बर्थडे: गायक किशोर कुमार के लिए भी 11 गीत गाये थे मोहम्मद रफी ने, जाने कुछ और रोचक बातें
उनके गुज़र जाने के बाद संगीतकार नौशाद ने कहा था- कहता है कोई दिल गया, दिलबर चला गया/ साहिल पुकारता है समंदर चला गया / लेकिन जो बात सच है वो कहता नहीं कोई / दुनिया से मौसिकी का पयंबर चला गया। जिस दिन मोहम्मद रफी साहब का निधन..
मुंबई। मोहम्मद रफी (जन्म: 24 दिसंबर 1924-निधन:31 जुलाई 1980) को न जाने कितनी पीढ़ियों ने गुनगुनाया है। आज रफी साहब की बर्थ एनिवर्सरी है। अपनी गायकी से सबके दिलों पर राज़ करने वाले मोहम्मद रफी को शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। मोहम्मद रफी की आवाज़ ने उनके बाद सोनू निगम, मोहम्मद अज़ीज़ जैसे कई गायकों को प्रेरित किया।
लता मंगेशकर ने रफी साहब को याद करते हुए एक इंटरव्यू में कहा था- "सरल मन के इंसान रफी साहब बहुत सुरीले थे। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए। गाना कैसा भी हो वो ऐसे गा लेते थे कि गाना ना समझने वाले भी वाह-वाह कर उठते थे। ऐसे गायक बार-बार जन्म नहीं लेते।" बहरहाल, क्या आप जानते हैं वो अपने संगीतकार से यह कभी नहीं पूछते थे कि इस गाने के लिए उन्हें कितने पैसे मिलेंगे? कभी-कभी तो वो महज 1 रुपये फ़ीस लेकर भी गाना गा दिया करते। मोहम्मद रफी पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में जन्में थे और वहां से उन्होंने मुंबई ही नहीं दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई।
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रफी साहब से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है कि बचपन में उनके गांव में एक फ़क़ीर आया करता था, जो गीत गाते हुए गुज़र जाया करता। रफी उस फ़क़ीर के पीछे-पीछे बहुत दूर तक जाते और जब लौटकर आते तो वही गीत फिर सबको सुनाते। मानो समय इस फ़नकार को अपने अंदाज़ से गढ़ रहा था। उनके करियर की बात करें तो 1940 के दशक से आरंभ कर 1980 तक उन्होंने कुल 26,000 से ज्यादा गाने गाए। इनमें हिन्दी के अतिरिक्त ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं।
किशोर कुमार जो खुद एक बड़े गायक थे। जब फ़िल्मी पर्दे पर उनकी आवाज़ बनने की बात हुई तो रफ़ी साहब पर जाकर वो तलाश खत्म हुई। किशोर कुमार के लिए रफ़ी ने तक़रीबन 11 गाने गाये। रफी की सबसे ख़ास बात यह थी कि उनकी आवाज़ हर एक्टर पर फिट हो जाती। दिलीप कुमार से लेकर देवानंद और शम्मी कपूर से लेकर राजेंद्र कुमार वो जिस किसी भी स्टार के लिए गाते पर्दे पर यही लगता कि रफी नहीं वो स्टार गा रहा है!
'नील कमल' का गाना 'बाबुल की दुआएं लेती जा' को गाते वक्त बार-बार उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे और उसके पीछे कारण था कि इस गाने को गाने के ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी इसलिए वो काफी भावुक थे, फिर भी उन्होंने ये गीत गाया और इस गीत के लिए उन्हें ‘नेशनल अवॉर्ड’ मिला। मोहम्मद रफ़ी ने 6 फ़िल्मफेयर और 1 नेशनल अवॉर्ड समेत कई पुरस्कार हासिल किये। पद्मश्री मोहम्मद रफी ने तमाम भारतीय भाषाओं के अलावा पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश में भी गीत गाए थे। मोहम्मद रफी का आखिरी गीत फ़िल्म ‘आस पास’ के लिए था, जो उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए अपने निधन से ठीक दो दिन पहले रिकॉर्ड किया था, गीत के बोल थे 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त'।
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उनके गुज़र जाने के बाद संगीतकार नौशाद ने कहा था- ''कहता है कोई दिल गया, दिलबर चला गया/ साहिल पुकारता है समंदर चला गया / लेकिन जो बात सच है वो कहता नहीं कोई / दुनिया से मौसिकी का पयंबर चला गया।'' जिस दिन मोहम्मद रफी साहब का निधन हुआ उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी और फिर भी उनकी अंतिम यात्रा के लिए कम से कम 10,000 लोग सड़कों पर थे। मशहूर एक्टर मनोज कुमार ने तब कहा था- ‘सुरों की मां सरस्वती भी अपने आंसू बहा रही हैं आज’।