'वोदका डायरीज़' में मंदिरा बेदी बनेंगी शायरा, पढ़ेंगी आलोक श्रीवास्तव की शायरी
लिखने वालों को साहित्य की, शायरी की, पोएट्री की, अपने क्लासिक्स की अपने कंटेम्पररी लिखने वालों की जानकारी हो, उसे काम आता हो और वो पूरी तरह से तैयार हो तभी उसे मुंबई आना चाहिए।
मुंबई। अभिनेत्री मंदिरा बेदी जल्द ही बड़े पर्दे पर शायरा बन कर लौट रही हैं। फ़िल्म का नाम है 'वोदका डायरीज़'। इस फ़िल्म में मंदिरा ने एक शायरा का दिलचस्प किरदार निभाया है। 'वोदका डायरीज़' में मंदिरा बेदी, के के मेनन और रिया सेन केंद्रीय भूमिका में हैं और इस फ़िल्म को डायरेक्ट कर रहे हैं कुशल श्रीवास्तव।
बहरहाल, बात मंदिरा के शायराना किरदार की हो रही थी। आपको याद होगा हाल ही में हमने 'ऐ दिल है मुश्किल' में ऐश्वर्या राय बच्चन को एक शायरा के किरदार में देखा है! लेकिन, बता दें कि ऐश्वर्या और मंदिरा की शायरी में एक बुनियादी फर्क यह है कि ऐश्वर्या जहां फ़िल्म में किसी अज्ञात शायर की शायरी पढ़ रही थीं तो वहीं 'वोदका डायरीज़' में मंदिरा जो शेर पढ़ रही हैं वो देश के जानेमाने शायर और कवि आलोक श्रीवास्तव के कलम से निकली हैं।
यह भी पढ़ें: कभी ट्रेन ड्राइवर बनना चाहता था यह दिग्गज अभिनेता, जानें ओम पुरी से जुड़ी 10 ख़ास बातें
गौरतलब है कि आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़लों को गज़ल सम्राट जगजीत सिंह से लेकर पंकज उधास तो वहीं उनके गीतों को गायक शान से लेकर देश के महानायक अमिताभ बच्चन तक अपनी आवाज़ दे चुके हैं। 'वोदका डायरीज़' के अपने अनुभव समेत तमाम मुद्दों पर आलोक श्रीवास्तव ने जागरण डॉट कॉम से ख़ास बातचीत की।
इस फ़िल्म के साथ आप कैसे जुड़े? इस सवाल के जवाब में आलोक बताते हैं कि फ़िल्म के निर्देशक कुशल श्रीवास्तव से उनके बहुत पुराने रिश्ते रहे हैं और उनके जितने भी म्युज़िक एल्बम आये हैं उन सबके वीडियो कुशल ने ही डायरेक्ट किए हैं। कुशल ने जब अपनी डेब्यू फीचर फ़िल्म 'वोदका डायरीज़' के बारे में उन्हें बताया और कहा कि फ़िल्म में कोई गाना नहीं है तो वे थोड़े उदास हुए क्योंकि ज़ाहिर है फ़िल्म में उनकी कोई भूमिका नहीं थी!
लेकिन, आलोक के मुताबिक शूटिंग के दौरान कुछ यूं हुआ कि मंदिरा बेदी जब एक सीन में अपना डायलॉग बोल रही थीं तो वह बिल्कुल पोएटिक अंदाज़ में बात कर रही थीं और फिर यहीं से डायरेक्टर कुशल श्रीवास्तव को यह आईडिया आया कि क्यों न मंदिरा के संवादों के लिए किसी चर्चित शायर के शेर लिए जायें और इस तरह से आलोक इस फ़िल्म का हिस्सा बने!
आलोक बताते हैं कि कमाल की बात यह भी है कि इस फ़िल्म के लिए मुझे कुछ अलग से या नया नहीं लिखना पड़ा। जो उनके पॉपुलर शेर रहे हैं जैसे- ''ये सोचना गलत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं'।'' ऐसे ही कुछ शेरों को फ़िल्म के दृश्यों में इस तरह से पिरो दिया गया जो नेचुरल तरीके से फ़िल्म का हिस्सा बन गए। ये शायरियां उनकी चर्चित गज़ल संग्रह 'आमीन' से ली गई हैं! दिलचस्प बात यह भी कि फ़िल्म के क्रेडिट रोल में आलोक श्रीवास्तव लिरिसिस्ट नहीं बल्कि पोएट के रूप में जुड़े हैं! फ़िल्म में उनकी लिखी एक ग़ज़ल 'सखी पिया को' भी शामिल की गई है जिसे रेखा भारद्वाज और उस्ताद राशिद अली ख़ान ने अपनी आवाज़ दी है और संदेश शांडिल्य ने उसका म्यूज़ीक दिया है।
आलोक के मुताबिक यह भी अपने आप में एक डिफरेंट स्ट्रोक है कि एक सस्पेंस और मर्डर थ्रिलर बेस्ड फ़िल्म में ग़ज़ल भी है। फ़िल्म में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि किस तरह से पोएट्री के जरिये किसी केस में क्लू भी मिल रहा है तो कुल मिलाकर इस सस्पेंस थ्रिलर में एक पोएटिक टच है जो इस फ़िल्म से पहले शायद ही देखा गया हो! आलोक इस बात से भी बहुत खुश हैं कि उनकी रचनाओं को बिना किसी बदलाव के हू ब हू फ़िल्म में शामिल किया गया जिससे सभी शायरों को एक अच्छा मैसेज भी जाता है।
शायरों के फ़िल्मों में आने से फ़िल्मी गीतों पर किस तरह का असर आप देखते हैं? इसके जवाब में आलोक कहते हैं कि जो लोग शायरी की पृष्ठभूमि से आयेंगे और जो फ़िल्म के माध्यम को समझेंगे ये फ़िल्म संगीत के लिए एक अच्छी बात होगी। पहले जितने भी अच्छे गीतकार हुए हैं चाहे वो साहिर हो, कैफ़ी आज़मी हो, शकील बदायूंनी, मजरूह सुल्तानपुरी या आज गुलज़ार की बात हो ये सब शायर रहे हैं और इसलिए इनके गीतों का स्तर बहुत ही आला दर्ज़े का है और वो आज भी सुने जाते हैं।
आलोक कहते हैं कि शायर के पास एक मुक़म्मल मीटर होता है और जब संगीतकार उस पर धुन बनाता है तो बेहतर चीज़ें निकल कर सामने आती हैं। नए लोग जो लिखने वाले हैं उनके पास अपना मीटर नहीं है। जो संगीतकारों ने म्यूज़ीक सेट करके दे दिया वो उसी पर अपने गाने के बोल फिट करते रहते हैं इसलिए आज म्यूज़ीक लाउड है और गाने के बोल हल्के पड़ गए हैं!
यह भी पढ़ें: रहमान के बचपन का नाम दिलीप कुमार था, ए आर रहमान के बर्थडे पर जानिये उनकी कुछ दिलचस्प बातें
नए लिखने वालों और कलाकारों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे? इसके जवाब में आलोक कहते हैं कि मुंबई जिसको भी आना है तो उन्हें पूरी तैयारी करके आना चाहिए। लिखने वालों को साहित्य की, शायरी की, पोएट्री की, अपने क्लासिक्स की अपने कंटेम्पररी लिखने वालों की जानकारी हो, उसे काम आता हो और वो पूरी तरह से तैयार हो तभी उसे मुंबई आना चाहिए। आने के बाद भी अपने आप को लगातार निखारते रहना चाहिए और अपने काम में सुधार करते रहना चाहिए, चाहे आप किसी भी फील्ड के हों! बता दें कि 'वोदका डायरीज़' इसी शुक्रवार यानी 19 जनवरी को रिलीज़ हो रही है।