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जागरण फ़िल्म फेस्टिवल: खुली धूप से खिले दर्शक

दर्शकों के उत्साह को देखकर लगता है कि सुबह से रात तक भी सिनेमा नहीं थकाता,इसका अहसास लौटते हुए कदमों से होता है!

By Hirendra JEdited By: Published: Tue, 04 Jul 2017 12:01 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jul 2017 12:01 PM (IST)
जागरण फ़िल्म फेस्टिवल: खुली धूप से खिले दर्शक
जागरण फ़िल्म फेस्टिवल: खुली धूप से खिले दर्शक

गीताश्री, नई दिल्ली। जागरण फ़िल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन सुबह की धूप क्या खिली, भीड़ भी खिल गई। फुहारों से बचने वाली भीड़ ऑडिटोरियम के बाहर फ़िल्मों की सूची लेकर ऑडिटोरियम की तलाश में जुटी रही। हिंदी में डब कोंकणी फ़िल्म ‘मार्टिन’ जब शुरू हुई तो ऑडिटोरियम हाउसफुल। फेस्टिवल में सुबह के शो में पक्के सिनेप्रेमी दिखाई देते हैं, जो नींद की खुमारी ढोते हुए भी पसंदीदा फ़िल्म देखना नहीं भूलते। जैसे ही मार्टिन फ़िल्म ने रफ़्तार पकड़ी, सब सीट से चिपके रहे। खड़े होकर फ़िल्म देखने वाले दर्शकों की मुराद पूरी न हुई।

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कोंकणी फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े निर्देशक जितेंद्र शिकरवार ने जब यह फ़िल्म दस दिनों की शूटिंग में स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर बनाई तब उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि जल्दी ही उन्हें हिंदी में डब करना पडेगा और प्रतिष्ठित फ़िल्म फ़ेस्टिवल में इतनी जल्दी शामिल कर ली जाएगी। फ़िल्म देख कर बाहर निकलने वाले एक दर्शक की प्रतिक्रिया कुछ यूं थी- ‘लाइट हर्टेड मूवी’। फ़िल्म की ख़ासियत इसकी कहानी है। इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कलाकार नए थे या नामी लोग नहीं थे। गोवा के ख़ूबसूरत लोकेशन पर फ़िल्मायी गई कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो आठ साल बाद अपने शहर गोवा वापस लौटता है और फिर उसके साथ शुरु होता है रहस्यमयी घटनाओं का सिलसिला।

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निर्देशक जितेंद्र के अनुसार - "यह फ़िल्म अन्य फिल्मों की तरह किसी सामाजिक राजनीतिक समस्या को डील नहीं करती। यह एक हल्की फुल्की फ़िल्म है जो ढेर सारे मनोरंजन से भरी है। दिन भर एक से बढ़ कर एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्में दिखाई गईं जिनमें ‘पिंक’ और अग्निपथ" जैसी हिंदी फ़िल्मों के अलावा देर शाम ‘द गाजी अटैक’ (2015, निर्देशक- संकल्प रेड्डी) के लिए दर्शकों को पूरा दिन गुजारते देखा। कुछ तो बात है इस फ़िल्म में कि पच्चीस वर्षीय मृगांका वर्मा पांच बार पहले देख चुकी और छठी बार फिर फेस्टिवल में देखने को हाजिर थी।

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यहां बता दें कि ‘द गाजी अटैक’ भारत की पहली अंडर वाटर फ़िल्म है, जो पाकिस्तानी पनडुब्बी के डूबने के रहस्य को डिकोड करती है। इसकी कहानी 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध पर आधारित है। यह मुंबईयां मसाला नाच-गाना, रोमांस, स्वप्न से मुक्त अलग जॉनर यानी ‘वार‘ फ़िल्म है। इसकी फिलॉसफी सेकेंड वर्ल्ड वार में शामिल वरिष्ठ अमेरिकन अधिकारी जॉर्ज स्मिथ पैटन की फिलॉसफी से मिलती जुलती है जिसमें वह कहते हैं- कोई भी व्यक्ति अपने देश के लिए मरकर युद्ध नही जीतता, तुम अगर जीतते हो तो केवल इसलिए क्योंकि तुम बेवकूफों को उसके देश के लिए जान न्योछावर करने पर मजबूर करते हो!"

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फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण किरदार के के मेनन अराजक क़िस्म के अधिकारी हैं जिनकी फिलॉसफी है कि देश को बचाने के लिए मरने में नहीं, दुश्मन को मारने का इरादा होना चाहिए।" एक पल के लिए के के मेनन से दर्शकों  को चिढ़ होती है, अगले पल उनके युद्ध कौशल पर सब चमत्कृत रह जाते हैं। जागरण फ़िल्म फेस्टिवल में दर्शकों के उत्साह को देखकर लगता है कि सुबह से रात तक भी सिनेमा नहीं थकाता,इसका अहसास लौटते हुए कदमों से होता है!


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