Happy Birthday Smita Patil: न्यूज एंकर से अभिनेत्री तक का सफर
Happy Birthday Smita Patil स्मिता पाटिल ने इंसानियत के दुश्मन आनंद और आनंद बदले की आग अंगारे कयामत जैसी दोयम दर्जे की फिल्मों में काम किया था
अनंत विजय, नई दिल्ली। फिल्म ‘नमक हलाल’ में स्मिता पाटिल और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया बारिश-गीत ‘आज रपट जाएं तो’ आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा है। समानांतर फिल्म की संवेदनशील नायिका को इस तरह से बारिश में भीगते हुए सुपरस्टार के साथ गाते देख सिनेमा हॉल के आगे की पंक्ति में बैठने वालों ने जमकर पैसे लुटाए थे। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान स्मिता बेहद खुश रहती थीं और साथी कलाकारों के साथ चुहलबाजियां भी करती थीं। इस गाने के फिल्मांकन के बाद वो देर तक रोती रहीं थीं । उन्हें मालूम था कि वो प्रकाश मेहरा जैसे बड़े निर्देशक की बड़े बजट की मल्टीस्टारर में काम कर रही थीं लेकिन तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि उसकी उन्हें ये कीमत चुकानी पड़ेगी।
ये वही स्मिता पाटिल थीं जो अपने बिंदास अंदाज के लिए फिल्म जगत में जानी जाती थीं। ये वही स्मिता पाटिल थीं जिन्होंने मंथन, भूमिका, अर्थ, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में यादगार भूमिका निभाई थीं। ये वही स्मिता पाटिल थीं जिन्होंने दूसरी तरफ इंसानियत के दुश्मन, आनंद और आनंद, बदले की आग, अंगारे, कयामत जैसी दोयम दर्जे की फिल्मों में भी काम किया था। इससे आपको अंदाजा हो सकता है कि स्मिता पाटिल के व्यक्तित्व के कितने पहलू थे। उनके अभिनय का रेंज कितना बड़ा था।
इस तरह के दिलचस्प किस्सों को मैथिली राव ने अपनी किताब ‘स्मिता पाटिल, अ ब्रीफ इनकैनडेंस्ट’ ने समेटा है। स्मिता पाटिल अपने जन्म के वक्त हंसती हुई पैदा हुई थीं, इस वजह से उसका नाम स्मिता रखा गया था। स्मिता मां-बाप की मंझली संतान थीं लेकिन अपनी बहनों से बिल्कुल अलग और मस्त मौला । स्मिता के रंग को देखकर उसके दोस्त उसको काली कहकर चिढ़ाया करते थे, जवाब में स्मिता ए हलकट कहकर निकल जाती थीं।
“do not breathe.. what people will think” ~ smita patil (1955-1986) rest in power ❤️👑
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पुणे की फिजा में ही कुछ बात है कि लोग वहां साहित्य, संस्कृति और कला को लेकर खासे उत्साहित रहते हैं। उसका असर स्मिता पाटिल पर भी पड़ा और उसने अभिनय की ओर कदम बढ़ा दिए। उस दौर में कम ही लोगों को ये मालूम था कि स्मिता पाटिल पुणे की मशहूर संस्था फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान की छात्रा नहीं थीं क्योंकि उसका ज्यादातर वक्त वहां पढ़ने वाले उनके दोस्तों के साथ उस कैंपस के इर्द-गिर्द बीतता था। मोटर साइकिल से लेकर जोंगा जीप चलाने वाली स्मिता पाटिल की टॉम बाय की छवि बन गई थी। अपने दोस्तों के साथ मराठी गाली गलौच की भाषा में बात करना उनका प्रिय शगल था।
जब उनके पिता मुंबई आ गए तब भी उनका दिल पुणे में ही लगा रहा। वो मुंबई नहीं आना चाहती थीं लेकिन परिवार के दबाव में वो मुंबई आ गई । यहां उसने एलफिस्टन छोड़कर सेंट जेवियर में पढ़ाई की। यहां उनके साथ एक बेहद दिलचस्प वाकया हुआ और वो दूरदर्शन में न्यूज रीडर बन गईं। स्मिता की बहन अनीता के कुछ दोस्त पुणे से आए हुए थे जिनमें पुणे दूरदर्शन की मशहूर न्यूज रीडर ज्योत्सना किरपेकर भी थीं। उसके साथी दीपक किरपेकर को फोटोग्राफी का शौक था और वो स्मिता पाटिल के ढे़र सारे फोटो खींचा करते थे। ये कहते हुए कि घर की मॉडल है जितनी मर्जी खींचते जाओ। स्मिता भी उनके सामने बिंदास अंदाज में फोटो शूट करवाती थीं।
अनीता के दोस्तों ने तय किया कि स्मिता की तस्वीरों को ज्योत्सना किरपेकर को दिखाया जाए। एक दिन कॉलेज में क्लास खत्म होने के बाद सबने तय किया कि मुंबई दूरदर्शन के वर्ली दफ्तर में चला जाए। सब लोग वहां पहुंचे। दूरदर्शन के दफ्तर के पास एक समतल जगह दिखाई दी तो वहां रुक गए और स्मिता के कुछ फोटोग्राफ्स फैला दिया। संयोग की बात थी कि उसी वक्त मुंबई दूरदर्शन के निदेशक पी वी कृष्णमूर्ति वहां से गुजर रहे थे। वो इनमें से कुछ को जानते थे। कृष्णमूर्ति ने उन सबको इकट्ठे देखा तो रुक कर हाल चाल पूछने लगे । इसी दौरान उनकी नजर स्मिता पाटिल की तस्वीरों पर चली गई। उन्होंने पूछा कि ये लड़की कौन है और वो इससे मिलना चाहते हैं ।
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अब सबके सामने संकट था कि स्मिता को इस बारे में कौन बताए और कौन उसको ऑडीशन के लिए राजी करे । फिर तय हुआ कि अनीता और ज्योत्सना मिलकर स्मिता को ऑडीशन के लिए राजी करेंगे। काफी मशक्कत के बाद स्मिता को राजी किया जा सका और वो दोनों उसको दूरदर्शन के दफ्तर लेकर पहुंची। ऑडिशन हुआ और स्मिता चुन ली गईं। वो मराठी न्यूज रीडर बन गईं । वो दौर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का था। सांवली स्मिता, गहराई से आती आवाज, उनकी भौहें और बड़ी सी बिंदी ने स्मिता पाटिल को खुद ही खबर बना दिया। जो लोग मराठी नहीं भी जानते थे वो भी स्मिता पाटिल को खबर पढ़ते देखने के लिए टेलीविजन खोलकर बैठने लगे थे।
स्मिता पाटिल खबर पढ़ते वक्त हैंडलूम की पार वाली साड़ी पहनती थीं लेकिन कम लोगों को ही पता है कि वो जींस पैंट पर साड़ी लपेट कर खबरें पढ़ा करती थीं। दूरदर्शन के उस दौर में ही श्याम बेनेगल की नजर स्मिता पाटिल पर पड़ी और वहीं से उन्होंने तय किया कि स्मिता के साथ वो फिल्म करेंगे। उस दौर में मनोज कुमार और देवानंद भी स्मिता पाटिल को अपनी फिल्म में लेना चाहते थे। यह संयोग ही है कि स्मिता मनोज कुमार की फिल्म में काम नहीं कर सकीं। देवानंद ने जब अपने बेटे सुनील आनंद को लांच किया तो उन्होंने उसके साथ स्मिता पाटिल को ही ‘आनंद और आनंद’ फिल्म में साइन किया था।
जब स्मिता पाटिल की बात हो तो शबाना आजमी के बगैर बात पूरी नहीं होती। स्मिता पाटिल और शबाना आजमी में जबरदस्त स्पर्धा थी और लोग कहते हैं कि साथ काम करने के बावजूद उनके बीच बातचीत नहीं के बराबर होती थी। हालांकि एक किताब के लांच के वक्त शबाना ने स्मिता पाटिल के बारे में बेहद स्नेहिल बातें की थीं और यहां तक कह डाला कि उनका नाम शबाना पाटिल होना चाहिए था और स्मिता का नाम स्मिता आजमी होना चाहिए था। शबाना ने माना था कि दोनों के बीच स्पर्धा थी लेकिन वो उसके लिए बहुत हद तक मीडिया को जिम्मेदार मानती हैं। शबाना ने ये भी स्वीकार किया कि उस दौर में दोनों के बीच सुलह की कई कोशिशें हुईं लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकीं और दोनों के बीच दोस्ती नहीं हो सकी।
इस बात की क्या वजह थी कि मंथन, निशान, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में काम करने वाली कलाकार ने बाद के दिनों में कई व्यावसायिक फिल्मों में काम किया था। श्याम बेनेगल कहते हैं कि स्मिता को भी पैसे कमाकर बेहतर जिंदगी जीने का हक था, सिर्फ स्मिता ने ही नहीं बल्कि शबाना ने भी कमर्शियल फिल्मों में काम किया। इसके अलावा नसीर से लेकर ओम पुरी तक ने भी समानांतर सिनेमा से इतर फिल्मों में काम किया।
श्याम बेनेगल के मुताबिक इन वजहों के अलावा स्मिता ये साबित करना चाहती थीं कि वो हर तरह की फिल्म कर सकती हैं और सफल हो सकती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि राज बब्बर से शादी के बाद पैकेज डील के तहत उनको कई कमर्शियल फिल्मों में काम करना पड़ा था जैसे आज की आवाज और अंगारे ।
मोहन अगासे कहते हैं कि स्मिता पाटिल जीनियस नहीं थीं लेकिन बेहद संवेदनशील थीं। कुछ इसी तरह की बात ओम पुरी ने भी कही है। ओमपुरी जब मुंबई में रहते थे तो उनके पास अपना घर नहीं था। जब ये बात स्मिता पाटिल को पता चली तो उन्होंने अपनी मां से कहा कि वो वसंत दादा को बोलकर ओम को एक घर दिलवा दें। उसके बाद वो ओम पुरी को लेकर वसंत दादा के पास भी गईं। लेकिन ओम पुरी को घर इस वजह से नहीं मिल सका कि उनको महाराष्ट्र में रहते हुए सिर्फ दस साल हुए थे जबकि उस वक्त ये सीमा पंद्रह साल थी। स्मिता पाटिल एक ऐसी कलाकार थीं जिन्हें इक्कीस साल की उम्र में नेशनल अवॉर्ड मिल गया था और तैंतीस साल की उम्र में उनका निधन हो गया।