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पारस अरोड़ा 'रज्जाो' से शुरू कर रहे हैं बॉलीवुड का सफर

मुंबई। पारस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि कोई भी चीज उससे स्पर्श हो जाए, तो सोना बन जाती है। नाम का यह गुण दिखता है पारस अरोड़ा की शख्सियत में। छोटे पर्दे पर नाम कमाने के बाद वह बॉलीवुड में सफल होना चाहते हैं। पारस कहते हैं, 'मेरी खुशकिस्मती है कि नाम के अनुरूप अनुभव मिल

By Edited By: Published: Thu, 14 Nov 2013 12:41 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2013 01:09 PM (IST)
पारस अरोड़ा 'रज्जाो' से शुरू कर रहे हैं बॉलीवुड का सफर

मुंबई। पारस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि कोई भी चीज उससे स्पर्श हो जाए, तो सोना बन जाती है। नाम का यह गुण दिखता है पारस अरोड़ा की शख्सियत में। छोटे पर्दे पर नाम कमाने के बाद वह बॉलीवुड में सफल होना चाहते हैं। पारस कहते हैं, 'मेरी खुशकिस्मती है कि नाम के अनुरूप अनुभव मिले मुझे। आउटसाइडर होने के बावजूद मुझे एक्टिंग की दुनिया में बहुत स्ट्रगल नहीं करना पड़ा। वरना मेरे जैसे हजारों युवा मुंबई में गलियों की खाक छान रहे हैं।'

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पारस को बचपन में डांस का शौक था। यही शौक उन्हें मुंबई ले आया। धीरे-धीरे उनके कदम मुड़ गए एक्टिंग की ओर। पारस बताते हैं, 'बचपन में अपनी डांस स्किल की बदौलत मैं बरेली और आस-पास के इलाके में मैं बहुत मशहूर हो गया था। तब मेरी उम्र महज 12 साल थी। मेरी प्रतिभा पर मुझसे ज्यादा मेरे पिताजी को यकीन था। उनके कहने पर मुंबई आया। आने पर पता चला कि डांस में ज्यादा विकल्प नहीं हैं। उसकी वजह थी कि तब ज्यादा रिएलिटी डांस शोज नहीं होते थे। तो मैंने ऑडिशन देना शुरू किया। पहले सागर आ‌र्ट्स का शो 'रामायण' मिला, फिर 'मीरा', 'वीर शिवाजी' और अब उसकी बदौलत 'रज्जो'।

पढ़ें:तवायफों के दर्द की दास्तान है रच्जो

पारस आगे कहते हैं, 'रज्जो' के जरिए मैं अपनी इमेज पूरी तरह बदलना चाहता हूं। 18 साल के चंदू का रोल प्ले कर रहा हूं, जो 22 साल की तवायफ रज्जो के प्यार में पड़ जाता है। चंदू को खुद गीत-संगीत का बहुत शौक है, जबकि रज्जो उस कला में माहिर है। मगर, चंदू ब्राšाण लड़का है। दोनों का प्यार परवान चढ़ पाता है कि नहीं, फिल्म उस बारे में है।'

फिल्म में कंगना के अपोजिट हैं पारस। महेश मांजरेकर और प्रकाश राज जैसे वेटरन कलाकार भी हैं। ऐसे में खुद को नॉर्मल कैसे रखा? इस सवाल के जवाब में पारस कहते हैं, 'और किसी के संग तो नहीं, पर कंगना के साथ थोड़ी घबराहट हुई। उनके साथ मेरी कोई रिहर्सल भी नहीं हुई थी। मुझे सेट पर ही उनके साथ शॉट देना था। पहले सीन में मुझे

उनकी गर्दन पकड़ कर धक्का देना था। मैं घबरा गया कि कहीं उन्हें चोटिल न कर बैठूं। वह मेरी झिझक समझ गई। वह मेरे पास आई और नैचुरल अदाकारी करने को कहा। यह भी समझाया कि एक्टिंग के दौरान चोट लगना आम बात है।'

मुंबई शिफ्ट होने के बाद भी पारस का होमटाउन बरेली से रिश्ता उतना ही गहरा है। वह कहते हैं,' पापा का बरेली में रेडीमेड गारमेंट का बिजनेस था, पर मेरी खातिर पूरी फैमिली बरेली से मुंबई शिफ्ट हो गयी। अब काम की व्यस्तता के चलते मैं बरेली कम जा पाता हूं, लेकिन वहां की गलियां-चौबारे सब बेहद याद आते हैं।

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