ओम पुरी के न होने का अहसास बहुत गहरा
ओमपुरी को जेएफएफ में याद भी किया जाएगा, जब आज बुधवार को फेस्टिवल की समापन फिल्म, ओम पुरी अभिनीत ‘मि. कबाड़ी’ ( निर्देशक-सीमा कपूर) प्रदर्शित होगी।
गीताश्री, नई दिल्ली। दिल्ली के सीरीफोर्ट में पिछले चार दिनों से जारी जागरण फिल्म फेस्टिवल का आज आखिरी दिन है । सबकुछ तो है, फिल्में हैं, दर्शक हैं, मीडिया है, सितारे हैं, लेकिन कुछ मिसिंग है। कोई खला-सी है सीने में जो इस बार सबको गहरे अहसास करा रही है। हर रोज की तरह सब होंगे, लेकिन सिनेमा का आम नागरिक, ओम पुरी कहीं नहीं होंगे।
सामंती मूल्यों से टकराने वाला आम आदमी का प्रतिनिधि चेहरा नहीं होगा। चाहे ‘धारावी’ का अति महत्वाकांक्षी टैक्सी ड्राइवर हो या ‘अर्द्धसत्य’ का कर्मठ पुलिस अफसर या ‘आक्रोश’ का विद्रोही, गूंगा, दलित आदिवासी नायक। कितनी फिल्मों के नाम गिनाएं। ओमपुरी उस ब्रेख्तियन थ्योरी में विश्वास करते थे कि आम आदमी से कट कर सिनेमा सरवाइव नहीं कर सकता। नायकत्व की पारंपरिक छवि से मुक्ति दिलाने वाले इस नायक ने सिनेमा में नया मुहावरा गढ़ा। झूठे सपनो के जाल से निकाल कर ऐसा यथार्थ रचा जिसे सिनेमा के आभिजात्य दर्शको ने भी पसंद किया। जेएफएफ(जागरण फिल्म फेस्टिवल) में इस बार उनकी यादों के साये हैं। जेएफएफ से ओम पुरी का शुरु से लगाव रहा है। हर साल वह आते थे, दर्शको से खूब बतियाते थे और उनमें से कुछ संजीदा लोगो को चुनते और उन्हें डिनर कराते थे। न सितारों सी ठसक न नाज-नखरे।
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ओमपुरी को जेएफएफ में याद भी किया जाएगा जब फेस्टिवल की समापन फिल्म, ओम पुरी अभिनीत ‘मि. कबाड़ी’ ( निर्देशक-सीमा कपूर) प्रदर्शित होगी ।