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14 March 1931 को टूटी थी हिंदी सिनेमा की ख़ामोशी, 87 साल की हुई 'आलम आरा'

उस वक़्त मूक फ़िल्मों का दौर था और तकनीकी उन्नति के साथ निर्माताओं ने बोलती फ़िल्मों के असर की आहट को महसूस कर लिया था।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Wed, 14 Mar 2018 02:10 PM (IST)Updated: Fri, 16 Mar 2018 07:38 AM (IST)
14 March 1931 को टूटी थी हिंदी सिनेमा की ख़ामोशी, 87 साल की हुई 'आलम आरा'
14 March 1931 को टूटी थी हिंदी सिनेमा की ख़ामोशी, 87 साल की हुई 'आलम आरा'

मुंबई। 14 मार्च 1931 भारतीय सिनेमा के इतिहास में ख़ास जगह रखती है। ये वो तारीख़ है, जब भारतीय सिनेमा ने बोलना शुरू किया था। मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हाल में इसी दिन पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा' रिलीज़ हुई थी। 124 मिनट लंबी हिंदी फ़िल्म को अर्देशिर ईरानी ने निर्देशित किया था। आज 'आलम आरा' 87 साल की हो गयी है।

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भारतीय सिनेमा के इतिहास में 'आलम आरा' का रिलीज़ होना बड़ी घटना थी। उस वक़्त मूक फ़िल्मों का दौर था और तकनीकी उन्नति के साथ निर्माताओं ने बोलती फ़िल्मों के असर की आहट को महसूस कर लिया था। इसीलिए तमाम प्रमुख निर्माता कंपनियों में इस बात की होड़ लगी थी कि पहली बोलती फ़िल्म बनाने का श्रेय किसे मिलेगा। इम्पीरियल मूवीटोन कंपनी ने ये रेस जीती और 'आलम आरा' दर्शकों के बीच सबसे पहले पहुंच गयी। 'शिरीन फरहाद' मामूली अंतर से दूसरे स्थान पर रही। 'आलम आरा' को लेकर दर्शकों में इतना क्रेज़ था कि प्रदर्शन के वक़्त भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी थी। 

हिंदी सिनेमा का पहला गीत

फ़िल्म को लेकर दीवानगी के चलते रिलीज़ के बाद आठ हफ़्ते तक आलम आरा हाउसफुल रही थी। फ़िल्म के पोस्टर्स पर All Talking, Singing And Dancing टैगलाइन लिखी गयी थी, जिसके लिए हिंदी फ़िल्में दुनियाभर में लोकप्रिय हैं। 'आलम आरा' में मास्टर विट्ठल, ज़ुबैदा और पृथ्वीराज कपूर ने मुख्य किरदार निभाये थे। फ़िल्म की कहानी जोसेफ़ डेविड के पारसी प्ले पर आधारित थी, जिसके केंद्र में एक राजकुमार और आदिवासी लड़की की प्रेम कहानी थी। आलम आरा बहुत बड़ी हिट रही थी। इसका संगीत भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ। फ़िल्म का गाना दे दे ख़ुदा के नाम पर को भारतीय सिनेमा का पहला गाना माना जाता है। इस गाने को वज़ीर मोहम्मद ख़ान ने आवाज़ दी थी, जिन्होंने फ़िल्म में फ़कीर का किरदार निभाया था। तब तक प्लेबैक सिंगिंग का दौर शुरू नहीं हुआ था, लिहाज़ा ये गीत हारमोनियम और तबले के साथ लाइव रिकॉर्ड किया गया था। फ़िल्म में कुल सात गाने थे।

रात के अंधेरे में हुई शूटिंग

'आलम आरा' के निर्देशक ईरानी को भारत की पहली बोलती फ़िल्म बनाने की प्रेरणा एक अमेरिकन फ़िल्म 'शो बोट' से मिली थी, जो 1929 में रिलीज़ हुई थी। हालांकि ये भी पूरी तरह साउंड फ़िल्म नहीं थी। भारतीय सिनेमा  उस वक़्त तकनीकी रूप से ज़्यादा विकसित नहीं था। फ़िल्म तकनीशियनों को ये नहीं पता था कि साउंड वाली फ़िल्मों के निर्माण कैसे किया जाता है। ईरानी ने 'आलम आरा' बनाने के लिए टैनर सिंगल-सिस्टम कैमरा से शूट किया गया था, जो फ़िल्म पर ध्वनि को भी रिकॉर्ड कर सकता था। स्टूडियो के पास रेलवे ट्रैक था, लिहाज़ा वातावरण और आस-पास के शोर से बचने के लिए 'आलम आरा' का अधिकांश हिस्सा रात में 1 से 4 बजे के बीच शूट किया गया था। एक्टर्स के संवाद रिकॉर्ड करने के लिए उनके पास गुप्त माइक्रोफोन लगाये गये थे।

ऐसे हुआ एक्टर्स का चुनाव

'आलम आरा' चूंकि बोलती फ़िल्म थी, इसलिए ऐसे एक्टर्स को चुना गया था, जो हिंदुस्तानी या उर्दू ज़ुबां बोलना जानते हों। इसीलिए इराक़ी-पारसी एक्ट्रेस रूबी मायर्स को ज़ुबैदा से रिप्लेस किया गया। रूबी को हिंदुस्तानी ज़ुबां नहीं आती थी। वहीं, लीड रोल के लिए पहले महबूब ख़ान को चुना गया था, जिन्होंने बाद में 'मदर इंडिया' जैसी क्लासिक फ़िल्म बनायी। मगर, महबूब को इसलिए नहीं लिया गया, क्योंकि फ़िल्म के लिए अधिक लोकप्रिय कलाकार की दरकार थी। इसीलिए एक्टर और स्टंटमैन मास्टर विट्ठल को मुख्य किरदार के लिए अंतिम रूप से चुना गया। 


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