बथर्ड स्पेशल: तो शायर होतीं ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी
हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा और ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी अगर आज जिंदा होतीं तो 83 साल की होतीं। उनका जन्म आज ही के दिन 1 अगस्त 1932 को मुंबई में हुआ था। मीना ने हिंदी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं, जिनमें से एक है 'पाकीजा'।
मुंबई। हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा और ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी अगर आज जिंदा होतीं तो 83 साल की होतीं। उनका जन्म आज ही के दिन 1 अगस्त 1932 को मुंबई में हुआ था। मीना ने हिंदी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं, जिनमें से एक है 'पाकीजा'।
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पिता छोड़ आए अनाथालय
कहा जाता है कि मीना कुमारी के जन्म के समय उनके पिता के पास हॉस्पिटल को देने के लिए पैसे तक नहीं थे। दो बेटियां पहले से ही होने से मीना कुमारी के पिता उन्हें जन्म के बाद ही अनाथालय छोड़ आए थे। दरअसल, मीना के पिता एक बेटा चाहते थे। लेकिन बाद में उनकी पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया।
मीना कुमारी नहीं 'माहजबीं'
मीना कुमारी का असली नाम 'माहजबीं था। माहजबीं फिल्म एक्ट्रेस नहीं बनना चाहती थीं। लेकिन माहजबीं के पिता अली बक्श खुद एक्टर बनना चाहते थे, हालांकि उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। इसी दौरान उनकी पत्नी ने माहजबीं को फिल्म में भेजने की जिद पकड़ ली और मजबूरन अली बक्श को अपने बेटी को इंडस्ट्री में लाना पड़ा।
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पढ़ना चाहती थी माहजबीं
मीना कुमारी एक्टिंग नहीं करना चाहती थी। चार साल की छोटी सी उम्र में फिल्मों में काम शुरू करने वाली माहजबीं शूटिंग पर जाते समय हमेशा रोती थी। हर बार वो अपने अम्मी और अब्बू से बस यही कहती थीं कि उसे दूसरे बच्चों की तरह बस पढ़ने दिया जाए। लेकिन ऐसा हो ना सका।
'लेदरफेस' से माहजबीं बन गई मीना कुमारी
मीना कुमारी का नाम बचपन में ही बदल दिया गया था। प्रकाश पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म 'लेदरफेस' में माहजबीं का नाम रखा गया 'बेबी मीना'। इसके बाद मीना ने 'बच्चों का खेल' में बतौर हीरोइन काम किया। इस फिल्म के बाद ही उन्हें मीना कुमारी का नाम दिया गया।
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तो शायर होतीं मीना कुमारी
मीना कुमारी गुलजार को अपने बहुत करीब मानती थीं। इसलिए गुज़र जाने पर मीना कुमारी की शायरी की किताब जो उन्हें सबसे प्यारी थी, उसे छपवाने का जिम्मा उन्होंने अपनी वसीयत में गुलजार के नाम छोड़ा था। हिंदी फिल्मों में अपने दमदार और संजीदा अभिनय से सबको अपना मुरीद बनाने वाली मीना कुमारी अगर एक्ट्रेस नहीं होती तो वो एक शायर होतीं। वो इतनी अच्छी शायरी करती थीं कि गुलजार भी उनकी शायरी सुनना पसंद करते थे।
मीना कुमारी के करियर में फिल्म 'पाकीजा' मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म को शूटिंग से सिल्वर स्क्रीन तक आने में करीब 16 साल लगे। लेकिन मीना कुमारी 'पाकीजा' को हिट होते हुए नहीं देख पाई, क्योंकि फिल्म के रिलीज़ होने के दो महीने बाद ही 31 मार्च 1972 को उनकी मौत हो गई।