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फिल्म रिव्यू मेरे डैड की मारुति-चंडीगढ़ के बाप-बेटे

यशराज फिल्म्स युवा दर्शकों को ध्यान में रख कर कुछ फिल्में बनाती है। 'मेरे डैड की मारूति' इसी बैनर वाय फिल्म्स की फिल्म है। चंडीगढ़ में एक पंजाबी परिवार में शादी की पृष्ठभूमि में गढ़ी यह फिल्म वहां के युवक-युवतियों के साथ बाप-बेटे के रिश्ते, दोस्ती और निस्संदेह मोहब्बत की भी कहानी कहती है। फिल्म में पं

By Edited By: Published: Fri, 15 Mar 2013 04:29 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2013 06:22 PM (IST)
फिल्म रिव्यू मेरे डैड की मारुति-चंडीगढ़ के बाप-बेटे

मुंबई। यशराज फिल्म्स युवा दर्शकों को ध्यान में रख कर कुछ फिल्में बनाती है। 'मेरे डैड की मारूति' इसी बैनर वाय फिल्म्स की फिल्म है। चंडीगढ़ में एक पंजाबी परिवार में शादी की पृष्ठभूमि में गढ़ी यह फिल्म वहां के युवक-युवतियों के साथ बाप-बेटे के रिश्ते, दोस्ती और निस्संदेह मोहब्बत की भी कहानी कहती है। फिल्म में पंजाबी संवाद और पंजाबी गीत-संगीत की बहुलता है। इसे हिंदी में बनी पंजाबी फिल्म कह सकते हैं। पंजाब का रंग-ढंग अच्छी तरह उभर कर आया है। ऐसी फिल्में क्षेत्र विशेष के दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर सकती हैं। भविष्य में हिंदी में इस तरह की क्षेत्रीय फिल्में बढ़ेंगी, जो बिहार, राजस्थान, हिमाचल की विशेषताओं के साथ वहां के दर्शकों का मनोरंजन करें।

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तेजिन्दर (राम कपूर) और समीर (साकिब सलीम) बाप-बेटे हैं। अपने बेटे की करतूतों से हर दम चिढ़े रहने वाले तेजिन्दर समीर को किसी काम का नहीं समझते। समीर अपने जिगरी दोस्त गट्टू के सथ शहर और यूनिवर्सिटी में मंडराता रहता है। अचानक एक लड़की उसे पसंद करती है और डेट का मौका देती है। डेट पर जाने के लिए समीर अनुमति लिए बगैर अपने डैड की नई मारुति लेकर जाता है। डेट,प्यार और उत्साह के चक्कर में वह कार खो जाती है। यहां यह भी बता दें कि तेजिन्दर ने वह मारुति अपने दामाद को भेंट करने के लिए खरीदी है। संगीत से शादी के चंद दिनों के बीच मारुति तलाशने और लाने के दरम्यान फिल्म में रोमांस, गाने और युवकों के बीच प्रचलित लतीफेबाजी है।

फिल्म में युवाओं के बीच प्रचलित भाषा का अधिकाधिक उपयोग किया गया है। गैरशहरी दर्शकों को इसे समझने में दिक्कत हो सकती है, लेकिन यह फिल्म उनके लिए बनी भी नहीं है। फिल्म का उद्देश्य शहरी युवाओं के मन-मानस को पेश करना है। बहरहाल, पिता की भूमिका में आए राम कपूर किरदार के मिजाज को अच्छी तरह पर्दे पर जीवंत करते हैं। उनकी अदायगी में आई नाटकीयता किरदार की जरूरत है। बेटे की भूमिका में साकिब सलीम ने अच्छी मेहनत की है। नृत्य और भागदौड़ के दृश्यों में वे अधिक जंचे हैं। भावनात्मक और नाटकीय दृश्यों में उनकी मेहनत झलकती है। अभी अभ्यास चाहिए। कुछ दृश्यों में उनका सहयोगी गट्टू बाजी मार ले जाता है।

फिल्म के परिवेश के मुताबिक पंजाबी गीत-संगीत की भरमार है। मौका संगीत और शादी का है तो नाच-गाने जरूरी लगने लगते हैं। फिर भी दुल्हन का आयटम गीत का तुक समझ में नहीं आता, जबकि दिखाया गया है कि भाई और दूल्हा उस नृत्य पर झेंप रहे हैं। एक मां हैं, जो चुटकियां बजा रही हैं।

पुन:श्च- फिल्म में मारुति कार का प्रचार किया गया है। यह प्रचार खटकता है।

-अजय ब्रह्मात्मज

अवधि-101 मिनट

ढाई स्टार

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