अपने पिता में नंदिता को क्यों नज़र आते हैं “मंटो”, खुद उनसे ही जानिए
नंदिता आगे कहती हैं कि मुझसे ये सवाल लगातार पूछे जा रहे हैं कि आखिर मैं लंबे समय से फिल्मों की दुनिया में क्यों नहीं हूं?
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई. नंदिता दास की फिल्म मंटो इन दिनों काफी चर्चा में हैं. फिल्म की कहानी को लेकर नंदिता कहती हैं कि वह मंटो के हर अंदाज़ से प्रभावित रही हैं.
जागरण डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने एक दिलचस्प बात यह कही कि वह अपनी ज़िंदगी में अपने पिता जतिन दास को मंटो मानती हैं. वह कहती हैं कि मैंने जब मंटो को पढ़ना शुरू किया तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि ऐसा क्या है कि मुझे महसूस होता है कि जैसे मैं मंटो के साथ ही जीती हूं. उस दौरान मैं समझ पाई कि मेरे पिता बिल्कुल मंटो की तरह ही हैं. नंदिता कहती हैं कि वह पेंटर हैं और उनमें काफी मंटोइयत है.
वह कहती हैं कि मेरे पिता भी कभी इस आर्ट मार्किट का हिस्सा नहीं बने जैसे मंटो भी हमेशा बाजार के इतर ही सोच कर चले. प्रोग्रेसिव राइटर के रूप में मंटो ने एक अलग पहचान बनाई थी. लेकिन उन्होंने कभी भी प्रोग्रेसिव राइटर असोसिएशन ज्वाइन नहीं किया. दोनों को ही पैसों से कभी मतलब नहीं रहा. उनके लिए पैसे की बात हमेशा गैर जरूरी रही. जबकि वह जानते रहे कि इसी पैसों से उन्हें अपनी जीविका चलानी है. फिर भी उन्हें इस बात से खास फर्क नहीं पड़ा. दोनों अपने कम को लेकर पैशिनेट रहे और दोनों के पास ही सेंसिटिव ह्यूमन फीलिंग्स रही. इसलिए नंदिता कहती हैं कि उनके पिता में उन्हें वह रूप नज़र आता है.
नंदिता आगे कहती हैं कि मुझसे ये सवाल लगातार पूछे जा रहे हैं कि आखिर मैं लंबे समय से फिल्मों की दुनिया में क्यों नहीं हूं? वह कहती हैं कि मुझे इस बीच ऐसी कहानियां नहीं दिखीं, जिसको लेकर मैं काम करती. लेकिन इस बीच मैंने काफी काम किया है. मैं चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी से जुड़ी थी. फिर इसी विषय पर काम करने में और रिसर्च करने में मुझे काफी समय लगा. बता दें कि नंदिता की फिल्म मंटो 21 सितंबर को रिलीज़ होगी, फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी सआदत हसन मंटो का किरदार निभा रहे हैं.
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