'Shakuntala Devi' Exclusive Interview: 'मां-बेटियों पर हिंदी सिनेमा में ज्यादा कहानियां नहीं बनतीं'- विद्या बालन
Exclusive Interview Vidya Balan शकुंतला देवी ऐसी औरत थीं जो अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर अपने लिए जीना जानती थीं जो हम सब करने की कोशिश कर रहे हैं।
नई दिल्ली [मनोज वशिष्ठ]। 'द डर्टी पिक्चर' के बाद विद्या बालन एक बार फिर बायोपिक फ़िल्म 'शकुंतला देवी' के साथ लौटी हैं। हालांकि इस बार पर्दा बदल गया है। कोरोना वायरस महामारी के चलते बदले हालात में 'शकुंतला देवी' सिनेमाघरों के बजाय डिजिटल प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर 31 जुलाई को रिलीज़ हुई है।
पर्दे का साइज़ चाहे जो हो, मगर विद्या बालन की अदाकारी का कद हमेशा ऊंचा रहा है। उनकी मौजूदगी फ़िल्म के लिए उत्सुकता बढ़ा देती है। विद्या ने इस फ़िल्म में नम्बरों की जादूगरी दिखाने वाली ह्यूमेन कम्प्यूटर के नाम से मशहूर शकुंतला देवी का किरदार निभाया है, जो विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं। विद्या की यह पहली डिजिटल रिलीज़ है।
जागरण डॉट कॉम के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में विद्या ने 'शकुंतला देवी' से जुड़े दिलचस्प किस्सों के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते चलन पर अपनी राय साझा की।
शकुंतला देवी एक जीनियस मैथमेटिशियन, राइटर, एस्ट्रॉल्जर और पार्ट टाइम पॉलिटिशियन थीं। आप उनकी पर्सनैलिटी के किस पहलू से ख़ुद को रिलेट कर पाती हैं?
(ज़ोर से हंसते हुए...) हम दोनों ज़ोर-ज़ोर से हंसते हैं। वही एक पहलू है। बाकी तो वो बहुत प्रख्यात थीं। उन्होंने एक लाइफटाइम में क्या-क्या कर दिया, मैंने तो उसका आधा भी नहीं किया। मैं एक एक्टर हूं। अपनी ख़ुशनसीबी समझती हूं, पर्दे पर ऐसे इंसान का किरदार निभा पायी हूं।
शकुंतला देवी की बायोपिक चुनने की मुख्य वजह क्या रही?
शकुंतला देवी ऐसी औरत थीं, जो अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर अपने लिए जीना जानती थीं, जो हम सब करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे लगा कि इनकी तो कहानी सुनाई जानी चाहिए, क्योंकि इससे सबको प्रेरणा मिलती है, लड़कियों को औरतों को। इसलिए उनकी कहानी चुनी।
आपको नंबरों से खेलते देख लगता नहीं कि फ़िल्म चल रही है। किरदार में परफेक्शन के लिए कोई वर्कशॉप आदि कीं?
वर्कशॉप नहीं कीं, लेकिन रिहर्सल्स हुए। शकुंतला देवी के मैथ शोज़ मैजिक शोज़ की तरह होते थे। उनकी ख़ासियत यही थी कि वो हंसते-हंसाते मैथ शो करती थीं तो लोगों का मैथ का डर निकल जाता था। उनकी परफॉर्मेंस के काफ़ी वीडियोज़ मैंने देखे। अपनी परफॉर्मेंस से मैंने वो पकड़ने की कोशिश की है। खेलते-खेलते वो ऐसे कर जाती थीं। कॉम्प्लेक्स इक्वेशन सॉल्व कर देती थीं। लोगों को लगता था, अरे यह इतनी आसानी से कर रही हैं। इसकी वजह से लोगों की यह भावना कि मैथ एक बोरिंग सब्जेक्ट है, बदल गयी। मैं जितने लोगों से मिली, जिन्होंने उनका शो देखा तो लगा कि मैथ उतना मुश्किल नहीं है। अनु मेनन (डायरेक्टर) और मेरे बीच इसको लेकर काफ़ी चर्चा हुई कि इसको कैसे एप्रोच करना है। बस इसी तरह हो गया।
'नो वन किल्ड जेसिका' और 'द डर्टी पिक्चर' के बाद यह आपकी तीसरी फ़िल्म है, जिसके किरदार वास्तविक जीवन से लिये गये हैं। ऐसे किरदारों को निभाना कितना चुनौतीभरा होता है?
एक फिक्शनल कैरेक्टर से एक रियल पर्सन का किरदार निभाना हमेशा ज़्यादा चुनौतीभरा होता है। उन लोगों (रियल कैरेक्टर) के फोटो होते हैं, वीडियो देखे जा सकते हैं। उनके हाव-भाव से लोग वाकिफ होते हैं। इस वजह से थोड़ा ज़्यादा प्रीपरेशन की ज़रूरत पड़ती है। बाकी उनके कुछ मैनेरिज़्म्स हैं। कोशिश रहती है कि वो मैं पकड़ लूं और यूज़ करूं। हां, ऐसे किरदार निभाते समय ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है।
शकुंतला देवी में आप एक ग्रोन अप बेटी की मां के रोल में भी दिख रही हैं। ऑनस्क्रीन बेटी सान्या मल्होत्रा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? बॉन्डिंग कैसी रही?
वो बहुत चुप-चुप रहती है। वो ज़्यादा बोलती नहीं है। जब तक वो आपके साथ कम्फर्टेबल नहीं हो जाती, थैंकफुली मैरे साथ तो हो गयी। पहले बहुत चुप-चुप रहती थी। अपने लोगों के साथ हंसती है, बोलती है। अंदर थोड़ी शर्मीली है। मैंने उसको अपने शेल से निकालने की कोशिश की। बहुत अच्छी इक्वेशन बनी। पर मैं यह ज़रूर कहूंगी कि वो बहुत अच्छी एक्ट्रेस हैं। बहुत ईमानदारी से अपने किरदार के लिए मेहनत करती हैं। यह देखकर बहुत अच्छा लगा। ऐसे एक्टर के साथ काम करने का मौका मिला, जो अपने काम को इतनी सच्चाई के साथ एप्रोच करती है।
आपकी यह पहली फ़िल्म है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हो रही है। अगर शॉर्ट फ़िल्म नटखट को मिला लें तो दूसरी, जिसे अपने प्रोड्यूस भी किया था। आगे इस प्लेटफॉर्म को किस भूमिका में एक्सप्लोर करने की योजना है।
मेरी आगे प्रोड्यूस करने की इच्छा बिल्कुल नहीं है। नटखट भी रॉनी स्क्रूवाला ने प्रोड्यूस की है। यह फ़िल्म तभी बनती, अगर मैं अपनी फी नहीं लेती। तो फी के बदले में उन्होंने मुझे प्रोड्यूसर क्रेडिट दिया औऱ मैंने खुशी-खुशी फ़िल्म की। इस फ़िल्म में मेरा नाम दो बार आता है। बतौर एक्टर-प्रोड्यूसर। लेकिन मैंने कोई ख़ास कोशिश नहीं की प्रोड्यूसर बनने की। आगे भी अगर ऐसा हुआ तो ठीक है, वरना में एक्टर बनकर ख़ुश हूं। एक घर से एक प्रोड्यूसर बहुत है।
डिजिटल रिलीज़ से क्या फ्राइडे रिलीज़ वाला प्रेशर कम हो जाता है, क्योंकि ओपनिंग कलेक्शन की टेंशन नहीं होती...
(सवाल के बीच में ही…) नहीं कम होता। बिल्कुल नहीं होता। आज सुबह से मैं नर्वसनेस और एक्साइटमेंट फील कर रही हूं। बॉक्स ऑफ़िस बताता है कि कितने लोग गये फ़िल्म देखने गये, कितने लोगों को पसंद आयी। वो तो मुझे अभी भी जानना है। उसके लिए तो मैं हमेशा उत्सुक रहूंगी। बॉक्स ऑफिस फिगर्स का टेंशन नहीं है पर प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता तो रहती है।
आपकी फ़िल्म द डर्टी पिक्चर में एक डायलॉग था- जब कानों को तालियां सुनने की आदत पड़ जाती है… डिजिटल रिलीज़ के दौर में उन सीटियों और तालियों को मिस नहीं करेंगी?
ताली थिएटर में हो या घर पर हो, मैं उम्मीद करूंगी कि ताली बजेगी। इस माहौल में फ़िल्म थिएटर में रिलीज़ नहीं हो सकती। हमारे स्तर के प्रोडक्शन के लिए मुश्किल हो जाती, क्योंकि कॉस्ट ऑफ़ प्रोडक्शन पर इंटरेस्ट बढ़ता रहता है तो हमारी जैसी मीडियम साइज़ फ़िल्म के लिए बहुत मुश्किल हो जाती। बड़ी फ़िल्म होती तो शायद वो रुक सकती थी। पर हम तो नहीं रुक पाते। खुशी इस बात की है कि अब लोग घर बैठे-बैठे परिवार के साथ अपने टाइम पर फ़िल्म देख सकते हैं। ऐसे माहौल में यह बहुत अच्छी बात है कि फ़िल्म रिलीज़ हो रही है।
शकुंतला देवी में बंगाली सिनेमा के सुपरस्टार जिशु सेनगुप्ता आपके साथ हैं। अक्सर देखा गया है कि क्षेत्रीय सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों को हिंदी दर्शकों के बीच अधिक लोकप्रियता नहीं मिलती। यह हिंदी सिनेमा के दर्शकों का नुकसान नहीं है?
किसी के लिए भी नुकसान वाली बात है, क्योंकि वहां वो सुपरस्टार हैं। उसके अलावा हिंदी फ़िल्में भी कर रहे हैं। हिंदी फ़िल्म दर्शकों के लिए यह एक बोनस है। इतने बड़े सुपरस्टार को वो देख पा रहे हैं। यह बहुत बड़ी बात है।
अनु मेनन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? कैसी डायरेक्टर हैं?
बहुत ही अच्छा अनुभव रहा। ऐसी डायरेक्टर हैं जो अपनी पूरी टीम से अच्छा काम निकलवाती हैं। सभी से मेहनत करवाती हैं। सभी को थका देती हैं, पर अच्छे के लिए। क्योंकि आज जब हम फ़िल्म देखते हैं तो सभी को लग रहा है कि हमने इतना अच्छा काम किया है। अगर फ़िल्म सबको पसंद आयी तो चार चांद लग जाएंगे। ख़ुशी हो रही है कि सबकी तरफ से काम अच्छा हुआ है। अनु मेनन की वजह से ही। एक औरत की कहानी के लिए एक औरत का नज़रिया अलग ही होता है। एक बेटी की आंखों से उसकी कहानी देख पा रहे हैं। यह भी अनोखी बात है। मां-बेटियों पर हिंदी सिनेमा में ज्यादा कहानी नहीं बनतीं।
शकुंतला देवी में आप गणित से खेल रही हैं। वास्तविक जीवन में गणित में कैसी हालत थी?
मुझे नंबर्स का बड़ा शौक है। नंबर्स मुझे याद रह जाते हैं। उस लिहाज़ से मैं फायदे में रही। शूटिंग के दौरान मुझे इतने बड़े-बड़े नंबर याद रखने थे। मैथ में मैं अच्छी रही हूं। मैं फायदे में रही नहीं तो मैं फंस जाती, क्योंकि फ़िल्म में बड़े-बड़े नम्बर्स याद रखने थे।