'आंखों देखी' पर करिए यकीन
मुंबई। संजीदा, सोचपरक और तर्कसंगत फिल्मों के पैरोकार रजत कपूर अब बतौर निर्देशक 'आंखों देखी' लेकर आए हैं। फिल्म किसी भी सोच पर आंख मूंद कर नहीं, ठोंक-बजाकर सच मानने की पैरोकारी करती है। रजत कहते हैं, 'किसी भी कथित विद्वान की बात आमतौर पर सब बिना सोचे, सच की
मुंबई। संजीदा, सोचपरक और तर्कसंगत फिल्मों के पैरोकार रजत कपूर अब बतौर निर्देशक 'आंखों देखी' लेकर आए हैं। फिल्म किसी भी सोच पर आंख मूंद कर नहीं, ठोंक-बजाकर सच मानने की पैरोकारी करती है। रजत कहते हैं, 'किसी भी कथित विद्वान की बात आमतौर पर सब बिना सोचे, सच की कसौटी पर खड़ा उतारे ब्रšा की लकीर मान ली जाती है। इस फिल्म में हमने यही दिखाने व समझाने की कोशिश की है कि कुछ भी परम सत्य नहीं होता। जरूरत सदा सत्य की अनवरत खोज की है। जिस चीज को देखें, उसी पर यकीन करें। अपने अनुभव पर विश्वास करें। बाकी किसी के कहे-सुने पर नहीं। वह हमें एक और नए तथ्य की ओर ले जाएगा।'
फिल्म 'आंखों देखी' में मेन लीड संजय मिश्रा कर रहे हैं। वे बाऊजी के किरदार में हैं। बाऊजी को एक दिन लगता है कि लोग जिस किसी भी नियम, सोच व अवधारणा को मान रहे हैं, वह किस आधार पर हो रहा है। हमने उन नियमों को सच कैसे मान लिया, जबकि सच तो हमारे अंदर है। वे लोगों से लकीर का फकीर बने रहने से रोकते हैं। सब में अपने अनुभवों के आधार पर फैसले लेने की कुव्वत पैदा करने की अपील करते हैं।
बाऊजी एक ही रास्ता चुन लेते हैं कि उन्हें लोगों में उन्हीं जैसी सोच विकसित करनी है। उस राह पर वह इतने आगे निकल जाते हैं कि उनके लिए अच्छा-बुरा मायने नहीं रखता। वे हर अच्छी-बुरी चीजों का अनुभव करना चाहते हैं, उसके बाद उनके परिवार पर क्या बीतती है, फिल्म उस बारे में है।'
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रजत आगे कहते हैं, 'फिल्म 'आंखों देखी' गीत-संगीत, कला जैसे सभी अनुभवों का पिटारा है। यह सृजन और अन्वेषण को नई गति व दिशा प्रदान करती है। लिहाजा फिल्म को जो लोग प्रॉडक्ट मानते हैं, उनकी वह अवधारणा मेरे पल्ले नहीं पड़ती। मैं उस किस्म का सिनेमा बना भी नहीं सकता। यह बात भी है कि मैं जिस किस्म का सिनेमा बनाना चाहता हूं, उसकी राह में ढेर सारी मुसीबतें हैं।'
रजत कपूर अपने फि ल्मी करियर में अब तक कई उतार-चढ़ाव देख चुके हैं, मगर अपनी असफलताओं से वे डरे नहीं हैं। वे कहते हैं, 'मेरी पत्नी कहती हैं कि किसी भी व्यक्ति के जमीन से जुड़े रहने के लिए नाकामयाबी महत्वपूर्ण है। लगातार सफलता से आदमी पागल हो सकता है, इसलिए असफलता जिंदगी के लिए महत्वपूर्ण है।'
रजत 2001 में आई फ रहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' में आमिर खान, सैफ अली खान, अक्षय खन्ना और प्रीति जिंटा के साथ अभिनय कर चुके हैं। उसके बाद 'कारपोरेट', 'मानसून वेडिंग', 'भेजा फ्र ाई' और 'दसविदानिया' में दमदार अभिनय से लोगों पर अपनी अच्छी छाप छोड़ चुके हैं। वे मानते हैं कि भले ही 'दबंग' आदि फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ रुपये कमाए हों, लेकिन 'भेजा फ्राई' और 'मिथ्या' सरीखी उनकी मनोरंजक फिल्मों ने नाम के साथ-साथ कमाई भी की है।'
(अमित कर्ण)