नसीरुद्दीन शाह ने सेक्स कॉमेडी फिल्मों को लेकर दिया चौंकानेवाला बयान
जागरण फिल्म फेस्टिवल में पहुंचे नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि सेक्स कॉमेडी फिल्में एक तरह से समय की बर्बादी हैं। इसलिए वो ऐसी फिल्में ना देखते हैं और ना ही इनमें काम करना चाहते हैं।
नई दिल्ली। जागरण फिल्म फेस्टिवल के सातवें संस्करण का शुक्रवार शाम को आगाज हो गया। सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में फेस्टिवल की शुरुआत केतन मेहता की फिल्म टोबा टेक सिंह के प्रीमियर से हुई। मुख्य अतिथि थे फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, जिन्होंने इस मौके पर कई मुद्दों पर खुलकर अपने विचार रखे।
एक दिन में नहीं देख सकता पांच-पांच फिल्में
नसीरुद्दीन शाह ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, मुझे फेस्टिवल से कोई लगाव नहीं है और ना कभी था। ये सच बात है। जब मैं फिल्म इंस्टीट्यूट का स्टूडेंट था, तब भी मैं फिल्म फेस्टिवल में नहीं जाता था, क्योंकि मुझे एक दिन में साथ पांच-पांच फिल्में देखना अच्छा नहीं लगता था। यहां फिल्ममेकर्स एक-दूसरे से मिलते हैं, एक-दूसरे का काम देखते हैं इस लिहाज से यह बहुत बढि़या होते हैं। लेकिन जागरण फिल्म फेस्टिवल में मुझे बहुत ज्यादा सम्मान दिया गया। मुझे चीफ गेस्ट बनाया गया है। इसलिए मैं जागरण फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बना हूं।
टारगेट ऑडियंस तक पहुंचे अच्छी फिल्में
नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि आमतौर पर समस्याओं पर आधारित फिल्में टारगेट ऑडियंस तक नहीं पहुंच पाती हैं। उन्होंने कहा, 'फिल्म फेस्टिवल्स में बहुत अच्छी फिल्में दिखाई जाती हैं। ये आम लोगों की समस्याओं पर ज्यादा आधारित हैं। लेकिन मेरा मानना है कि ये फिल्में उन लोगों तक भी पहुंचनी चाहिए, जिनके लिए ये बनी हैं। जागरण फिल्म फेस्टिवल की यह बात अच्छी है कि ये सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं छोटी-छोटी जगहों पर भी फेस्टिवल कराते हैं। यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि छोटे शहर में रहने वाले लोगों के पास विकल्प ही नहीं हैं अच्छी फिल्मों को देखने का। ऐसे में जागरण फिल्म फेस्टिवल बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म दे रहा है।
सेक्स कॉमेडी फिल्में हैं समय की बर्बादी
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि सेक्स कॉमेडी फिल्में एक तरह से समय की बर्बादी हैं। उनका कहना है, 'ऐसी फिल्में ना देखता हूं और ना ही उनके बारे में बात करता हूं। मैं ऐसी फिल्मों का हिस्सा भी कभी नहीं बनना चाहूंगा। ऐसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब भीड़ जुटाती होंगी, कलेक्शन भी इन फिल्मों का बहुत अच्छा होता होगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसी फिल्मों पर अपना समय बर्बाद करना चाहिए।
एक लक्ष्य जो पूरा नहीं हो सका
नसीरुद्दीन शाह ने बताया कि बचपन में उनके दो लक्ष्य थे, एक्टर बनना या फिर क्रिकेटर बनना। क्रिकेटर तो वो नहीं बन पाए, लेकिन क्रिकेट का शौक अभी तक है। उन्होंने कहा, 'क्रिकेट का शोक अभी तक मुझे है, हालांकि पिछले दो साल से खेलना छूट गया है। क्रिकेट देखता अब भी हूं। हालांकि आईपीएल में मुझे इतना मजा नहीं आता है। एक्टर बनने का ख्वाब मैंने नौवीं क्लास में ही देख लिया था। मेरे दो भाई थे। एक ने इंजीनियर बनने का लक्ष्य रखा और दूसरे ने फौजी बनने का और मैंने एक्टर बनने के ख्वाब देखा। इसके बाद खुद को तैयार करता गया, क्योंकि तब कोई सिखाने वाला नहीं था। एक्टर का यही नसीब है, उसे खुद ही अपने आप को सिखाना पड़ता है।'
फिल्मों से पटेगी भारत-पाक की दूरियां?
जब नसीर साहब से पूछा गया कि क्या सिनेमा भारत-पाक के बीच दूरियां पाटने का काम कर सकता है, तो उन्होंने कहा, 'देखिए, अभी शुरुआत हुई है। हम कोशिश कर रहे हैं। अब दूरियां खत्म होगी, ये अभी बहुत दूर की बात है। मैंने पाकिस्तानी फिल्म 'जिंदा भाग' में काम किया, मुझे अफसोस है कि वो भारत में रिलीज नहीं हो पाई। पाकिस्तान में बॉलीवुड फिल्में काफी देखी जाती हैं। मुझे आशा है कि पाकिस्तान की फिल्में भी यहां देखी जाने लगेंगी। वैसे पाकिस्तानी सीरियल और ड्रामे यहां बहुत देखे जा रहे हैं। मुझे यकीन है, सिनेमा दूरियों को जरूर कम कर सकता है, बशर्ते कल्चरल एक्सचेंज होता रहे।'
टिकटों का रेट कुछ भी हो सिनेमा का क्रेज नहीं घटेगा
नसीरुद्दीन का कहना है, 'सुनने में आया है कि आजकल टिकटों के रेट बहुत बढ़ गए हैं। लेकिन मुझे याद है कि जिसको फिल्म देखनी है, वो फिल्म को 100 रुपये में भी देखता है। मुझे याद है कि मेरा बचपन अजमेर में बीता वहां मोबाइल टॉकिज हुआ करते थे, जहां हम 40 पैसे में बालकनी में बैठकर फिल्म देखा करते थे। बाकी जनता जो नीचे बैठती थी, उसके लिए टिकल 25 पैसे हुआ करती थी। दरअसल, फिल्में देखने के लिए पैसे खर्च करते समय लोगों को तकलीफ नहीं होती है। हां, नाटक देखने के लिए जरूर दिक्कत होती है।'
मेरे पसंदीदा एक्टर
नसीरुद्दीन ने बताया कि उनके फेवरेट एक्टर शम्मी कपूर और दारा सिंह रहे हैं। उन्होंने कहा, 'आपको सुनकर हैरत होगी कि मेरे दो फेवरेट एक्टर रहे हैं शम्मू कपूर और दारा सिंह। इसलिए नहीं कि वो बेहतरीन अदाकार थे, बल्कि इसलिए क्योंकि मुझे उनकी फिल्में देखने में बहुत मजा आता था। मैंने उनकी सारी फिल्में देखी हैं। मेरा बचपन खुश रखने में उनका बहुत बड़ा हाथ है। दिलीप कुमार अच्छे एक्टर हुआ करते थे, जब वो अच्छे निर्देशकों के साथ काम करते थे।'
सेंसर बोर्ड की जरूरत नहीं
क्या आज के दौर में फिल्मों को सेंसर करने की जरूरत है? इस पर नसीर साहब बोले, 'ये बहुत टेढ़ा सवाल है। देखिए फिल्म वालों को अपनी जिम्मेदारी खुद पहचाननी चाहिए। सेंसर बोर्ड को एक सख्त पापा की तरह नहीं होना चाहिए, जो कहे कि तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें छड़ी से मारूंगा। मुझे अब काफी ग्रो कर चुके हैं। फिर जिन्होंने खुद बहुत बेहूदा फिल्में बनाई हैं, उन्हें कोई हक नहीं ये कहने का कि तुम्हारी फिल्मों में गालियां है या सीन खराब हैं।'
सनी लियोन के साथ भी कर चुका हूं काम
नसीरुद्दीन शाह ने कहना है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने जितना चाहा, उससे कहीं ज्यादा मिला है। उनकी नीयत इतनी भर चुकी हैं कि कोई ख्वाहिश बाकी नहीं रही है। हर तरह के किरदार वो फिल्मों में निभा चुके हैं। पार्न इंडस्ट्री में बॉलीवुड में कदम रखनेवालीं सनी लियोन के साथ भी वह काम कर चुके हैं।