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शैलेंद्र: एक 'आवारा' गीतकार, जिसने 500 रुपए में राजकपूर के लिए लिखे दो गाने!

जन-गीतकार शैलेंद्र भारतीय सिनेमा को लेकर थोड़ा संकोची था, लिहाज़ा राज कपूर का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया। मगर, कहते हैं ना कि वक़्त बड़े-बड़े फ़ैसलों को बदलवा देता है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Thu, 14 Dec 2017 02:18 PM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2018 09:19 AM (IST)
शैलेंद्र: एक 'आवारा' गीतकार, जिसने 500 रुपए में राजकपूर के लिए लिखे दो गाने!
शैलेंद्र: एक 'आवारा' गीतकार, जिसने 500 रुपए में राजकपूर के लिए लिखे दो गाने!

मुंबई। इश्क़ में डूबा आशिक़ हो या सिस्टम के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने वाला बाग़ी, इस गीतकार के गीतों ने सबको पनाह दी है। अल्फ़ाज़ की ऐसी आवारगी कि सुनते ही दिल बेकाबू हो जाए और जज़्बात की ऐसी रवानगी कि बार-बार सुनने को दिल करे। अगर आप राज कपूर के गीतों के ज़रिए मोहब्बत की बरसात में भीगे हैं, तो आपको शैलेंद्र के बारे में जानना ज़रूरी है। 

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ठुकरा दिया राज कपूर का ऑफ़र

शैलेंद्र और राज कपूर की मुलाक़ात का क़िस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। बात 40 के दशक की है। राज कपूर ने शैलेंद्र को एक मुशायरे में सुना। इस मुशायरे में शैलेंद्र ने 'जलता है पंजाब' कविता सुनायी। राज साहब को ये कविता बेहद पसंद आयी। उस वक़्त वो 'आग' का निर्माण कर रहे थे। हुनर के पारखी राज साहब ने शैलेंद्र की इस कविता को 'आग' के लिए ख़रीदना चाहा, मगर लेफ़्ट विचारधारा के जन कवि-गीतकार शैलेंद्र भारतीय सिनेमा को लेकर थोड़ा संकोची थे, लिहाज़ा राज कपूर का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया। मगर, कहते हैं ना कि वक़्त बड़े-बड़े फ़ैसलों को बदलवा देता है। शैलेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा हुआ कि आख़िरकार उन्हें सिनेमा के लिए ही लिखना पड़ा।

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कुछ वक़्त बाद शैलेंद्र की धर्मपत्नी गर्भवती हुईं और उन्हें रुपयों की ज़रूरत महसूस हुई। कोई और रास्ता ना देख शैलेंद्र को राज कपूर याद आये। वो उनके पास गये और मदद की गुज़ारिश की। शैलेंद्र के हुनर पर पहले ही फ़िदा राज साहब ने देर नहीं की। निर्माणाधीन फ़िल्म 'बरसात' के दो गाने लिखे जाने बाक़ी थे। राज साहब ने शैलेंद्र को इन दो गानों के लिए साइन कर लिया और इसके बदले उन्हें 500 रुपए अदा किये। ये दो गाने थे- 'पतली कमर' और 'बरसात' में। इसके बाद शैलेंद्र और राज कपूर ने संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के साथ मिलकर हिंदी सिनेमा को कई हिट गाने दिये। 

शंकर-जयकिशन पर कसा तंज बन गया गीत 

1951 में 'आवारा' फ़िल्म के लिए शैलेंद्र ने शीर्षक गीत 'आवारा हूं' लिखा, जो आज भी कल्ट क्लासिक माना जाता है। शैलेंद्र ने 50 और 60 के दशक में कई हिट गाने दिये। राज कपूर की 'श्री 420' और 'संगम' के अलावा देव आनंद की क्लासिक फ़िल्म 'गाइड' के गीत भी शैलेंद्र की लेखनी से ही निकले। शैलेंद्र के बारे में एक और मज़ेदार क़िस्सा मशहूर है। माना जाता है फ़िल्म इंडस्ट्री में काम पाने के लिए तालुक्कात होना बहुत ज़रूरी है, जिसे आज कल हम नेटवर्किंग कहते हैं। संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने शैलेंद्र से वादा किया था कि वो दूसरे प्रोड्यूसर्स को भी उनका नाम रिकमेंड करेंगे। कुछ अर्सा बीता और शंकर-जयकिशन ये बात भूल गये। ख़ुद्दार शैलेंद्र ने उनसे सीधे तो शिकवा नहीं किया, अलबत्ता एक नोट उन्हें ज़रूर भेजा, जिस पर लिखा था- छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं, कहीं तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल

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शंकर-जयकिशन को ये नोट पढ़ते ही समझ में आ गया कि शैलेंद्र का इशारा किस तरफ़ है। शैलेंद्र से माफ़ी मांगते हुए शंकर-जयकिशन ने इन्हीं पंक्तियों को गीत के रूप में अपनी अगली फ़िल्म में शामिल कर लिया। इस फ़िल्म का शीर्षक था 'रंगोली', जो 1962 में रिलीज़ हुई। निर्माता इस फ़िल्म के लिए मज़रूह सुल्तानपुरी को साइन करना चाहते थे, मगर शंकर-जयकिशन की बात वो टाल ना सके।

तीसरी क़सम ने ऐसा तोड़ा कि दुनिया छोड़ दी

शंकर-जयकिशन के अलावा शैलेंद्र ने सलिल चौधरी, सचिन देव बर्मन, रवि शंकर, बिमल रॉय और देव आनंद के लिए भी गीत लिखे। इनमें से ज़्यादातर गाने हिट रहे और आज भी गुनगुनाए जाते हैं। शैलेंद्र 1966 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'तीसरी क़सम' से बतौर निर्माता भी जुड़े और भारी निवेश किया। इस फ़िल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान ने लीड रोल निभाये थे। 'तीसरी क़सम' को बेस्ट फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिला, लेकिन कमर्शियली फ्लॉप रही। इस नुक़सान ने शैलेंद्र को तोड़कर रख दिया, जिसकी वजह से शराब की लत लगी। आख़िरकार 14 दिसंबर 1966 को महज़ 43 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा का ये 'आवारा' गीतकार हमेशा के लिए चला गया, लेकिन अपने पीछे गीतों की ऐसी विरासत छोड़कर गया, जो ना सिर्फ़ कालजयी बल्कि प्रासंगिक भी है। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था। बाद में उनका परिवार उत्तर प्रदेश के मथुरा में बस गया था। फ़िल्मों में आने से पहले शैलेंद्र रेलवे में नौकरी करते थे और मुंबई के माटुंगा इलाक़े में स्थित रेलवे वर्कशॉप में काम करते थे। 

गीतों में बग़ावत

फ़िल्मी गीतों के अलावा शैलेंद्र ने कई ऐसी कविताएं लिखी हैं जो समाज के उस वर्ग की आवाज़ बनी, जो शोषित और दबा है। ऐसी ही उनकी एक रचना 'हर ज़ोर-जुल्म की टक्कर पर संघर्ष हमारा नारा है' किसी भी आंदोलन का लोकप्रिय नारा बन चुका है।


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