इसलिए फिल्म कामयाब हो पायी है.
सवाल- आपकी फिल्मों की यह खासियत है कि आपकी फिल्मों में महिलाएं सिर्फ खूबसूरत नहीं होती हैं, बल्कि वह सशक्त भी होती हैं. उनका स्ट्रांग स्टैंड कनेक्ट करता है दर्शकों को. क्या इसकी वजह यह रही कि आप अपने परिवार में सशक्त महिलाओं के इर्द-गिर्द रहे हैं?
जवाब- हां, बिल्कुल. मैं मेरे परिवार में औरतों के साथ काफी रहा हूं. फिर वह चाहें मेरी दादी हों, मेरी मां हो, मेरी बहिन हों, जिन्होंने काफी मुश्किलों का सामना किया. मेरी दादी ने जिंदगी भर संघर्ष किया है. फिर मेरी मां हैं. उन्होंने जिंदगी के हर मुकाम को हासिल करने के लिए तकलीफें उठायी हैं, लेकिन मुस्कुराहट को बरकरार रखा है. तो आप उनकी डिग्निटी देख कर उनसे इंस्पायर होते हैं. मैंने उनसे संघर्ष करना सीखा है. इसलिए मैं किसी परेशानी से डर कर भागता नहीं हूं. साथ ही मुझे लगता है कि हमारे आस-पास ऐसी कई अनगिनत कहानियां हैं, हिस्ट्री में, जिनसे आप प्रेरित होते हैं. हरेक की अपनी जर्नी होती है. मेरा मानना है कि अगर आप नामचीन महिला नहीं हैं तो इसका मतलब नहीं है कि आपकी कहानी अहम नहीं है. बतौर फिल्मकार सिनेमा में यह सब बताना जरूरी है. चूंकि एक महिला ही पुरुष को बनाती हैं. उसकी जो ताकत है, उसका कोई सानी नहीं है. इसलिए मैं महिला के हर किरदार पर बारीकी से काम करता हूं. उन्हें इंट्रेस्टिंग बनाता हूं. मेरे लिए कैरेक्टर इंटरेस्टिंग होने चाहिए. फिर चाहे वह अदिति राव हैदरी का ही किरदार मेहरुनिशा क्यों न हो, वह खिलजी की पत् नी है, जिसके बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया था, लेकिन मेरे दिमाग में था कि उनको दिखाना है. रोचक बनाना है. आप गौर करें तो वह फिल्म में कहती है कि तुमको सब मिले, लेकिन पद्मावती न मिले, चूंकि तुम गलत कर रहे हो. मुझे ऐसे किरदारों से खिंचाव होता है. फिर अब तक की मेरी फिल्मों के किरदार ऐनी हों, नंदिनी हो या फिर रानी का किरदार हो. मुझे वैसे कैरेक्टर्स इंस्पायर करते हैं, जो अनयूजअल सरकमटांसेंज में भी लड़ते है. अपनी अंदर की ताकत दिखाते हैं और वह कभी गलत रास्ता इख्तियार नहीं करते हैं. मुझे वैसे किरदार पसंद आते हैं. फिर चाहे वह कोई भी कैरेक्टर हों.
सवाल- आपने खामोशी, हम दिल चुके सनम के बाद रेगुलर किरदारों वाली लव स्टोरी नहीं दिखायी, वैसे किरदार चुने जो पीरियड से हों या अनयूजुअल ही हों. रेगुलर आम लोगों वाली लव स्टोरी या कहानी नहीं दिखायी. इसकी कोई खास वजह?
जवाब- मुझे लगता है कि गुजारिश के बाद जब मैंने एक बहुत सेंसिटिव मुद्दे को हैंडल किया. रितिक रोशन जैसे स्टार को डांस करवाने की बजाय, उन्हें बिस्तर पर लिटा कर एक कहानी कहने की कोशिश की और फिल्में नहीं चलीं तो मुझे लगा कि ऐसे किरदार के साथ दर्शक कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन मुझे दर्शकों के साथ एक रिश्ता तो बनाना है. इसलिए राम लीला जैसी कहानी चुन ली. फिर ऐसे में राम-लीला जो कि रोमियो-जूलियट का इंटरपेटेशन था. अच्छे गाने थे. उससे कनेक्ट मिला दर्शकों का. फिर मुझे जितना आर्किटेक्ट का शौक है. जितना मुझे टेक्सटाइल का शौक है. मुझे फोटोग्राफी का शौक है. वह सब मैं इस तरह की फिल्मों में ला सका. ये सब आर्ट्स के साथ करतब दिखने का मौका मिल सका. तो वो मुझे अच्छा लगा.फिर बाजीराव के वक्त मुझे लगा कि कभी हिस्ट्री किया नहीं. देवदास की थी. वह लिटरेचर पर थी. तो लगा कि पीरियड होगा तो मैं कैसे उसे क्रियेट करूंगा. कैसे शूट करूंगा. यह सब कमाल होगा. कमाल की कहानी थी. फिर पद्मावत का ख्याल आया. मैंने उस पर ओपेरा किया था. स्टेज पर. मैंने ही किया था. तो इसके बाद मुझे लगा कि इस पर फिल्म बना सकता हूं. मैं उस वक़्त उस स्थिति में था, कि इस तरह की फिल्म सोच सकूं. चूंकि उस वक्त मुझे लगा कि मैंने जिस तरह की बड़े स्केल की तगड़ी फिल्में की हैं. उसके बाद छोटी फिल्में बनाने में झिझक थी मुझे. उस वक़्त मुझ पर लोग लागत लगा सकते थे. फिजिकली और मेंटली मैं तैयार था. तो इससे बेहतर वक़्त नहीं था पद्मावती जैसी कहानी कहने का.
ओपेरा के वक्त से ही 2008 के बाद से मुझे लगा कि मुझे पद्मावत करनी है. यह सच है कि मैं अपनी फिल्मों में वक्त लेता हूं. मैंने बाजीराव मस्तानी बनाने में 12 साल लगे. रामलीला को बनाने में मैंने नौ साल लगे. पद्मावत को भी आठ साल से अधिक लगे. . लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं यहां कोई भव्य सेट बनाने और दीवार खड़ी करने के लिए ऐसी फिल्में बनाता हूं. मैं कैरेक्टर के लिए फिल्में बनाता हूं कि उन्हें एक्सप्रेस कर सकूं. मेरे लिए यह चैलेंज होता है कि मैं अपने सोचे किरदारों को उस टाइमजोन में कैसे लेकर जाऊं. उस दौर में क्या =क्या बारीकी कर सकता हूं. वह मेरी इमेजिनेशन के लिए चैलेंज है. आप पदमावत को गौर से देखेंगे तो महसूस करेंगे कि मैंने हर एक सीन में एक चैप्टर लिखा है कि क्या चीजें पहले जो नहीं दिखी है वह दिखाऊं. मुझे उस दौर की चीजें क्रियेट करने में मज़ा आता है. तो ऐसा नहीं था कि इस फिल्म को बनाने के लिए बजट मिल गया तो उसको जस्टिफाई करना आसान था. यही एक चैलेंज होता है. चूंकि आपको फिर दिखाना तो पड़ता है कि आपने क्या खर्च किया. लोग आपसे हिसाब मांगते हैं तो फिल्म भी वैसी ही होनी चाहिए. आपको फिल्ममेकर को लेकर जिम्मेदारी होती है कि दर्शकों को सिनेमेटिक क्या कहानी दिखाई और सुनाई जानी चाहिए.