हंसी को हलके में ना लें: शैलेष लोढ़ा
हिंदुस्तान के टीवी इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले कॉमेडी डेली सोप का रुतबा हासिल है 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' को। शो के सूत्रधार शैलेष लोढ़ा कॉमेडी को सबसे टेढ़ी कला मानते हैं। उनसे बातचीत के अंश: तारक मेहता.. लगातार दर्शकों को पसंद आ रहा है।
हिंदुस्तान के टीवी इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले कॉमेडी डेली सोप का रुतबा हासिल है 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' को। शो के सूत्रधार शैलेष लोढ़ा कॉमेडी को सबसे टेढ़ी कला मानते हैं। उनसे बातचीत के अंश:
तारक मेहता.. लगातार दर्शकों को पसंद आ रहा है। आपकी नजर में इसकी वजह?
हंसाना सबसे मुश्किल काम है, पर मेरे ख्याल से यह शो एक गुलदस्ता के रूप में है। दर्शक चाहे बच्चा हो या बूढ़ा। मर्द हो या महिला, सब एंजॉय करते हैं। शो में हर किरदार को बराबर का वजन भी दिया गया है। सारे कलाकारों में एकता है। वे टीम की तरह परफॉर्म करते हैं, इसलिए शायद यह शो लोगों को पसंद आ रहा है।
हंसाने की कला और बेहतर हाजिर जवाब कैसे बना जा सकता है?
आपकी समसामयिक मुद्दों पर पकड़ गंभीर होनी चाहिए। लतीफे बनाते वक्त संदर्भ विशेष का पूरा ख्याल रखना चाहिए। उनमें अगर संदर्भ न हो तो वे खास प्रभावी नहीं होते। जीवन और देश-दुनिया का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। शख्सियत में ईष्र्या, गुस्सा और किसी के प्रति गलत भावना नहीं होनी चाहिए। हर हाल में खुश रहने वाला इंसान ही हंसाने की कला में माहिर हो सकता है। आपमें लोगों, चीजों और वाकया को अवलोकन कर उसे हास्य का रंग-रूप देने की क्षमता होनी चाहिए। शायद इसलिए हंसाना सबसे मुश्किल काम है। ज्ञान से मेरा मतलब किताबी नहीं, जिंदगी की ओर है। किताबी कीड़े लोगों को नहीं हंसा सकते।
आप खुद भी एक लेखक हैं, दूसरे कॉमेडी शोज के बारे में क्या कहेंगे?
मुझे कहते हुए बड़ा दुख होता है कि इन दिनों जो कॉमेडी शो बन रहे हैं, उन्हें कॉमेडी कैसे कहूं। हंसाने के नाम पर फूहड़ता परोसना बिल्कुल वैसा ही है, जैसा आपके खाने में फास्ट और जंक फूड। वे टेस्टी भले लगें, पर हेल्दी नहीं होते। डबल मीनिंग वाले कॉमेडी शो को हेल्दी शो नहीं कहा जा सकता।
शो के हेल्थ पर तो आपने बता दिया। रील लाइफ में अंजलि मेहता आपके किरदार को डाइट फूड खिलाती रहती है। असल जिंदगी में आप कितने हेल्थ कॉन्शस हैं?
बिल्कुल नहीं, करेले का जूस मेरे किरदार तारक मेहता को ही मुबारक हो। मैं डाइटिंग में बिल्कुल यकीन नहीं रखता। हां कोशिश रहती है कि ज्यादा तेल-मसाला भी न खाऊं।
टीवी पर तो आप अपनी धाक जमा चुके हैं। फिल्माें में जाने की कोई योजना?
ख्वाहिश तो है। ऑफर भी खूब आते हैं, पर फिल्मों के लिए मुझे एक साथ ढेर सारी तारीखें चाहिए। अब एक डेली सोप में काम करने वाला बेचारा कहां से उतने डेट ला पाएगा।
'वाह-वाह क्या बात है' ने भी अच्छी रफ्तार पकड़ी है?
शो में आला दर्जे के कवि विभिन्न प्रांतों से आते हैं। वहां के हास्य की खुशबू लाते हैं। लिहाजा यह लोगों की नब्ज पकड़ने और उन्हें गुदगुदाने में कामयाब रहा है।
अमित कर्ण
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