दशहरा पर्व में कुछ आदतों का दहन चाहते हैं फिल्मी कलाकार
बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव दशहरा हर व्यक्ति के लिए भी अपनी बुराइयों का दहन करने का अच्छा अवसर होता है। हिंदी सिनेमा के सितारे भी इस दशहरा पर अपने भीतर व आस-पास मौजूद कुछ बुराइयों का करना चाहते हैं दहन।
प्रियंका सिंह व दीपेश पांडेय।
स्त्रियों के प्रति बुरी सोच का दहन- पंकज त्रिपाठी
दशहरा पर मां शक्ति की पूजा होती है। स्त्री को शक्ति का रूप माना गया है। उन्हें स्वयं मां दुर्गा व उनके अन्य रूपों से जोड़ा जाता रहा है। नारी शक्ति का आदर, सम्मान होना ही चाहिए। मेरा मन बहुत व्यथित होता है, जब कभी सुनते हैं कि किसी महिला के साथ कुछ गलत हुआ है। हम तो शक्ति पूजक समाज हैं। हम अपनी स्त्रियों को वह सम्मान क्यों नहीं देते हैं। महिलाओं के प्रति बुरी सोच रखने वालों की उस सोच का दहन हो। समाज की कई चीजें हैं, जो परेशान करती हैं, जिसका दहन जरूरी है। कई लोग पर्यावरण को लेकर सजग और चितिंत नहीं हैं। इस सोच का भी दहन करें कि पर्यावरण का ध्यान न रखने से कोई दिक्कत नहीं होगी। हम सबको यह जागरूकता लानी होगी, सिर्फ खुद में नहीं, बल्कि आसपास के लोगों में भी। दशहरा मेरे लिए बहुत मायने रखता है। मेरे गांव के पास माधवपुर बाजार में दशहरा पर तीन दिनों तक नाटक होता था। बहुत ही सम्मोहक और कमाल लगता था। कहीं न कहीं मुझ पर दशहरा में होने वाले उन नाटकों का प्रभाव ही है, जिसकी वजह से मैं अभिनेता बना।
आलस्य को दूर करना है - राजेश खट्टर
अपनी कमजोरी और बुराइयों के बारे में हर इंसान बहुत अच्छी तरह से जानता है। इंसान के अंदर कुछ न कुछ कमजोरियां या कमियां होती हैं, जिनका वह त्याग करना चाहता है। मुझे सिगरेट पीने की बहुत बुरी लत थी, लेकिन उसे मैंने करीब 15 साल पहले त्याग दिया। इस दशहरा पर मैं अंदर के आलस्य का दहन करना चाहूंगा, क्योंकि मुझे हमेशा यह लगता है कि जितना मैं कर सकता हूं, फिलहाल उतना नहीं कर रहा हूं। मुझे लगता है कि मुझे आलस्य का त्याग करके हमेशा तत्परता और तैयारी के साथ लगातार कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। मैंने अभिनय के अलावा भी डबिंग और लेखन समेत कई काम किए हैं। मेरी अपनी डबिंग कंपनी भी है। इसके अलावा मैं कला और साहित्य से जुड़ी काफी किताबें भी पढ़ता था। आज के इस इंटरनेट मीडिया और मोबाइल के जमाने में मेरी ये दो चीजें पीछे छूट गई हैं। पिछले कुछ दिनों से यह बात मुझे बहुत कचोट रही है कि मैंने लिखना-पढ़ना काफी कम कर दिया है। इस दशहरा पर मैं आलस्य त्यागकर लिखने और पढ़ने वाली दोनों पुरानी आदतों को फिर से अपनाना चाहूंगा।
न भूलें लंकेश का हश्र - सैयामी खेर
स्त्री को एक वस्तु के रूप में देखना और यह सोचना कि महिला को संभालने के नाम पर उसके जीवन पर कब्जा कर सकते हैं या उसके जीवन का नियंत्रण अपने हाथों में ले सकते हैं, इस निचले स्तर की सोच का दहन करें। जो ऐसी निम्न स्तरीय सोच रखते हैं, वे कई बार भूल जाते हैं कि दशहरा क्यों मनाया जाता है। एक महिला होने के नाते समाज के तमाम लोगों के लिए मेरा संदेश यह है कि सीता हरण के बाद लंकेश के साथ जो हुआ उसे मत भूलना। महिलाओं को लगातार जज भी किया जा रहा है। स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और अपने निर्णय खुद लेने वाली महिलाओं को लेकर लोग पूर्वाग्रह बना लेते है। यह समाज प्रतिभाशाली सशक्त महिलाओं को खुलकर अपना नहीं पाता है। मुझे लगता है कि हम सबको साथ खड़े होकर इसके बारे में सोचने की जरूरत है। रावण दहन पर रावण का जलता हुआ अंहकार याद दिलाता है कि आपको उसे त्यागकर आत्मसम्मान के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
दखलअंदाजी से बरतें दूरी - श्रेया धनवंतरी
मेरी सोच यही रही है कि जीयो और जीने दो। आपको जो करना है, वह करें, लेकिन बिना किसी को डिस्टर्ब किए। किसी और के जीवन में बिना वजह दखलअंदाजी की जो आदत है, उसका दहन करें, तो आपका खुद का जीवन भी सुकून से बीतेगा। इस दौर में लोगों का महिलाओं को यह ज्ञान देना कि यह पहनना चाहिए, वह नहीं पहनना चाहिए, ऐसे जीना है, वैसे नहीं। ऐसा नहीं है कि इस तरह की विचारधारा केवल हमारे देश में है। दूसरे देशों में भी ऐसे लोग हैं। ईरान में जो हो रहा है, उसे ही देख लीजिए। मुझे नहीं पता कि दुनिया को क्या चाहिए। मेरा बस यही कहना है कि अगर आपको कुछ करने के लिए स्वतंत्रता चाहिए, तो दूसरों को भी तो वही स्वतंत्रता चाहिए। महिलाओं के लिए ही इतनी पाबंदियां क्यों हैं। आप इतनी पाबंदियां लगा रहे हैं, इस बार ऐसी विचारधारा का दहन करना चाहिए।
वास्तविकता से जुड़ने का बढ़िया मौका -रितिक रोशन
‘मुझे नहीं लगता कि हमारे अंदर किसी भी तरह का राक्षस या रावण है। हम सब एक जैसे होते हैं, अच्छे और पवित्र। बात सिर्फ इतनी है कि हमने अपने आपको दुनिया से बचाने के लिए, उनकी नजरों में अच्छे बने रहने के लिए अपनी असलियत के ऊपर कई परतें ओढ़ रखी हैं। अपने अंदर की सच्चाई और अच्छाई को दिखाने के लिए उन झूठी परतों को उतारना जरूरी है। हम अपने व्यक्तित्व पर चढ़ी जितनी ज्यादा परतें निकालेंगे, हम स्वयं के उतने ही करीब होते जाएंगे और हम उतने ही अच्छे, सच्चे और वास्तविक इंसान बनते जाएंगे। मुझे लगता है दशहरा न सिर्फ रावण के रूप में बुराइयों का दहन करने के लिए एक बहुत बढ़िया मौका है, बल्कि हमें अपने व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द उन झूठी परतों को भी उतारने का अच्छा मौका है। जिन्हें हमने सिर्फ यह सोचकर ओढ़ रखा है कि अगर किसी को हमारी वास्तविकता के बारे में पता चल गया कि मैं अंदर से कैसा हूं, तो मुझे कम पसंद करने लगेगा। हमें किसी दूसरे के नजरिए के बारे में सोचे बिना वास्तविक व्यक्तित्व के साथ जीना चाहिए। इससे बेहतर दशहरा भला और क्या होगा।’
बनी रहे देश की खूबसूरती -टिस्का चोपड़ा
अपने भीतर या समाज की किन बुराई का दहन करना चाहिए, इसका एक साधारण सा जवाब नहीं हो सकता है। मैं मानती हूं कि बहुत बड़ी-बड़ी चीजों के बारे में सोचने के साथ ही कुछ छोटी चीजों पर भी ध्यान दें। आसपास साफ-सफाई रखना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके लिए आपको कुछ अलग से करने की जरूरत नहीं है। बस, अपनी आदतों में सुधार की जरूरत है। अगर आपमें कहीं भी कचरा फेंकने या आसपास गंदगी फैलाने की आदत है, तो उस बुरी आदत का दहन इस दशहरा पर कर दें। अगर हम देश को साफ रख सकें, तो इससे अच्छी बात भला क्या होगी। जब हम दूसरे साफ-सुथरे देशों से घूमकर अपने देश आते हैं, तो यह इच्छा और भी तीव्र हो जाती है कि अपने देश में सफाई रख लें। बहुत सुंदर देश है हमारा, इसकी खूबसूरती को बरकरार रखें।