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Hindi Diwas 2020: विदेश में हिन्दी बोलने वाला मिल जाए तो कैसा लगता है? इन फिल्म सेलेब्स से जानें

Hindi Diwas 2020 हिन्दी दिवस के मौके पर जानते हैं कि फिल्म स्टार्स को उस वक्त कैसा लगा जब वो विदेश में थे और किसी ने उनसे अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में बात की।

By Mohit PareekEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 07:46 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 07:46 AM (IST)
Hindi Diwas 2020: विदेश में हिन्दी बोलने वाला मिल जाए तो कैसा लगता है? इन फिल्म सेलेब्स से जानें
Hindi Diwas 2020: विदेश में हिन्दी बोलने वाला मिल जाए तो कैसा लगता है? इन फिल्म सेलेब्स से जानें

नई दिल्ली, जेएनएन। अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति को हमारे देश में एक विशिष्ट नजर से देखा जाता है। वहीं, अगर विदेशी जमीन पर हिन्दी में बात करने वाला कोई मिल जाए तो उससे यूं ही अपनत्व हो जाता है। खास बात ये है कि ऐसा सिर्फ आम आदमियों के साथ ही नहीं, बल्कि फिल्म स्टार के साथ भी कुछ ऐसा है। ऐसे में हिन्दी दिवस के मौके पर जानते हैं कि फिल्म स्टार्स के साथ विदेश में हुए कुछ ऐसे ही किस्सों के बारे में...

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हिन्दी ने कराई दोस्ती

अभिनेता मोहन कपूर बताते हैं, ‘विदेश में जब कोई वहां का नागरिक नमस्कार बोलता है तो अलग अनुभूति होती है। हिन्दी फिल्मों की वजह से ही कई बार विदेश में पहचान मिली है, जो हिन्दी बोलते हैं, उनसे एक अनजान देश में भी दोस्ती हो जाती है और अपनी मिट्टी, अपने वतन की याद आ जाती है। गांव-देश के किस्से सुनने को मिलते हैं। एक बार दुबई के मॉल में बाहर निकल रहा था। अचानक एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उन्होंने बताया कि वह मेरे फैन हैं और दुबई के एक होटल में हिन्दी गजलें गाते हैं। उन्होंने अपनी गजल सुनने के लिए आमंत्रित किया। मैं अपने दोस्तों के साथ उनकी गजल सुनने भी गया। वह वाकई बहुत अच्छा गाते हैं। तब से लेकर आज भी हमारी दोस्ती कायम है।’

वे भी करते हैं हिन्दी की कद्र

फिल्मों और वेब सीरीज में अपने अभिनय से अलग राह बना रहे हैं चंदन रॉय सान्याल। विदेश में हिन्दी की महक का अनुभव चंदन बताते हैं, ‘दूसरे देश में जब कोई हिन्दी बोलता है तो यह मायने नहीं रखता कि उसका देश कौन सा है। एक बार मैं टोरंटो में था। रात का वक्त था, मुझे कहीं जाना था। एक सरदार जी मिले, मैं उनकी टैक्सी में बैठ गया। उन्होंने पहले अंग्रेजी में पूछा आप कहां से हैं, मैंने बताया कि मैं मुंबई से हूं, अभिनय करता हूं। फिर उन्होंने हिन्दी में ही बातें कीं। उन्होंने बताया कि वह सनी देयोल के बहुत बड़े फैन हैं। किस्से बताने लगे कि सनी पाजी जब टोरंटो आए थे तो उनसे मिलने का मौका मिला था। मुझे जहां जाना था उन्होंने वहीं छोड़ा, लेकिन पैसे नहीं लिए। इसी तरह इंग्लैंड के मैनचेस्टर में मैं एक पाकिस्तानी टैक्सी ड्राइवर से मिला था। वह हिन्दी फिल्में देखते थे। उन्होंने भी किराए के पैसे नहीं लिए थे। ऐसा ही कुछ स्पेन के बार्सिलोना में भी हुआ। हिन्दी फिल्मों की वजह से विदेश में प्यार मिलता है। दूसरे देश के लोग भी हमारी भाषा की कद्र करते हैं।’

लगा कोई पड़ोसी मिल गया

अपनी आवाज से अलहदा पहचान है कैलाश खेर की। विदेशी जमीन पर अपनी संस्कृति और भाषा को लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए वह बताते हैं, ‘मैं अमेरिका के मैनहट्टन में था। लोग वहां बहुत व्यस्त रहते हैं। ऐसे में जब वहां अपनी संस्कृति को जानने वाला या हिन्दी सुनने का मौका मिले तो अंदर एक लहर सी दौड़ जाती है। मैं एक मॉल में कुछ सामान खरीद रहा था। काउंटर पर जो महिला थीं, उन्होंने हाथ जोड़कर मुझे कहा, ‘कैलाश जी नमस्कार!’ मैं चौंक गया कि अंग्रेज हिन्दी में बात कर रही हैं। वह ट्रिनीडाड से थीं, जो साउथ अमेरिका का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हमें आपके संगीत से प्यार है। इतनी अच्छी हिन्दी बोलने के बाद भी वह कह रही थीं कि उनकी हिन्दी इतनी अच्छी नहीं है। मैंने उनसे कहा कि जितना आप बोल रही हैं, उतना ही सुनने में सुकून महसूस कर रहा हूं। इसी तरह एक बार मैं न्यू यॉर्क से कैलिर्फोनिया जा रहा था। मेरे पास एक फिरंगी महिला आकर बैठीं, जो भारत में रह चुकी थीं। उन्होंने मुझे गायत्री मंत्र सुनाया। ऐसा लगा जैसे देश से ही कोई पड़ोसी मिल गया हो।’

घर की याद दिला गया

अभिनेत्री दिव्या दत्ता कहती हैं, ‘विदेश में ज्यादा वक्त तक रहने पर घर की याद आने लगती है। ऐसे में कोई अपने देश का, अपनी भाषा में बात करने वाला मिल जाए तो रेगिस्तान में पानी मिल जाने जैसी खुशी महसूस होती है। मैं एक शो के लिए दो महीनों से टोरंटो में थी। घर की बहुत याद आ रही थी। होटल में अचानक से कमरे की घंटी बजी और रूम र्सिवस वाली महिला अंदर आईं। उन्होंने मुझे गुड इवनिंग कहा और फिर हिन्दी में कहा मैं भी पंजाब से हूं। मैं तुरंत उनकी तरफ मुड़ी। उनकी हिन्दी और पंजाबी इतनी मधुर लगी कि ऐसा लगा मैं घर आ गई। दूसरे देशों में हिन्दी भाषी कम मिलते हैं। यही वजह है कि लोग वहां अपनों के आसपास रहते हैं ताकि वतन को ज्यादा याद न करें।’

हिन्दी में ही करता हूं बात

विदेशी जमीन पर अपनी ही भाषा में बात करना पसंद करते हैं लेखक व अभिनेता विनीत कुमार सिंह। वह कहते हैं, ‘जब ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के लिए कान फिल्म फेस्टिवल गया था, तब मन में झिझक थी कि वहां बात कैसे करूंगा? लेकिन तब से अब में बहुत बदलाव आ गया है। अब मैं हिन्दी में बात करता हूं, ट्रांसलेटर वहां उसे दूसरी भाषा में रूपांतरण कर देते हैं। मैंने दूसरे देश के लोगों को हिन्दी में नमस्कार बोलना सिखाया है। विदेश में किसी रेस्तरां में बैठकर हिन्दी में बात करने का मजा ही अलग है। अब विदेश में हिन्दी का प्रभाव बढ़ गया है। हिन्दी में एक रस है। मैं हिन्दी पट्टी वाले क्षेत्र से आता हूं। अपनी भाषा को हम नहीं प्रमोट करेंगे तो कौन करेगा? मैं बनारस से हूं, कोई भोजपुरी में बात करने वाला मिल जाता है तो वह भी कर लेता हूं। कई बार हिन्दी कनेक्शन की वजह से अनजान देश में लोगों ने खाने पर भी बुलाया है। कई बार ऐसे ड्राइवर मिले, जो किसी तरह वहां की भाषा सीख जाते हैं, लेकिन जब उन्हें कोई हिन्दी भाषी मिल जाता है तो वे भावुक हो जाते हैं। 


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